
एस्टेरॉयड ‘2025 टीएफ’ एक अक्टूबर को अंटार्कटिका के ऊपर से केवल 428 किमी की दूरी से गुजरा, यह ऊंचाई कई उपग्रहों से भी कम है।
इसका आकार 3.2 से 9.8 फीट के बीच था, यानी लगभग एक छोटी कार जितना छोटा पिंड।
वैज्ञानिकों ने इसे गुज़रने के कुछ घंटे बाद ही पहचाना, जब नासा की कैटालिना स्काई सर्वे से आंकड़े प्राप्त हुए।
यह एस्टेरॉयड पृथ्वी के लिए खतरा नहीं था और अब 2087 में फिर से लौटने की संभावना है।
अंतरिक्ष में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। एक छोटा एस्टेरॉयड या क्षुद्रग्रह पृथ्वी के बहुत करीब से होकर गुजरा, लेकिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। इस क्षुद्रग्रह का नाम अब ‘‘2025 टीएफ’ रखा गया है। यह एक अक्टूबर की रात लगभग 8:47 बजे (ईस्टर्न टाइम) अंटार्कटिका के ऊपर से होकर निकला। उस समय यह पृथ्वी की सतह से लगभग 428 किलोमीटर दूर था, जो कि कई उपग्रहों की कक्षा से भी नीचे है।
इसकी ऊंचाई लगभग अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की कक्षा के बराबर थी, जो पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर घूमता है। यानी यह एस्टेरॉयड धरती के बेहद करीब से गुजरा, लेकिन शुक्र है कि यह बहुत छोटा था, इसलिए किसी तरह का खतरा नहीं हुआ।
आकार छोटा लेकिन घटना महत्वपूर्ण
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने पुष्टि की कि यह क्षुद्रग्रह आकार में 3.2 से 9.8 फीट के बीच था, यानी लगभग एक छोटी कार जितना। इस आकार की वस्तु अगर पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करती, तो वह एक तेज चमकदार आग के गोले की तरह दिखाई देती और कुछ ही सेकंड में जलकर खत्म हो जाती।
एयरोस्पेस सुरक्षा अनुसंधान समूह के मुताबिक, अधिकतर उपग्रह पृथ्वी से 100 से 1,242 मील की ऊंचाई पर परिक्रमा करते हैं। इसका मतलब है कि यह एस्टेरॉयड उनसे भी नीचे आया था, जो कि एक बेहद असामान्य और दिलचस्प खगोलीय घटना है।
समय रहते नहीं दिखा
इस घटना की सबसे रोचक बात यह रही कि किसी ने भी इसे गुजरने से पहले नहीं देखा। वैज्ञानिकों को इसका पता तब चला जब यह पृथ्वी के पास से गुजर चुका था। कुछ घंटे बाद, कैटालिना स्काई सर्वे, जो कि नासा द्वारा संचालित एक प्रोजेक्ट है, ने अपने आंकड़ों में इस क्षुद्रग्रह की झलक पकड़ी।
कैटालिना स्काई सर्वे का काम होता है पृथ्वी के आसपास के पृथ्वी के निकटवर्ती पिंड (एनईओ) की निगरानी करना और यह देखना कि कहीं कोई वस्तु पृथ्वी से टकराने की कक्षा में तो नहीं है। इस मिशन के जरिए मिलने वाले आंकड़ों की मदद से ही वैज्ञानिकों को पता चला कि 2025 टीएफ कितनी नजदीकी से पृथ्वी के पास से गुजरा था।
बाद में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने इस घटना की पुष्टि की और इसकी सटीक दूरी और समय के बारे में बताया है। एजेंसी का कहना है कि अंतरिक्ष के अंधेरे में एक मीटर आकार की वस्तु को ढूंढना और उसकी स्थिति का सटीक अनुमान लगाना एक बेहद कठिन कार्य है। इस अवलोकन की मदद से वैज्ञानिकों ने इस क्षुद्रग्रह की दूरी और समय को अत्यधिक सटीकता से तय किया।
दोबारा नहीं लौटेगा जल्दी
ईएसए के वैज्ञानिकों ने गणना की है कि ‘2025 टीएफ’ अब दोबारा पृथ्वी के पास अप्रैल 2087 में आएगा। यानी यह क्षुद्रग्रह फिर से करीब 62 साल बाद पृथ्वी के निकट पहुंचेगा।
एक और क्षुद्रग्रह भी गुजरा अगले दिन
दिलचस्प बात यह रही कि इस घटना के अगले ही दिन एक और छोटा क्षुद्रग्रह भी पृथ्वी के पास से गुजरा। इसे ‘2025 टीक्यू2’ नाम दिया गया है। यह दो अक्टूबर को कनाडा के ऊपर से लगभग 4,850 किलोमीटर की दूरी से निकला।
यह दूसरा क्षुद्रग्रह भी छोटा था और इससे भी कोई खतरा नहीं था। लगातार दो दिनों में दो छोटे क्षुद्रग्रहों का इतने करीब से गुजरना खगोल विज्ञान के लिए एक दिलचस्प और अध्ययन योग्य घटना मानी जा रही है।
क्या यह खतरनाक थे?
नासा के निकट-पृथ्वी वस्तु अध्ययन केंद्र के मुताबिक, हर साल हजारों छोटे-बड़े अंतरिक्ष पिंड पृथ्वी के पास से गुजरते हैं। लेकिन इनमें से बहुत कम ही “संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रह” यानी संभावित रूप से खतरनाक क्षुद्रग्रह की श्रेणी में आते हैं।
किसी वस्तु को खतरनाक तभी माना जाता है जब उसका आकार कम से कम 500 फीट हो और वह पृथ्वी से लगभग 75 लाख किलोमीटर के भीतर आए।
इस मानक के अनुसार, ‘2025 टीएफ’ और ‘2025 टीक्यू 2’ दोनों ही खतरनाक नहीं थे, क्योंकि उनका आकार बहुत छोटा था और वे पृथ्वी से टकराने की दिशा में नहीं थे।
हाल के दिनों में कई छोटे एस्टेरॉयड
नासा के आंकड़ों के अनुसार, 23 सितंबर से 28 सितंबर 2025 के बीच 10 छोटे क्षुद्रग्रह पृथ्वी के इतने करीब से गुजरे जितनी दूरी पर चंद्रमा परिक्रमा करता है। हालांकि इनमें से कोई भी इतना बड़ा नहीं था कि वह पृथ्वी के लिए खतरा पैदा करे।
यह घटना यह दिखाती है कि अंतरिक्ष में ऐसी छोटी वस्तुएं लगातार पृथ्वी के आसपास घूमती रहती हैं, जिनमें से कई का हमें बाद में ही पता चलता है। हालांकि वैज्ञानिक और अंतरिक्ष एजेंसियां लगातार ऐसे पिंडों की निगरानी करती हैं, लेकिन छोटे आकार के क्षुद्रग्रहों को पहले से पहचान पाना अभी भी बहुत कठिन है।
फिर भी, इस तरह की घटनाएं खगोलविदों के लिए अनुसंधान और तकनीक के विकास का अवसर बनाते हैं, जिससे भविष्य में पृथ्वी के लिए संभावित खतरों की पहचान पहले से की जा सके।