टैंकर राज: दिल्ली में 5000 हजार रुपए में बिक रहा निजी टैंकर का पानी, बोरिंग है मुख्य स्रोत

देश के ज्यादातर नगर-महानगरों में पानी के टैंकर माफिया का कब्जा है। डाउन टू अर्थ ने ऐसे कुछ शहरों की जमीनी हकीकत जानी। पढ़ें पहली कड़ी-
दिल्ली में पानी के टैंकर आते ही लोगों का हुजूम टूट पड़ता है। फोटो: विकास चौधरी
दिल्ली में पानी के टैंकर आते ही लोगों का हुजूम टूट पड़ता है। फोटो: विकास चौधरी
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“दस हजार रुपए कमाने वाला आदमी हर महीने औसतन 3 हजार रुपए पानी में खर्च कर दे रहा है। दशकों से यह हमारी बदनसीबी बनी हुई है। यहां पाइपलाइन पड़ी है लेकिन हमारी झुग्गियों में आजतक पानी नहीं पहुंचा। पहले हाथ से चलाने वाले नल थे, उनमें लाल निशान लगाकर बाद में सारे हटा दिए गए। अब हम सिर्फ सरकारी टैंकर और निजी पानी की सप्लाई से जिंदा हैं।”

पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी कॉलोनी में रहने वाले 24 वर्षीय रोहित सिरसवाल बेहद मायूसी के साथ अपना दुखड़ा बताते हैं। वह दिल्ली जल बोर्ड (डीजीबी) टैंकरों की तरफ इशारा करते हैं “इनका पानी बिल्कुल पीने लायक नहीं है। बच्चे बीमार पड़ते हैं लेकिन हमारी मजबूरी है कि हमें इसी पानी से रोजमर्रा का हर तरह का काम करना है। क्योंकि सब लोग पानी खरीदकर गुजारा नहीं कर सकते।”

पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी कॉलोनी में इंदिरा कैंप की सैकड़ों पक्की झुग्गियों में लोग सुबह के सूरज के साथ पानी को लेकर सजग हो गए हैं। जल्दी-जल्दी पानी भरने के बर्तन केन, बोतलें इकट्ठा की जा रही हैं। आपम में सहयोग से खरीदी गई लंबी पानी की पाइपों को सड़कों तक पहुंचाया जा रहा है। टैंकरों से पानी भरने के काम में बच्चे अभ्यस्त हो चुके हैं और अपने-अपने केन और पाइप को लेकर लेकर सड़कों पर निकल आए हैं। सभी टकटकी लगाए डीजेबी टैंकरों का आसरा देख रहे हैं।

सुबह के 9 बजे हैं और 1400 से ज्यादा की आबादी वाली इंदिरा कैंप की इन झुग्गियों की तरफ तीन डीजेबी टैंकर बारी-बारी से आकर रूके हैं। हर टैंकर में करीब 10 हजार लीटर पानी है जो अगले 45 से 50 मिनट में खाली हो जाएगा। एक टैंकर अधिक से अधिक दो गलियों में मौजूद मकानों को पानी देती है।

सुनीता कहती हैं ”जब टैंकर आता है तो हम बारी-बारी से पानी लेते हैं, लेकिन कई बार हम औरतों के बीच ज्यादा या पहले पानी भरने को लेकर बड़े झगड़े हो जाते हैं। इसके बाद तो टैंकर चार से पांच दिनों तक नहीं आता। हमें नजदीक में समर्सिबल से पानी सप्लाई करने वालों के पास से 20 से 40 रुपए में 20 लीटर जार में पानी खरीद कर लाना पड़ता है।”

इंदिरा कैंप के लोग डाउन टू अर्थ से अपनी परेशानी साझा करते हैं कि यहां सभी को पानी एक समान उपलब्ध नहीं हो पाता। किसी के पास भंडारण की ज्यादा व्यवस्था है और किसी के पास बहुत कम। झुग्गी की आबादी के हिसाब से देखें औसतन हर एक आदमी पर पानी की उपलब्धता 50 लीटर से भी कम है।

इंदिरा कैंप में तीन दशकों से ज्यादा समय से रहने वाले जगदीश कैटरिंग का काम करते हैं। उनके घर में पांच सदस्य हैं। बेहद तंग गली में जगदीश का मकान है। उन्होंने अपने छत पर 500 लीटर पानी की टंकी लगाई है। जगदीश मोटर दिखाते हुए कहते हैं कि यह पिछले साल पांच हजार रुपए का खरीदा था। इस मोटर से हम टैंकर वाले पानी को टंकी तक पहुंचा देते हैं। उन्होंने कहा “टंकी में कभी 100 लीटर तो कभी उससे भी कम भरता है, इसी में तीन-चार दिन चलाना पड़ता है, क्योंकि अगर पानी में ही दिनभर फंसे रहे तो काम-धाम कैसे करेंगे।”

इंदिरा कैंप में हर परिवार से रोजाना आदमी, औरतें और बच्चे मिलकर घरों में रखे केन, बोतलों और बाल्टी में दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के टैंकर से पानी भरने में 4 से 5 घंटे का समय बिताते हैं।

रोहित सिरसवाल कहते हैं कि जिस दिन डीजेबी का टैंकर नहीं आता है उस दिन हमें दो तीन किलोमीटर दूर आरओ वाले के पास 20 लीटर के चार से पांच जार में पानी भरकर घर लाना होता है। डीजेबी टैंकर का पानी पीने लायक नहीं है लेकिन न सिर्फ हम पानी पर तरसने के लिए मजबूर हैं। वह कहते हैं कि यहां औसतन 12 से 15 हजार रुपए कमाने वाले लोग रहते हैं, जबकि 20 रुपए से लेकर 40 रुपए तक पानी का जार खरीदने के लिए महीने में तीन हजार रूपए तक खर्च कर देना पड़ता है।

इंदिरा कैंप में 3 दशक से रहने वाले 60 वर्षीय महावीर बताते हैं टैंकर न आए तो हमारे पास पानी का कोई साधन नहीं है। जब टैंकर नहीं आता है तो हमें पानी खरीदना पड़ता है। 10 साल पहले इलाके में पानी की सप्लाई के लिए लाइन डाली गई थी, तब कॉलोनियों में बड़े घर नहीं थे। अब चार-पांच मंजिल वाले घर हैं, सभी में बड़ी-बड़ी टंकियां हैं, हैवी मोटर हैं तो सप्लाई का पानी इंदिरा कैंप में हमार घरों तक नहीं पहुंचता। सप्लाई की लाइन डालने के बाद एक साल तक ही पानी आया, इसके बाद आजतक पानी नहीं आया।

त्रिलोकपुरी कॉलोनी में ही ब्लॉक 2 के रहने वाले 58 वर्षीय महा सिंह बताते हैं कि उनके घरों में दिल्ली जल बोर्ड के जरिए पानी की आपूर्ति सुबह और शाम को दो- दो घंटे की जा रही है। हालांकि, जिन ट्यूबवेल के जरिए वह पानी की सप्लाई कर रहे हैं वह बेहद खराब गुणवत्ता वाला है। उस पानी में सीवेज की बदबू आती है साथ ही रेत और मिट्टी के कण होते हैं। वह पानी इस्तेमाल करने लायक नहीं होता है। पीने के लिए पानी खरीदना पड़ता है। प्राइवेट टैंकर भी उपलब्ध हैं लेकिन वह 2,000 से 2,500 रुपए पूरे टैंकर के लेते हैं, इतना पानी कैसे कोई अकेले खरीद सकता है। किसी पारिवारिक कार्यक्रम पर हमें इनका इंतजाम करना पड़ता है।

महा सिंह के मुताबिक उन्हें रोजमर्रा पीने और खाना बनाने के लिए 20 रुपए 20 लीटर की पांच से छह जार खरीदनी पड़ती है। जिससे उन्हें रोजाना 100 से 150 रुपए तक खर्च करना पड़ता है। महीने में सिर्फ पानी पर वह 3 हजार रुपए से अधिक खर्च कर देते हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि त्रिलोकपुरी के ब्लॉक 3, 4, 5 और 6 में भी पानी की किल्लत बनी हुई है। सप्लाई वाला पानी नहीं आता। इलाके में कुछ लोगों ने समर्सिबल की व्यवस्थाएं कर रखी हैं। इन समर्सिबल के जरिए प्राइवेट टैंकर पानी भरते हैं, और इन्हीं के जरिए जार में पानी बेचा भी जाता है।

समर्सिबल से पानी भरते प्राइवेट टैंकर

दिल्ली के और भी इलाकों में प्राइवेट टैंकर पानी पहुंचाने को तैयार हैं, लेकिन कई शर्तों के साथ। उनकी शर्त होती है कि ग्राउंड फ्लोर पर ही पानी टैंकर पहुंचाएंगे। इसके ऊपर पानी पहुंचाने के लिए वह मना करते हैं। इसके अलावा वह दावा करते हैं कि वाटर टैंकर में भरे गए पानी का स्रोत बोरिंग ही है जो कि साफ और इस्तेमाल करने लायक है।

डाउन टू अर्थ ने दिल्ली के खिचड़ीपुर में राजपूत वाटर सप्लायर नाम के निजी टैंकर से संपर्क किया। आवासीय और व्यावसायिक जरूरतों के लिए यह पानी का टैंकर मुहैया कराते हैं। इन्होंने बताया कि 10 हजार लीटर से नीचे यह पानी नहीं पहुंचाते हैं, यानी एक टैंकर भरा पानी ही यह सर्विस करते हैं, जिसकी कीमत 5000 रुपए इन्होंने बताई। उन्होंने कहा कि सिर्फ 1000 लीटर की पानी टंकी भरने के लिए वह अपनी सर्विस नहीं देंगे, अगर 10 टंकियां हैं तो ही वह अपना टैंकर खिचड़ीपुर इलाके में भेजेंगे।

इसी तरह गोविंदपुरी एक्सटेंशन पर पानी का प्राइवेट टैंकर बीचो-बीच सड़क पर पानी की आपूर्ति के लिए खड़ा है। डाउन टू अर्थ ने प्राइवेट टैंकर के मालिक से पानी आपूर्ति की बात की। इस पर उसने कहा कि संगम विहार इलाके में छोड़कर मदनगीर और कैलाश कॉलोनी में वह पानी सप्लाई करता है।

टैंकर के पास एक खाली दुकान में बैठे करीब 50 वर्षीय अजय नाम के व्यक्ति ने कहा कि इस वक्त पानी की किल्लत है। 2500 रुपए में 8000 लीटर वाला टैंकर उपलब्ध हैं। डीटीई ने पानी के स्रोत के बारे में पूछा तो वह सड़क किनारे गली में मौजूद बोरिंग से पानी की उपलब्धता की पुष्टि करते हैं और दावा करते हैं कि यह पानी न सिर्फ साफ है बल्कि घर की टंकी तक टैंकर के जरिए पहुंचा दिया जाएगा।

वह बताते हैं कि हर तीन घंटे में उनकी दो गाडियां पानी की आपूर्ति कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक दो प्राइवेट टैंकर ही इस दिनों दिल्ली में पानी की किल्लत के दौरान करीब 20 से 30 हजार रुपए तक कमा रहे हैं।

पूर्वी दिल्ली में प्राइवेट टैंकर की जगह 20 लीटर जार के पानी ने ले ली है। वहीं, दक्षिणी दिल्ली में प्राइवेट टैंकर अब भी खुलेआम पानी की आपूर्ति कर रहे हैं।

सरकारी टैंकर भी उठा रहे मजबूरी का फायदा

पानी की किल्लत दक्षिणी दिल्ली के इलाकों में इतनी जबरदस्त है कि जलवायु विहार के पास दिल्ली जल बोर्ड के 50 से अधिक टैंकर सुबह छह बजे कतार में खड़े हो जाते हैं। बारी-बारी से पानी भरकर वह इलाकों में जाते हैं। ऐसे ही सबसे संकटग्रस्त संगम विहार इलाके के कुछ फरियादियों से जलवायु विहार डीजेबी स्टेशन पर डीटीई ने मुकलाकात की। स्कूलिंग कर रहीं मानसी और उनकी मां लगातार तीन दिनों से पानी के लिए दिल्ली जल बोर्ड के चक्कर काट रही हैं। वह संगम विहार के चर्च गेट, गली नंबर 9 की रहने वाली हैं।

मानसी ने कहा कि तीन दिन गुजर गए लेकिन कोई भी सरकारी टैंकर उनके घर पानी पहुंचाने नहीं आया। प्राइवेट टैंकर 1000 से 1200 रुपए तक मांगते हैं, हम इतना पैसा रोज कहां से खर्चा करें। इन दिनों मजबूरी में निजी टैंकर से भी पानी लेना पड़ रहा है।

मानसी आगे कहती हैं कि दिल्ली जल बोर्ड के टैंकर भी 200 लीटर वाले ड्राम भरने के लिए निजी तौर पर 20 रुपए का मेहनताना मांगते हैं। जबकि यह पानी बिल्कुल मुफ्त है। हम डरते हैं कि कहीं हमने यह पैसे देने से मना किया तो वह टैंकर लाना बंद कर देंगे। आस-पास के सभी घर बहुत परेशान हैं। पानी की किल्लत बीते वर्ष ऐसी नहीं थी, जितनी इस बार है। दिल्ली के ऐसे कई इलाकों में काम-धंधे और स्कूल जाने वाले बच्चे इन दिनों पानी की तलाश में भटक रहे हैं।

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