दिल्ली: मुंडका में तालाबों पर अवैध कब्जा, एनजीटी ने डीडीए से 15 दिन में मांगी रिपोर्ट

यह मामला दिल्ली के मुंडका में तालाबों को अवैध रूप से भरने, उन्हें नए प्रोजेक्ट्स के लिए इस्तेमाल करने और जमीन हड़पने से जुड़ा है।
Credit : Vikas Choudhary
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सारांश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली के मुंडका में तालाबों पर अवैध कब्जे के मामले में डीडीए और जिला मजिस्ट्रेट को 15 दिन में रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। एनजीटी ने तालाबों के सीमांकन, अतिक्रमण की पहचान और बहाली के लिए कार्ययोजना तैयार करने की सख्त हिदायत दी है। रिपोर्ट में अतिक्रमण की जानकारी और उसे हटाने के कदम शामिल होने चाहिए।

18 नवंबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और पश्चिमी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट को सख्त निर्देश दिए हैं कि मुंडका इलाके में अतिक्रमित तालाबों के सीमांकन (डिमार्केशन) का काम 15 दिनों के भीतर पूरा किया जाए और इस बाबत स्पष्ट रिपोर्ट दाखिल की जाए।

रिपोर्ट में तालाबों की तालाबों की सही सीमा और नाप, कितनी जमीन पर कब्जा है उसकी जानकारी, अतिक्रमण करने वालों के नाम, पिता का नाम और पता, और किस तरह का अतिक्रमण हुआ है, इसके साथ-साथ अतिक्रमण हटाने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं और आगे क्या करने की जरूरत है, इस सब की जानकारी तय समय सीमा के साथ होनी चाहिए।

अदालत ने आदेश दिया है कि तालाबों के सीमांकन और अतिक्रमण की पहचान से संबंधित रिपोर्ट डीडीए और जिला मजिस्ट्रेट को तीन सप्ताह के भीतर जमा करनी होगी।

कैसे किया जाएगा तालाबों को बहाल? एनजीटी ने मांगी जानकारी

अदालत ने डीडीए को यह भी निर्देश दिया कि वह तालाबों की बहाली और संरक्षण के लिए एक कार्ययोजना (एक्शन प्लान) तैयार करे। इसमें किए जाने वाले कामों, बजट, कार्यों का वितरण, काम पूरा करने की समयसीमा और निगरानी के लिए नियुक्त नोडल अधिकारियों का विवरण शामिल होना चाहिए, ताकि कार्य समय पर पूरा हो सके।

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डीडीए की ढिलाई पर अदालत सख्त

अदालत ने कहा कि डीडीए को तालाबों का सीमांकन और अतिक्रमण की पहचान करनी थी, लेकिन "ऐसा लगता है कि उसके अधिकारियों की अयोग्यता, लापरवाही और प्रतिबद्धता की कमी के कारण, साथ ही संबंधित राजस्व अधिकारियों की उदासीनता के चलते, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों के बावजूद यह काम लंबे समय तक पूरा नहीं किया जा सका है।"

अदालत ने दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को भी निर्देश दिया है कि वह संबंधित तालाब के पुनर्निर्माण और संरक्षण के लिए एक कार्ययोजना तैयार करे।

इस योजना में किए जाने वाले काम, बजट, कार्यों का वितरण, काम पूरा करने की समयसीमा और निगरानी के लिए नियुक्त नोडल अधिकारियों का विवरण शामिल होना चाहिए। डीडीए और दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को यह कार्ययोजनाएं छह सप्ताह के भीतर जमा करनी होंगी।

ट्रिब्यूनल ने दिल्ली स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी को निर्देश दिया है कि वह छह हफ्तों के भीतर इस मामले में जल निकायों के सीमांकन और अतिक्रमण की पहचान पर विस्तृत रिपोर्ट जमा करे, जो सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों के अनुसार हो।

वेटलैंड अथॉरिटी को यह भी स्पष्ट करना होगा कि आदेश न मानने वाली एजेंसियों के खिलाफ उसने क्या कार्रवाई की है। एनजीटी ने चेतावनी दी है कि यदि रिपोर्ट समय पर नहीं दी गई, तो दोषी पक्षों पर जुर्माना लगाया जाएगा।

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अदालत ने यह भी कहा है कि यदि कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ और रिपोर्ट/कार्ययोजना समय पर नहीं दी गई, तो स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी, डीडीए के वाइस-चेयरमैन, दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के सीईओ, दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर और पश्चिमी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट को अगली सुनवाई पर कोर्ट में उपस्थित रहना होगा। इस मामले में अगली सुनवाई 15 जनवरी 2026 को होनी है।

क्या है मामला?

यह मामला दिल्ली के मुंडका में तालाबों को अवैध रूप से भरने और उन्हें नए प्रोजेक्ट्स के लिए अन्य उपयोग में बदलने और जमीन हड़पने से संबंधित है।

याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से शांगुशर, गूगा, जोहड़ी और गूली तालाबों का नाम लिया है, जो कथित तौर पर पहले ही भर दिए गए हैं और उनका उपयोग अवैध रूप से दूसरी परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि ऐतिहासिक शिशुवाला तालाब का पानी पंप सेट्स की मदद से लगातार दो महीने से निकाला जा रहा है। पश्चिम की ओर तालाब की जमीन पर सड़क बन रही है और तालाब की जमीन को मिट्टी डालकर समतल किया जा रहा है, ताकि उसका उपयोग बदला जा सके और जमीन हड़प ली जाए।

ऐसे में इस पूरे मामले को लेकर एनजीटी अब सीधे जिम्मेवार एजेंसियों से जवाब मांग रहा है और सख्त रुख अपनाए हुए है।

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