बांधों के निर्माण में तेजी के बावजूद जलाशयों में मौजूद पानी में आई है कमी, जानिए कौन है जिम्मेवार

जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं और आबादी बढ़ रही है उसके चलते इन जलाशयों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है।
भारत के बांसवाड़ा जिले में स्थित माही बांध; फोटो: आईस्टॉक
भारत के बांसवाड़ा जिले में स्थित माही बांध; फोटो: आईस्टॉक
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भले ही पिछले 20 वर्षों में नए बांधों के निर्माण के चलते वैश्विक स्तर पर जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता में इजाफा हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद जलाशयों में मौजूद पानी की मात्रा घट रही है। इसका मतलब है कि जल संसाधनों पर बढ़ते दबाव को दूर करने के लिए केवल ज्यादा से ज्यादा बांधों का निर्माण ही काफी नहीं है।

यह जानकारी टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी के अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता हुइलिन गाओ के नेतृत्व में किए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।

यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो यह कृत्रिम जलाशय पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए काफी महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। लेकिन जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है और आबादी बढ़ रही है उसके चलते इन जलाशयों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है।

रिसर्च में जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक वैश्विक स्तर पर जलाशयों की कुल भण्डारण क्षमता सालाना 27.82 क्यूबिक किलोमीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। इस कुल भण्डारण क्षमता के बढ़ने के पीछे की वजह तेजी से नए बांधों का होता निर्माण है। लेकिन दूसरी तरफ नए जलाशयों के निर्माण के बावजूद इन जलाशयों में मौजूद पानी का भण्डारण घट रहा है। 

अध्ययन के अनुसार जलाशयों का भण्डारण 20 वर्षों में 0.82 फीसदी की दर से घट रहा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जलाशयों के भंडारण में आ रही इस गिरावट की गणना कुल भंडारण क्षमता में वास्तविक भंडारण के अनुपात के रूप में दर्ज की गई है। इसे कुल भंडारण की मात्रा के अंश या अनुपात के रूप में समझा जा सकता है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 1999 से 2018 के बीच वैश्विक स्तर पर 7,245 जलाशयों के भंडारण का अनुमान लगाने के लिए उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है। रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक भंडारण में आई गिरावट दक्षिण में स्थित देशों में विशेष रूप से स्पष्ट थी। वहीं उत्तर के क्षेत्रों में इसमें वृद्धि दर्ज की गई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक भंडारण की मात्रा में गिरावट मुख्य रूप से अफ्रीका और दक्षिण अमेरिकी देशों में केंद्रित थी, जहां पानी की मांग तेजी से बढ़ रही है।

बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा है दबाव

ऐसे में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि एक तरफ पानी के अपवाह में आती गिरावट और बढ़ती मांगे के चलते नए बांध भी पानी के बढ़ते तनाव को कम करने में सफल नहीं होंगें।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता हुइलिन गाओ ने रायटर्स को दी जानकारी में कहा है कि जलाशयों की दक्षता को कम करने में जलवायु परिवर्तन भी एक महत्वपूर्ण कारक था, लेकिन साथ ही पानी की बढ़ती मांग ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका कहना है कि, "भले ही तापमान में होती वृद्धि थम जाए, उसके बावजूद बढ़ती मांग और नए निर्माण के जारी रहने की सम्भावना है।"

बता दें कि इस अध्ययन में तलछट या जमा होते गाद के प्रभावों को शामिल नहीं किया है, जो बांधों और जलाशयों के लिए एक बड़ी समस्या है। गौरतलब है कि यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी द्वारा जनवरी में जारी किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि इस गाद की वजह से 2050 तक बड़े बांधों की जल भण्डारण क्षमता में 26 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

अनुमान है कि इससे कुल भंडारण क्षमता में 165,000 क्यूबिक मीटर की गिरावट आ सकती है। यह गिरावट कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो भारत, चीन, इंडोनेशिया, फ्रांस और कनाडा के द्वारा हर साल जितना पानी उपयोग किया जा रहा है उसके कुल योग के बराबर है। अनुमान है कि इसकी वजह से न केवल पानी को लेकर तनाव बढ़ेगा, साथ ही बिजली उत्पादन और कृषि पर भी असर पड़ सकता है।

इसमें कोई शक नहीं की इन बड़े बांधों और जलाशयों ने जल प्रबंधन में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इनकी वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा है। साथ ही इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए हैं। ऐसे में इनकी सामाजिक लागत भी कम नहीं है। इंटरनेशनल रजिस्टर ऑफ लार्ज डैम्स के मुताबिक आज दुनिया भर में 58,713 बड़े बांध हैं, जिनमें से 4,407 भारत में हैं। वहीं अमेरिका में इनकी संख्या 9,263 और चीन में सबसे ज्यादा 23,841 है।

इस रिसर्च में भारत के सिंधु बेसिन का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां भूजल में गिरावट आ रही है। वहां बढ़ती इंसानी गतिविधियों के चलते सतह और भूजल दोनों जगहों पर मौजूद जल संसाधन पर दबाव बढ़ा है। रिसर्च के मुताबिक भारत में जिस तरह से पानी की मांग बढ़ रही है उसके कारण पैदा होने वाले तनाव को नए जलाशयों के जरिए भी दूर नहीं किया जा सकेगा।

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