
एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि अगर मौजूदा प्रदूषण और उत्सर्जन की स्थिति जारी रही, तो इस सदी के अंत तक दुनिया की 40 फीसदी बड़ी नदियों में पानी का बहाव कम हो जाएगा। इसका असर करीब 85 करोड़ लोगों पर पड़ेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि नए जलवायु मॉडल पुराने मुकाबले ज्यादा सही अनुमान दे रहे हैं, जिससे नदियों के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ गई है।
यह शोध नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर एक्सपीरियंसल एआई के शोधकर्ताओं ने किया है। शोध में कहा गया है कि यह पृथ्वी प्रणाली मॉडलों के पिछले विश्लेषण द्वारा अनुमानित संख्या से तीन गुना से भी अधिक है।
शोध के अनुसार, कुछ सबसे उन्नत मॉडल पानी की कमी को लेकर सबसे खराब हालात का अनुमान लगाते हैं। जनसंख्या से जुड़े अनुमान इसलिए जरूरी हैं क्योंकि इन्हीं के आधार पर नीति निर्माता तय करते हैं कि भोजन, पानी और ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाने होंगे। नदियों का पानी खेतों की सिंचाई करता है और बिजली बनाने में भी मदद करता है।
अध्ययन में बताया गया है कि पृथ्वी प्रणाली मॉडल ऐसे जटिल कंप्यूटर सिमुलेशन हैं जो धरती की प्रक्रियाओं, जैसे मौसम, महासागर और मानव गतिविधियों को मिलाकर भविष्य का अनुमान लगाते हैं। इन मॉडलों के अनुसार, दुनिया की 30 बड़ी नदियों में से 40 फीसदी में 2100 तक पानी का बहाव घट सकता है। इससे जितनी आबादी प्रभावित होगी, वह न्यूयॉर्क शहर से 100 गुना बड़ी होगी। पहले यह अनुमान लगभग 26 करोड़ लोगों का था, लेकिन अब यह संख्या कहीं ज्यादा बताई जा रही है।
एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक इस अध्ययन में दुनिया भर की 30 सबसे बड़ी नदी घाटियों को चुना गया, जिनमें अमेजन, कांगो, गंगा, ब्रह्मपुत्र और नील नदियां शामिल हैं। शोधकर्ता यह देखने की कोशिश कर रहे थे कि इन नदी घाटियों में बहाव या जल उपलब्धता, जलवायु मॉडलों में कैसे प्रस्तुत की जाती है।
जलवायु मॉडल इन बदलावों का अनुमान लगाने के लिए अलग-अलग समीकरणों और मापदंडों का इस्तेमाल करते हैं। शोध में यह देखने की कोशिश की गई है कि ये कितने कारगर हैं।
शोधकर्ताओं ने युग्मित मॉडलिंग अंतर-तुलना परियोजनाओं की दो पीढ़ियों, सीएमआईपी5 और हाल ही की सीएमआईपी6, की तुलना यह देखने के लिए की कि 1960 से 2005 तक के सालाना बहाव के ऐतिहासिक अनुमानों के मुकाबले उनका प्रदर्शन कैसा रहा।
बाद वाली मॉडलिंग प्रणाली, सीएमआईपी6, अधिक कुशल और सटीक पाई गई। इसे भविष्य पर लागू करते हुए, पाया गया कि अधिक कुशल मॉडल पानी की उपलब्धता के संदर्भ में भविष्य की स्थिति को और भी बदतर बना रहे हैं।
सीएमआईपी6 ने जलवायु मॉडल समीकरणों में भूमि, महासागर और बर्फ की प्रकृति जैसे व्यापक प्राकृतिक चीजों को शामिल करने का भी बेहतर काम किया है। जब बादल निर्माण और संवहन (गर्मी से ठंडे की ओर बढ़ना) जैसी घटनाओं से गणितीय समीकरण बनाने की बात आती है, जिन्हें पैरामीटराइजेशन कहा जाता है, तो इसने बेहतर प्रदर्शन किया।
शोधकर्ताओं के द्वारा पांच अलग-अलग कार्बन उत्सर्जन परिदृश्यों पर भी मॉडल चलाए गए। जिसके मुताबिक, अगर दुनिया ज्यादा हरी-भरी होगी, तो पानी की उपलब्धता अधिक होगी और पानी की कमी के कारण कम लोगों पर असर पड़ेगा।
कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ 90 करोड़ लोगों के बजाय 50 करोड़ लोगों पर ही असर पड़ेगा, लेकिन दुनिया के कुछ हिस्सों में पानी की उपलब्धता अभी से ही कम हो रही है।
यह शोध नीति निर्माता और जल संसाधन प्रबंधक जो प्रभावों को समझने और अनुकूलन की जानकारी देने के लिए पृथ्वी प्रणाली मॉडल के परिणामों का उपयोग करते हैं, उनके लिए अहम है। साथ ही प्राकृतिक वैज्ञानिक, डेटा वैज्ञानिक और कम्प्यूटेशनल मॉडलर जो पृथ्वी प्रणाली मॉडल बनाते हैं और परिणामों का विश्लेषण करते हैं उनके लिए भी महत्वपूर्ण है।