गर्मी आते ही 40 वर्षीय ललित मौर्य की चिंताएं बढ़ जाती हैं और जेब का खर्च भी। दिल्ली के संगम विहार इलाके के-2 ब्लॉक में पिछले 33 साल से रह रहे ललित वैसे तो पूरे साल पानी की किल्लत से जूझते हैं लेकिन मई में गर्मी के महीने शुरू होते ही यह किल्लत चरम पर पहुंच जाती है। ललित डाउन टू अर्थ से अपनी तकलीफ बयां करते हैं, “मेरा परिवार पूरी तरह प्राइवेट टैंकर के पानी पर आश्रित है। यहां अब तक सरकारी पानी नहीं पहुंचा है।”
ऐसा नहीं है कि ललित के इलाके में सरकारी बोरवेल नहीं है लेकिन वह 500 मीटर की दूरी पर है और उससे 30 से 40 मिनट ही पानी की आपूर्ति होती है। दूरी के कारण ललित के घर तक बोरवेल का पानी नहीं पहुंच पाता, इसलिए मजबूरी में उन्हें प्राइवेट टैंकर का सहारा लेना पड़ता है। अमूमन हर हफ्ते वह टैंकर मंगाते हैं।
ललित ने 11 जून को 1,200 रुपए खर्च कर 2,500 लीटर का टैंकर मंगवाया था। अब वह फिर से टैंकर मंगवाने की तैयारी में हैं। ललित गर्मियों के तीन महीनों (मई-जुलाई) औसतन 12,000 रुपए टैंकर के पानी पर खर्च कर देते हैं। शेष महीनों में पानी की जरूरत और टैंकर के दाम अपेक्षाकृत कम होते हैं, फिर भी हर साल करीब 30 हजार रुपए टैंकर पर खर्च हो ही जाते हैं। पिछले 10 वर्षों से ललित का परिवार इसी तरह टैंकर के पानी से गुजर कर रहा है।
ललित संगम विहार के जिस इलाके में रहते हैं वहां दिल्ली जलबोर्ड का पानी नाममात्र के लिए ही आता है। इस इलाके में कुछ बोरवेल जरूर हैं लेकिन उनसे जलापूर्ति इतनी सीमित है कि अधिकांश तक नहीं पहुंच पाता।
के-2 ब्लॉक से लगे एल-1 ब्लॉक में भी पानी की भीषण किल्लत है और निजी टैंकर ही पानी का भरोसेमंद स्रोत हैं। इस ब्लॉक में रहने वाले मुकेश कुमार कहते हैं कि दिल्ली जल बोर्ड के केवल गिने चुने टैंकर ही हैं और इनसे 10 प्रतिशत भी जरूरत पूरी नहीं होती। वह यह भी बताते हैं कि निजी टैंकर माफिया की जलबोर्ड में बैठे लोगों से मिलीभगत के कारण जरूरतमंदों तक सरकारी टैंकर का पानी नहीं पहुंच पाता और निजी टैंकर माफिया इसका खूब फायदा उठाकर पैसा कमा रहे हैं। मुकेश को भी हर महीने कम से कम एक टैंकर पानी मंगवाना ही पड़ता है। टैंकर का पानी केवल नहाने, कपड़े और बर्तन धोने के ही काम आता है। पीने के पानी की व्यवस्था अलग से करनी पड़ती है।
मुकेश और ललित अपनी ठीक माली हालत के कारण टैंकर से पानी मंगाने में सक्षम हैं लेकिन संगम विहार के अधिकांश निवासी इस स्थिति में नहीं हैं। उदाहरण के लिए जे-3 ब्लॉक में रहने वाले मोहम्मद अरमान को महीने में एक बार आने वाले ट्यूबवेल के पानी से पूरा महीना गुजारना पड़ता है। टैंकर मंगाना अरमान के बूते से बाहर है, इसलिए वह 5 से 6 हजार लीटर पानी स्टोर कर लेते हैं और उसे बहुत कंजूसी से इस्तेमाल करते हैं। कोरियर का काम करने वाले अरमान कभी-कभी पानी बचाने के लिए नहाते भी नहीं हैं।
पानी का ऐसा ही इस्तेमाल एफ-3 ब्लॉक में रहने वाले मधुर गौतम भी करते हैं। मधुर के घर में कुल छह कमरे हैं जिनमें से चार में किराएदार रहते हैं और शेष दो कमरों में उनके परिवार के तीन सदस्य। मधुर के घर में गर्मियों में अक्सर एक बाल्टी पानी में दो लोग नहाते हैं। उनके किराएदार भी बर्तन या कपड़े धोने से निकलने वाले गंदे पानी का इस्तेमाल पोछा लगाने में करते हैं। हालांकि मधुर हर महीने 2,000 लीटर वाला पानी का औसतन एक टैंकर मंगाते हैं। मौजूदा समय में ऐसा एक टैंकर 1,800 रुपए में आ रहा है। मधुर कहते हैं कि बोरवेल से महीने में एक बार आने वाला पानी मुश्किल से 15 दिन ही चलता है, बाकी के 15 दिन टैंकर के पानी से निकलते हैं। मधुर पानी की कमी और उस पर बढ़ते खर्च से इतना परेशान हो चुके हैं कि वह संगम विहार से अपना घर बेचने की योजना बना रहे हैं।
जे ब्लॉक की गुप्ता कॉलोनी में रहने वाले अप्पू प्रसाद भी घर लेकर पछता रहे हैं। उन्होंने हाल ही में 50 गज का प्लॉट खरीदा है और इस वक्त उसे बनवा रहे हैं। प्लॉट खरीदने और बनवाने में वह अब तक करीब 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। अब उन्हें अपने इस फैसले पर पछतावा हो रहा है। अप्पू का कहना है कि उनके घर में सरकारी ट्यूबवेल से करीब डेढ़ में एक बार ही पानी आ रहा है। ऐसे हालात में यहां रहना मुश्किल होता जा रहा है। अप्पू जिस गली में रहते हैं, वहां ज्यादातर लोगों के घरों के अंदर और बाहर पानी की टंकियां रखी हैं, ताकि वे डेढ़ महीने के लिए पानी स्टोर कर लें। पानी स्टोर करने के लिए ज्यादातर लोगों ने घर के अंदर भूमिगत टैंक बनवा रखे हैं, साथ ही छत के ऊपर और गली में टंकियां रखी हैं। बहुत से घर ऐसे भी हैं जहां पूरे कमरे में पानी की टंकियां रखी गईं हैं। अप्पू ने भी अपने घर में 6,000-7,000 लीटर पानी स्टोर करने की व्यवस्था कर रखी है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा संगम विहार में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 10 लाख से अधिक आबादी वाले इस इलाके में सभी स्रोतों से मिलाकर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन केवल 45 लीटर पानी मिलता है, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए केंद्र सरकार का मानक प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर पानी है। यानी पानी की जितनी जरूरत है, उसका महज 33 प्रतिशत ही पानी प्राप्त होता है। अध्ययन के अनुसार, इलाके के लोग पानी पर हर महीने औसतन 1,000 रुपए पानी (पेयजल और गैर पेयजल) पर खर्च करते हैं। यहां तीन जल आपूर्ति स्रोतों (टैंकर, बोरवेल और पाइप सप्लाई) में से टैंकरों और बोरवेल पर निर्भरता अधिक है।
टैंकर राज
संगम विहार में पानी की इतनी भीषण किल्लत में अगर कोई मौज कर रहा है तो वह टैंकर संचालक या टैंकर माफिया हैं। पूरा संगम विहार इनकी जद में है। पानी की सबसे अधिक मांग के वक्त इन्होंने टैंकर के दाम 200 से 300 प्रतिशत तक बढ़ा दिए हैं। फरवरी-मार्च में जो 2,000 लीटर का जो टैंकर 600-700 रुपए में मिल जाता है, मौजूदा समय में वह 1,800 से 2,000 रुपए के आसपास है। सूत्रों के अनुसार, इन टैंकर माफिया की हर राजनीतिक दल में पैठ है। सत्ता बदलते ही वह पाला बदल लेते हैं और सांठगांठ कर अपना धंधा जारी रखते हैं। सूत्र बताते हैं कि देवली इलाके में बड़ी संख्या में इन टैंकर माफिया के अवैध बोरवेल हैं, जिनसे संगम विहार और आसपास के बड़े हिस्से में पानी की आपूर्ति होती है।
डाउन टू अर्थ ने अपनी तफ्तीश के दौरान संगम विहार की सबसे व्यस्त सड़क रतिया मार्ग पर पानी के दो अवैध बोरवेल देखे। इन बोरवेल से निरंतर पानी की आपूर्ति हो रही है। बोरवेल के नजदीक एक दुकान चलाने वाले युवक ने डाउन टू अर्थ को दबी जुबान में बताया कि रोज करीब 60-70 टैंकर इस बोरवेल से पानी ढो रहे हैं। डाउन टू अर्थ रिपोर्टर पानी के टैंकर का ग्राहक बनकर जब बोरवेल वाले घर में बैठे शख्स के पास गया तो उन्होंने ज्यादा बात नहीं की। उन्होंने पानी पहुंचाने की जगह के बारे में पूछताछ की और फिर वहां से जाने को कह दिया। बातचीत के दौरान उन्होंने फोन नंबर ले लिया और कहा कि आधे घंटे में फोन करके टैंकर का दाम बताएंगे। हालांकि दस मिनट बाद ही उनका फोन आ गया लेकिन रिपोर्टर फोन नहीं उठा पाया। दुकानदार ने यह भी बताया कि बारेवेल से 4-5 टैंकर दिनभर पानी ढोते हैं। यानी इन टैंकरों के जरिए करीब 1.50 लाख लीटर पानी प्रतिदिन जमीन से निकालकर अवैध तरीक से बेचा जा रहा है।
इस अवैध बोरवेल वाले घर से सटी बिल्डिंग मटीरियल की एक दुकान है, जिसके पिछले हिस्से में एक टैंकर पानी भर रहा था। दुकान में 600-700 फीट की गहराई का एक अवैध बोरवेल है, जिससे पानी खींचकर एक बड़े टैंक में भरा जाता है। फिर उस टैंक का पानी टैंकर में भरकर मुंहमांगी कीमत पर बेचा जा रहा है। उपरोक्त दोनों बोरवेल से संगम विहार के जे, आई, के और एफ ब्लॉक में पानी बेचा जाता है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि अवैध पानी का यह गोरखधंधा बिना नेताओं और अफसरों की मिलीभगत के संभव नहीं है।
के-2 ब्लॉक निवासी एक युवक ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि पानी को लेकर उनका स्थानीय विधायक और पार्षद से कई बार झगड़ा हो चुका है। उन्होंने आगे बताया, “अब मैं उम्मीद हार चुका हूं। नेता और अधिकारी इलाके को अवैध बताया पानी उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। पानी की किल्लत के कारण मैं भी अपना घर बेचकर यहां से कहीं और जाने की तैयारी में हूं।”