फतेहपुर में सदियों पुराने तालाबों पर संकट, एनजीटी ने उत्तरप्रदेश वेटलैंड अथॉरिटी से मांगा जवाब

फतेहपुर में सदियों पुराने तालाबों के विनाश से जुड़े आरोपों पर एनजीटी ने सख्त रुख अपनाते हुए कई सरकारी एजेंसियों से जवाब मांगे हैं।
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • फतेहपुर में सदियों पुराने तालाबों के विनाश पर एनजीटी ने सख्त रुख अपनाया है।

  • एनजीटी ने उत्तर प्रदेश वेटलैंड प्राधिकरण से जवाब मांगा है और कई सरकारी विभागों को पक्षकार बनाया है।

  • याचिका में कहा गया है कि फतेहपुर जिले में सदियों पुराने ऐतिहासिक तालाबों को योजनाबद्ध तरीके से खत्म किया जा रहा है।

  • आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही और राजस्व विभाग की कथित मिलीभगत से भूमाफिया, बिल्डर और प्रभावशाली लोग तालाबों पर कब्जा कर रहे हैं। इन जलस्रोतों को पाटकर प्लॉटिंग की जा रही है और अवैध कॉलोनियां बसाई जा रही हैं।

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में जलस्रोतों के तेजी से हो रहे विनाश पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया है। 22 दिसंबर 2025 को एनजीटी ने उत्तर प्रदेश राज्य वेटलैंड प्राधिकरण से जिले में तालाबों और जलाशयों को नष्ट किए जाने के आरोपों पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

इस मामले में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रमुख सचिव, फतेहपुर के जिलाधिकारी, जिला वेटलैंड समिति, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भी पक्षकार बनाया गया है। सभी से जवाब दाखिल करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई 3 फरवरी 2026 को होगी।

एनजीटी में दायर याचिका में कहा गया है कि फतेहपुर जिले में सदियों पुराने ऐतिहासिक तालाबों को योजनाबद्ध तरीके से खत्म किया जा रहा है।

आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही और राजस्व विभाग की कथित मिलीभगत से भूमाफिया, बिल्डर और प्रभावशाली लोग तालाबों पर कब्जा कर रहे हैं। इन जलस्रोतों को पाटकर प्लॉटिंग की जा रही है और अवैध कॉलोनियां बसाई जा रही हैं।

याचिका में उदाहरण देते हुए बताया है कि सदर क्षेत्र में मुस्लिम इंटर कॉलेज के पास, मुरैन टोला स्थित संस्कृत विद्यालय के पीछे, ज्वाला गंज और कई अन्य जगहों पर तालाबों को मिट्टी से भर दिया गया है और अवैध कॉलोनियां बसाई जा रही हैं।

नगर पालिका परिषद, फतेहपुर क्षेत्र में कागजों में 84 तालाब दर्ज हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में उनका अस्तित्व तेजी से मिटता जा रहा है। मंथेई तालाब को रातों-रात ट्रकों से मिट्टी डालकर पाटा जा रहा है। इसी तरह ज्वाला गंज में संस्कृत महाविद्यालय के पीछे स्थित मौर तालाब पर भी कब्जे की तैयारी चल रही है।

करेडू गांव की उपजाऊ जमीन पर संकट, एनजीटी ने लिया संज्ञान

आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के करेड़ू गांव की हरी-भरी कृषि योग्य जमीन अब औद्योगिक इस्तेमाल के खतरे में है। 22 दिसंबर, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है।

याचिकाकर्ता ने इंडोसोल सोलर प्राइवेट लिमिटेड के लिए 8,348 एकड़ से अधिक उपजाऊ जमीन को औद्योगिक उपयोग के लिए देने पर आपत्ति जताई है।

उनका कहना है कि इससे आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के उलवापाडु मंडल स्थित करेड़ू गांव के करीब 16,000 परिवारों की आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा, जो पीढ़ियों से कृषि पर निर्भर है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी की प्रधान पीठ ने निर्देश दिया है कि इसकी सुनवाई अब ट्रिब्यूनल की दक्षिणी पीठ में होगी। इस मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी, 2026 को होगी। ग्रामीणों को उम्मीद है कि अदालत उनकी उपजाऊ जमीन और आजीविका की रक्षा करेगा।

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