पर्यावरण संबंधी अदालती फैसले : मंत्रालय ने बताया ओडिशा का औगला बंधा न तो वेटलैंड न ही ईको-सेंसिटिव जोन

मामला पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र औगला बंधा जलाशय और इसके किनारों हुए अवैध निर्माण व अतिक्रमण को हटाने से जुड़ा है
पर्यावरण संबंधी अदालती फैसले : मंत्रालय ने बताया ओडिशा का औगला बंधा न तो वेटलैंड न ही ईको-सेंसिटिव जोन
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ओडिशा के गंजाम जिले में स्थित औगला बंधा झील को अब तक वेटलैंड या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित नहीं किया गया है। यह जानकारी केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में 20 मई को दाखिल एक हलफनामे में दी है।

यह मामला पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र औगला बंधा जलाशय और इसके किनारों पर हुए अवैध निर्माण व अतिक्रमण को हटाने से जुड़ा है। ये निर्माण राज्य प्रशासन और निजी लोगों द्वारा किए गए हैं। यह क्षेत्र बरहामपुर तहसील के गोसानिनुआ गांव में स्थित है।

मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि औगला बंधा को न तो केंद्र सरकार और न ही ओडिशा सरकार ने अभी तक वेटलैंड या ईको-सेंसिटिव जोन घोषित किया है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों की निगरानी और संरक्षण की जिम्मेवारी राज्यों और राज्य वेटलैंड प्राधिकरणों की होती है। इसलिए कार्रवाई की जिम्मेदारी ओडिशा सरकार और उसके संबंधित विभागों की है।

एनजीटी ने इस मुद्दे पर पहले भी आदेश दे चुका है। तीन अगस्त 2022 को दिए एक आदेश में ट्रिब्यूनल ने गंजाम जिले के कलेक्टर को निर्देश दिया था कि वे औगला बंधा झील क्षेत्र में बने मां मंगला मंदिर (0.012 एकड़ क्षेत्रफल में) को एक महीने के भीतर हटाएं और भूमि को 'जलाशय' के रूप में बहाल करें।

इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह कुल 11.5 एकड़ भूमि — जिसमें मंदिर की हटाई गई भूमि भी शामिल हो — को चिह्नित करे और औगला बंधा के पास, यदि संभव हो, तो वहां या आसपास ही उतने ही आकार और गहराई का एक नया जल निकाय विकसित करे।

पटना में घरों से उठाया जा रहा है कचरा: पटना नगर निगम

पटना नगर निगम ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी ) को बताया है कि नालों की सफाई और ठोस कचरे का प्रबंधन उसकी जिम्मेदारी है, जिसे वह सीमित संसाधनों के बावजूद पूरी ईमानदारी से निभा रहा है। निगम की ओर से मुख्य नगर अभियंता द्वारा यह बात 20 मई, 2025 को दाखिल जवाबी हलफनामे में कही गई है।

नगर निगम के मुख्य अभियंता द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया कि नगर निगम नियमित रूप से अपने क्षेत्र के बड़े और छोटे नालों की सफाई करवा रहा है ताकि जलजमाव और ओवरफ्लो की स्थिति न बने। इसके लिए विशेष टीम तैनात की गई है, जो गाद निकालने और ठोस कचरा हटाने का काम करती है।

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पटना में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और प्रमुख ड्रेनेज सिस्टम के निर्माण, संचालन और रख-रखाव की जिम्मेदारी बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की है, यह पटना नगर निगम के आधीन नहीं है।

16 मई 2025 को लिखे गए एक पत्र का हवाला देते हुए नगर निगम ने कहा कि वह बरसात के मौसम में नालों को एसटीपी से जोड़ना चाहता है ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन से छह घाटों — लोहारवा, भरवा, गाय, रानी, अंता और मस्जिद घाट — के पास मौजूद सीवरेज नेटवर्क की जानकारी और एसटीपी परियोजनाओं की समयसीमा मांगी गई है।

नगर निगम ने यह भी जानकारी दी है कि पटना में घर-घर से कचरा एकत्र करने की व्यवस्था लागू कर दी गई है ताकि घरेलू कचरे को सही ढंग से छांटा, उठाया और निपटान किया जाए, जिससे कचरा नालों में न पहुंचे।

हलफनामे में यह भी कहा गया कि इन छह घाटों के पास नालों में कुछ प्रदूषक तत्वों की मात्रा अधिक हो सकती है, जैसा कि एनजीटी में दायर याचिका में कहा गया है, लेकिन निगम इन नालों की नियमित सफाई कर रहा है ताकि प्रदूषण का स्तर कम किया जा सके।

बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की ओर से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पटना में कई जगहों पर एसटीपी स्थापित करने के लिए टेंडर जारी किए जा चुके हैं और ठेके भी दिए जा चुके हैं। इनका निर्माण बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा तय समय सीमा में पूरा होने की उम्मीद है।

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