प्रकाश व्यवस्था में क्रांति: भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की किफायती व टिकाऊ तकनीक

यह शोध पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल्स को स्थिर करने के संबंध में अहम जानकारी प्रदान करता है, तथा कुशल, टिकाऊ ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का मार्ग प्रशस्त करता है
शोधकर्ताओं ने आयन के बदलने की प्रक्रिया को धीमा किया, जिससे रंग स्थिरता में कई गुना सुधार होता है।
शोधकर्ताओं ने आयन के बदलने की प्रक्रिया को धीमा किया, जिससे रंग स्थिरता में कई गुना सुधार होता है।प्रतिरूपात्मक चित्र, फोटो साभार: आईस्टॉक
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भारतीय वैज्ञानिकों ने पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल्स में आयनों के रहने की अवधि को कम करने का नया तरीका खोजा है। इस नई विधि से गर्मी और नमी के प्रति पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल्स संवेदनशीलता कम हो जाती है, साथ ही रंग से संबंधित अस्थिरता भी कम हो जाती है, जिससे कुशल, टिकाऊ ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने का रास्ता खुलता है।

उजाला करने से संबंधित व्यवस्था में दुनिया भर की बिजली का लगभग 20 फीसदी हिस्सा खपत होता है। एक बार फिर उजाले से संबंधित तकनीक के विकास से ऊर्जा दक्षता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। अतीत के गर्म और फ्लोरोसेंट लैंप से लेकर 1960 के दशक में एलईडी के आविष्कार तक, उजाला करने की व्यवस्था ने एक लंबा सफर तय किया है।

साल 1993 में एक अहम सफलता तब मिली जब सूजी नाकामुरा और उनकी टीम के सदस्यों ने भारी चमक वाली नीली एलईडी विकसित की, जिससे कम ऊर्जा की खपत करने वाली सफेद एलईडी (डब्ल्यूएलईडी) संभव हो पाई, जिसे 2014 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज, दक्षता और जीवनकाल के मामले में एलईडी बाजार में सबसे आगे है।

वर्तमान में प्रकाश से संबंधित उभरती हुई तकनीकें जैसे कि ओएलईडी जो जीवंत रंग प्रदान करती हैं, क्यूएलईडी जो सटीक रंग नियंत्रण और स्थायित्व प्रदान करती हैं तथा माइक्रो व मिनी-एलईडी जो भारी चमक और स्थिरता प्रदान करती हैं यह सभी आज उजाले की व्यवस्था के भविष्य को आकार दे रही हैं।

फोटो साभार: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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जबकि पतले और लचीले ओएलईडी (कार्बनिक एलईडी) महंगे होते हैं और इनका जीवनकाल भी कम होता है। क्यूएलईडी जिसे क्वांटम डॉट एलईडी कहा जाता है, यह विषाक्त होते हैं और संसाधनों की कमी के कारण इनका उत्पादन चुनौतीपूर्ण होता है। इनके उत्पादन में अधिक लागत के कारण माइक्रो व मिनी-एलईडी का प्रयोग सीमित हो जाता है।

पेरोवस्काइट जो यौगिकों का वह वर्ग जिसमें सीएटीआईओ 3 - कैल्शियम टाइटेनेट के समान क्रिस्टल संरचना होती है। एलईडी (पीईएलईडी) में ओएलईडी और क्यूएलईडी के फायदे शामिल हैं, जो उन्हें अगली पीढ़ी के उजाले की व्यवस्था के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प बनाते हैं।

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हालांकि उनका अधिक प्रयोग गर्मी और नमी के प्रति संवेदनशीलता, साथ ही आयन के रहने की अवधि, जो तब होता है जब हैलाइड आयन - क्लोराइड, ब्रोमाइड, या आयोडाइड मिश्रित परतों में क्वांटम डॉट्स के बीच चलते हैं। इनके कारण होने वाली रंग अस्थिरता जैसी चुनौतियों से सीमित हो जाती हैं।

इस समस्या से निपटने के लिए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, बेंगलुरु में नैनो और सॉफ्ट मैटर विज्ञान केंद्र (सीईएनएस) के शोधकर्ताओं ने सीएसपीबीएक्स₃ पेरोव्स्काइट नैनोक्रिस्टल्स में आयन में रहने की अवधि को कम करने के लिए एक नया तरीका विकसित किया है।

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नैनोस्केल पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है कि शोधकर्ताओं की टीम ने गर्म इंजेक्शन विधि का उपयोग करके हरे प्रकाश उत्सर्जक सीजियम लेड ब्रोमाइड (सीएसपीबीबीआर3) पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल्स को संश्लेषित किया, जहां ओलीलेमाइन निष्क्रिय लिगेंड के रूप में कार्य करता है।

स्थिरता बढ़ाने के लिए, उन्होंने आर्गन-ऑक्सीजन (एआर-ओ2) प्लाज्मा संबंधी उपचार किया, जो एक क्रॉस-लिंक्ड, हाइड्रोफोबिक परत बनाकर सतह लिगैंड को स्थिर करता है। यह नजरिया प्रभावी रूप से लिगैंड को स्थिर करता है और आयन के बदलने को धीमा करता है, जिससे रंग स्थिरता में कई गुना सुधार होता है।

यह शोध पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल्स को स्थिर करने के संबंध में अहम जानकारी प्रदान करता है, तथा कुशल, टिकाऊ ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का मार्ग प्रशस्त करता है।

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