
केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हरियाणा में पानी की भारी किल्लत है। सिंचाई के लिए राज्य की मौजूदा पानी की जरूरतें उपलब्ध सतही और भूजल संसाधनों से कहीं अधिक हैं। यह रिपोर्ट तीन मई 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सबमिट की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में सतही जल की उपलब्धता बेहद सीमित है। सतलुज, ब्यास और रावी जैसी पंजाब की प्रमुख बारहमासी नदियां हरियाणा से होकर नहीं बहती। इन नदियों से हरियाणा के हिस्से का पानी भाखड़ा नहर के जरिए पश्चिमी इलाकों तक पहुंचता है। इसके अलावा सतही जल का दूसरा प्रमुख स्रोत यमुना है। हरियाणा इसके पानी को उत्तर प्रदेश के साथ साझा करता है। हालांकि इसका पानी भी राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।
ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में ताजे पानी का सबसे बड़ा स्रोत भूजल है। हरियाणा सरकार ने 28 मार्च, 2023 को भूजल संसाधनों के मूल्यांकन के लिए एक स्थाई राज्य स्तरीय समिति का गठन किया था। इसके तहत केंद्रीय भूजल बोर्ड (उत्तर-पश्चिम क्षेत्र, चंडीगढ़) और हरियाणा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग मिलकर राज्य के सभी ब्लॉकों का संयुक्त आकलन कर रहे हैं।
इससे पहले भूजल संसाधनों का आकलन 2004, 2009, 2011, 2013, 2017 और 2020, 2022, 2023 और 2024 में किया गया था। वहीं 2022 से यह आकलन हर साल किया जा रहा है।
डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट 2024 के अनुसार, हरियाणा में सालाना भूजल पुनर्भरण क्षमता 10.32 अरब घन मीटर (बीसीएम) आंकी गई है। इसमें से 9.36 अरब घन मीटर पानी का सालाना उपयोग किया जा सकता है। हरियाणा में इस समय हर साल 12.72 अरब घन मीटर भूजल का दोहन किया जा रहा है, जो उपलब्ध भूजल क्षमता का करीब 136 फीसदी है। यह आंकड़े स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि हरियाणा में भूजल के दोहन की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि 143 क्षेत्रों (ब्लॉक/शहरी इकाइयों) में से 88 क्षेत्र यानी 61.54 फीसदी को ऐसे क्षेत्रों में रखा गया है, जहां भूजल का बेहद अधिक दोहन हो रहा है। वहीं 11 (यानी 7.69 फीसदी) क्षेत्र गंभीर श्रेणी में है, जबकि आठ क्षेत्रों (5.59 फीसदी) को आंशिक रूप से गंभीर क्षेत्रों की श्रेणी में रखा गया है। वहीं महज 36 क्षेत्र (25.17 फीसदी) ही सुरक्षित माने गए हैं।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2023 की तुलना में 2024 में भूजल स्थिति में थोड़ा बदलाव हुआ है। सालाना भूजल पुनर्भरण 9.55 से बढ़कर 10.31 अरब घन मीटर (बीसीएम) हो गया है। इसी तरह दोहन के लिए उपलब्ध भूजल भी 8.69 से बढ़कर 9.36 बीसीएम हो गया है।
लेकिन दूसरी तरफ सालाना भूजल का हो रहा दोहन भी 11.8 से बढ़कर 12.72 अरब घन मीटर तक पहुंच गया है। ऐसे में भूजल के दोहन की दर जो पहले 135.74 फीसदी थी, वो बढ़कर 135.96 फीसदी पर पहुंच गई है।
भूजल संसाधन मूल्यांकन 2024 के मुताबिक, हरियाणा में भूजल का सबसे ज्यादा उपयोग कृषि के लिए किया जा रहा है। राज्य में कुल 35 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से करीब 11.21 लाख हेक्टेयर में ट्यूबवेल से सिंचाई की जाती है। राज्य में सिंचाई के लिए करीब 8.5 लाख ट्यूबवेल हैं।
रिपोर्ट में भूजल के बेहतर और सही इस्तेमाल के लिए कई सुझाव भी दिए गए हैं। इसमें फसलों में विविधता लाने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की बात कही गई है। इनमें खास तौर पर किसानों को धान और पानी की अधिक खपत वाली फसलों की जगह मक्का, सूरजमुखी, कपास, सब्जियां, बाजरा और मूंग जैसी फसलों को अपनाने की सलाह दी गई है। यह ऐसी फसलें हैं जिनके लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है।
गोपनपल्ली झील प्रदूषण मामले में एनजीटी ने अधिकारियों से मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 1 मई, 2025 को हैदराबाद की गोपनपल्ली झील में बढ़ते प्रदूषण के मामले को गंभीरता से लिया है। इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।
ट्रिब्यूनल ने जिन विभागों को नोटिस देने का निर्देश दिया है उनमें ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, तेलंगाना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और हैदराबाद महानगर जल आपूर्ति व सीवरेज बोर्ड शामिल हैं।
इन सभी विभागों से अगली सुनवाई से एक सप्ताह पहले अपना जवाब एनजीटी की दक्षिणी बेंच को सौंपने के लिए कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 1 जुलाई, 2025 को होगी।
गौरतलब है कि टाइम्स ऑफ इंडिया में 15 अप्रैल, 2025 को प्रकाशित एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। खबर के मुताबिक गोपनपल्ली झील में संदिग्ध जल प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में मछलियों मर रही हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पास के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से साफ और संभवतः बिना साफ किया गंदा पानी सीधे झील में डाला जा रहा है।
इसके अलावा खबर के मुताबिक नल्लागंडला और गोपनपल्ली सहित आसपास के इलाकों से आ रहा गन्दा पानी भी झील को दूषित कर रहा है। खबर में यह भी कहा गया है कि इस बारे में कई बार ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को शिकायत की गई है, लेकिन उसपर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।