पर्यावरण मुकदमों की डायरी: महाराष्ट्र में बिना पर्यावरणीय मंजूरी के बन रहे हैं घर

देश की विभिन्न अदालतों में पर्यावरण से संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-
पर्यावरण मुकदमों की डायरी: महाराष्ट्र में बिना पर्यावरणीय मंजूरी के बन रहे हैं घर
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महाराष्ट्र के पुणे जिले में ग्राम वडगांव, सिंहगढ़ रोड, में दो अलग-अलग परियोजनाएं थीं, प्रयेजा सिटी-प्रथम और प्रयेजा सिटी-द्वितीय। परियोजना के अधिवक्ता  ने परियोजना प्रयेजा सिटी-प्रथम के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) लिए बिना निर्माण गतिविधि की। जल अधिनियम 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के तहत इसे स्थापित करने के लिए सहमति और और संचालित करने के लिए सहमति भी प्राप्त नहीं की गई थी।

यह 23 सितंबर को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष महाराष्ट्र राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तुत संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है।

उस स्थल पर चार बोरवेल पाए गए थे, जिनमें से दो बोरवेल का उपयोग वर्षा जल संचयन के लिए किया गया था और अन्य दो बोरवेलों का उपयोग निवासियों द्वारा घरेलू उद्देश्य को छोड़कर अन्य के लिए किया जा रहा था। भूजल की निकासी के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) से कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं लिया गया था। परियोजना के अधिवक्ता भूजल परीक्षण रिपोर्ट नहीं दिखा पाए और परिसर में सूखे कचरे को अलग करने संबंधी कोई गतिविधि नहीं दिखाई दी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना के अधिवक्ता ने पुणे नगर निगम द्वारा परियोजना को मंजूरी के अनुसार विकसित किया था, जिसमें आवश्यक खुली जगह दी गई है।

पंजाब के जिलेटिन उद्योग का मामला

पंजाब सरकार के मुख्य सचिव ने जिलेटिन उद्योग के कथित अवैध संचालन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह औद्योगिक इकाई जीरकपुर, साहिबजादा अजीत सिंह नगर में अजय जिलेटिन के नाम से संचालित होती है। शिकायत थी कि इस तरह की अवैधता के संबंध में उद्योग बिना सहमति के 28 साल से काम कर रहा है। आगे इस इकाई को स्थापित करने के लिए मानदंड और मास्टर प्लान पर विचार किए बिना, इसे लगाने और संचालित करने के लिए सहमति दी गई थी।

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ग्राम नगला, तहसील डेरा बस्सी की राजस्व संपदा में वर्ष 1986 में औद्योगिक इकाई अस्तित्व में आई थी। उस समय ऐसी इकाइयों की स्थापना के लिए एसपीसीबी द्वारा कोई विशेष दिशा-निर्देश तैयार नहीं किए गए थे। इसलिए 15 सितंबर, 1986 पीपीसीबी द्वारा प्रदूषण के संबंध में अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) औद्योगिक इकाई को दिया गया था। 

उस समय, ज़ीरकपुर एक छोटा गांव था, जिसे बाद में नगरपालिका क्षेत्र और नगर परिषद के रूप में अधिसूचित किया गया था। ज़ीरकपुर औद्योगिक इकाई की स्थापना के लगभग 15 साल बाद वर्ष 2001 में यह अस्तित्व में आया। ज़ीरकपुर के नगर परिषद के गठन के बाद, क्षेत्र में आवास परियोजनाओं से संबंधित बहुत सारे निर्माण शुरू हुए।

इसके बाद, ज़ीरकपुर के मास्टर प्लान को 13 नवंबर, 2009 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग द्वारा अधिसूचित किया गया था। जिसमें गांव नगला का क्षेत्र, जिसमें उद्योग स्थित है, को आवासीय क्षेत्र के रूप में सीमांकित किया गया था।

उद्योग एक मौजूदा इकाई है, जिला टाउन प्लानर, एसएएस नगर द्वारा ज़ीरकपुर के संशोधित मास्टर प्लान में चिह्नित किया गया था। इसलिए, उद्योग के संचालन के संबंध में, उसके स्थान और स्थापित करने के संबंध में किसी भी अवैधता का उल्लेख नहीं किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक इकाई और समूह आवास परियोजना (एस्कॉन एरिना) के बीच की दूरी 100 मीटर से अधिक है। इसके अलावा, इस उद्योग को 28 जनवरी, 2019 को संचालित करने के लिए एक सहमति प्रदान की गई थी क्योंकि इसमें आवश्यक अपशिष्ट उपचार संयंत्र और वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित करने के साथ-साथ वृक्षारोपण और सिंचाई के लिए भूमि पर उपचारित अपशिष्ट के निपटान की व्यवस्था की गई थी।

इफ्लुएंट / स्टैक एमिशन सैंपलिंग की गई है, जिससे पता चला है कि इंडस्ट्री इफ्लुएंट और स्टैक एमिशन टार्गेट हासिल कर रही थी। हालांकि, दुर्गंध के मुद्दे को नियंत्रित करने के लिए, उद्योग को पीपीसीबी द्वारा आवश्यक उपचारात्मक उपाय करने के लिए कहा था। पीपीसीबी के निर्देश के अनुपालन में उद्योग ने पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में 11 मार्च को 5,85,000 रुपये की राशि जमा की थी।

जंगली गधा अभयारण्य में हो अवैध अतिक्रमण : एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 23 सितंबर को निर्देश दिया कि अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि गुजरात के लिटिल रण ऑफ कच्छ में जंगली गधा अभयारण्य में कोई अवैध अतिक्रमण हो। इसके अलावा राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति और वन एवं पर्यावरण विभाग, गुजरात की सहमति के बिना उक्त अभयारण्य क्षेत्र में पट्टे का कोई अनुदान नहीं दिया जाना चाहिए। यह आगे निर्देशित किया गया कि नियमों के अनुसार निर्धारित 10 किलोमीटर के दायरे में या पैरामीटर के भीतर किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

एनजीटी के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कटिया हैदराली अहमदभाई ने आरोप लगाया था कि अवैध अतिक्रमण के कारण मछुआरों का मछली पकड़ने का व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। यह भी कहा गया कि अभयारण्य में और अभयारण्य के 10 किलोमीटर के दायरे में हजारों अवैध नमक के उद्योग चल रहे हैं। क्षेत्र में बहने वाली नदियों को अवरुद्ध कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अभयारण्य क्षेत्र में जाने के लिए पतली सड़क का निर्माण किया है और मैंग्रोव और अन्य समुद्री पौधों को नष्ट कर दिया गया है।

अवैध तरीके से पाले जा रहे हैं झींगा, एनजीटी ने किया जवाब तलब

रोशनी बी. पटेल द्वारा गुजरात के सूरत में अवैध तटीय झींगा पालने के खिलाफ दायर एक याचिका के जवाब में - नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 22 सितंबर को निम्नलिखित उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। इनमें केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, गुजरात राज्य सरकार, गुजरात तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कलेक्टर सूरत, हजीरा फ्रेट कंटेनर स्टेशन व अन्य उत्तरदाताओं को छह सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए निर्देशित किया गया है और इस मामले को 7 जनवरी 2021 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

याचिका में कहा गया था कि गुजरात के सूरत जिले में तापी और मिन्धौला नदी के किनारे और ग्राम दमका, राजगिरि, जूनागम, आबवा, डुमास, खजोद, बुडिय़ा, गभनी, तेलंगापोर, उबेर, जियाव और कहीं और चौरासी तालुका, में बाढ़ के मैदानों के भीतर और तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) में व्यावसायिक तौर पर अवैध तरीके से तटीय झींगा पालन किया जा रहा है।

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