
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली में यमुना किनारे भूजल के अवैध दोहन से जुड़ी शिकायतों पर अधिकारियों से जवाब मांगा है।
इस मामले में चार अप्रैल 2025 को दिए अपने आदेश में अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी), केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पूर्वी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया में 2 अप्रैल 2025 को छपी एक खबर के आधार पर अदालत ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है।
खबर के मुताबिक, रात के समय अवैध रूप से चोरी-छुपे बोरवेल की मदद से बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जा रहा है। इसमें भूजल निकालने वाले टैंकरों का एक संगठित गिरोह शामिल है। खबर में यह भी कहा गया है कि इन बोरवेलों को खोदने के लिए जेसीबी और अर्थमूवर जैसी भारी मशीनों का उपयोग किया जाता है और निकाले गए पानी को अवैध रूप से टैंकरों में भरकर बेच दिया जाता है।
खबर में यह भी कहा गया है कि रात में कई बोरवेलों से अंडरग्राउंड पाइपलाइन और पावरफुल पंपों की मदद से पानी निकाला जाता है। एक टैंकर भरने में करीब 30 मिनट लगते हैं। यह पूरा नेटवर्क बेहद व्यवस्थित और पेशेवर तरीके से चलाया जा रहा है।
दिल्ली के गोयला खुर्द में संरक्षित तालाब पर बना हाईवे, एनजीटी ने डीडीए से मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के उपाध्यक्ष से दिल्ली के गोयला खुर्द गांव में एक तालाब के ऊपर बनाए जा रहे हाईवे के मामले में मदद करने को कहा है। इस हाईवे का निर्माण भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा किया गया है।
गौरतलब है कि यह यह तालाब भारतीय आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा सूचीबद्ध एक संरक्षित वेटलैंड है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा दाखिल जवाब में भी इस आरोप की पुष्टि हुई है कि एनएचएआई ने इस तालाब के ऊपर एक फ्लाईओवर का निर्माण किया है।
कथित तौर पर इस जमीन को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा एनएचएआई को सौंपा गया है। दिलचस्प बात यह है कि जहां डीपीसीसी ने तो उल्लंघन की पुष्टि की है, वहीं डीडीए ने अब तक अदालत को अपना जवाब नहीं दिया है। मामले की अगली सुनवाई 8 अगस्त, 2025 को होनी है।
इस बारे में चार अप्रैल, 2025 को सुनवाई हुई थी। इस दौरान, डीडीए की ओर से पेश वकील ने एनजीटी को बताया कि छह रिमाइंडर भेजने के बावजूद, मामले पर जवाब देने के लिए उन्हें कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिले हैं। वास्तव में, दो प्रमुख अधिकारियों - भूमि प्रबंधन के उप निदेशक और कार्यकारी अभियंता को अदालत में पेश होना था, लेकिन वे नहीं आए।
एनजीटी ने जनवरी 2025 में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा दाखिल अस्पष्ट और गूढ़ जवाब पर भी नाराजगी जताई है। एनएचएआई ने दावा किया है कि गोयला खुर्द गांव के भूमि अधिग्रहण में उसकी कोई भूमिका नहीं थी - यह डीडीए द्वारा किया गया था - और उसने ईआईए अधिसूचना, 2006 के प्रावधानों का पालन किया था।
वहीं एनएचएआई की ओर से पेश वकील ने चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है।
गौरतलब है कि इस मामले को एनजीटी ने स्वतः संज्ञान में लिया है। आरोप है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने गोयला खुर्द गांव में तालाब के ऊपर शहरी विस्तार सड़क-II का निर्माण किया है। यह तालाब दिल्ली में संरक्षण के लिए सूचीबद्ध हजारों तालाबों में से एक है।