बढ़ते तापमान के साथ भारत के प्रमुख जलाशयों में 45 फीसदी तक गिरा जल स्तर

दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने में अभी भी दो महीनों का समय बाकी है
तमिलनाडु में सथानूर बांध सहित सूखी पड़ी नदी तलहटी; फोटो: आईस्टॉक
तमिलनाडु में सथानूर बांध सहित सूखी पड़ी नदी तलहटी; फोटो: आईस्टॉक
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भारत के प्रमुख जलाशयों का जल स्तर उनकी कुल क्षमता के 45 फीसदी तक गिर गया है। चिंता की बात है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मार्च से मई के बीच भीषण गर्मी वाले दिनों की संख्या सामान्य से अधिक रहने की भविष्यवाणी की है, जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने में अभी भी दो महीनों का समय बाकी है। इस दौरान लू का कहर भी जारी रह सकता है।

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने 20 मार्च 2025 को इस बारे में जो आंकड़ों साझा किए हैं, उनके मुताबिक 155 प्रमुख जलाशयों में 8,070 करोड़ क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी मौजूद है। वहीं इन जलाशयों की कुल क्षमता 18,080 करोड़ क्यूबिक मीटर है। मतलब कि इन जलाशयों में अपनी क्षमता का करीब 45 फीसदी पानी मौजूद है।

पिछले वर्ष इसी अवधि के तुलना में जिन राज्यों के जलाशयों में इस समय कम पानी मौजूद है उनमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, झारखंड, ओडिशा, नागालैंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड शामिल हैं।

चिंता की बात है कि उत्तरी क्षेत्र में जलाशयों का जल स्तर उनकी कुल क्षमता का महज 25 फीसदी रह गया है। इस क्षेत्र में पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में 11 जलाशय हैं। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब दोनों में जल भंडारण सामान्य से कम है, जो साल के इस समय के लिए सामान्य से क्रमशः 36 और 45 फीसदी कम है।

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बढ़ता तापमान, गिरता जलस्तर फसलों के लिए पैदा कर सकता है मुश्किलें

बता दें कि भारत के कई हिस्सों में पहले ही दिन और रात का तापमान सामान्य से बहुत अधिक है। वहीं मानसून आने में अभी भी दो महीने से ज्यादा का समय है, ऐसे में जलाशयों का घटता जलस्तर रबी और खरीफ के बीच उगाई जाने वाली गर्मियों की फसलों की पैदावार को प्रभावित कर सकता है।

वहीं दक्षिणी क्षेत्र के जलाशयों में मौजूदा जलस्तर देश में दूसरा सबसे कम है। इस क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं, जिसमें कुल 43 जलाशय हैं। इनका मौजूदा जलस्तर कुल क्षमता का महज 41 फीसदी है।

इसी तरह भारत के पश्चिमी क्षेत्र में जलाशयों का जलस्तर उनकी क्षमता का 55 फीसदी है। वहीं मध्य क्षेत्र में यह आंकड़ा 49 फीसदी, जबकि पूर्वी क्षेत्र में 44 फीसदी रिकॉर्ड किया गया है।

इस बीच सीडब्ल्यूसी के आंकड़ों में दर्ज 20 नदी घाटियों में से 14 में मौजूद जल भंडार उनकी क्षमता के आधी से भी कम था।

इन 20 नदी बेसिनों में से गंगा अपनी सक्रिय क्षमता के 50 फीसदी पर है। वहीं  गोदावरी में 48 फीसदी, नर्मदा में 47 फीसदी और कृष्णा में महज 34 फीसदी पानी ही बचा है।

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भारत में नदियां न केवल कृषि बल्कि पीने, दैनिक उपयोग, परिवहन और बिजली जैसी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए जल प्रदान करती हैं।

ऐसे में इन नदी घाटियों में घटता जल स्तर इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन, जीविका और कृषि पर गहरा असर डाल सकता है, क्योंकि यह लोग अपनी इन जरूरतों को पूरा करने के लिए इन नदियों पर ही निर्भर हैं। इसका सीधा असर इन क्षेत्रों की सामजिक आर्थिक स्थिति पर भी पड़ेगा।

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