
2025 के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों जॉन क्लार्क, मिशेल एच डेवोरेट और जॉन एम मार्टिनिस को सम्मानित किया गया है।
इन वैज्ञानिकों ने विद्युत परिपथ में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और एनर्जी क्वांटाइजेशन की खोज की है, जो क्वांटम तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
इस बारे नोबेल पुरस्कार समिति ने बयान में कहा, “इस वर्ष का भौतिकी पुरस्कार अगले स्तर की क्वांटम तकनीक विकसित करने के लिए एक नई राह खोलता है, जिसमें क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम सेंसर शामिल हैं।“
भौतिकी का यह नोबेल पुरस्कार हर साल फिजिक्स के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा दिया जाता है।
2024 में भौतिकी के नोबल पुरस्कार से जेफ्री ई हिंटन और अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन जे हॉपफील्ड को नवाजा गया था।
सर चंद्रशेखर वेंकट रमन एकलौते ऐसे भारतीय वैज्ञानिक हैं जिन्हें फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार मिला है। उन्हें 1930 में इस पुरस्कार से नवाजा गया था।
उन्होंने अपने प्रयागों से साबित किया था कि जब किसी पारदर्शी वस्तु के बीच से प्रकाश की किरण गुजरती है, तो उनके तरंग दैर्ध्य यानी वेवलेंथ में बदलाव दिखता है।
2025 के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा का दौर शुरू हो चुका है। इसी कड़ी में आज भौतिकी के क्षेत्र में योगदान के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई।
इस साल भौतिकी का नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों जॉन क्लार्क, मिशेल एच डेवोरेट, जॉन एम मार्टिनिस को दिया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से जुड़े इन तीनों अमेरिकी वैज्ञानिकों को ये पुरस्कार 'एक विद्युत परिपथ में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और एनर्जी क्वांटाइजेशन की खोज के लिए दिया गया है।
इस बारे नोबेल पुरस्कार समिति ने बयान में कहा, “इस वर्ष का भौतिकी पुरस्कार अगले स्तर की क्वांटम तकनीक विकसित करने के लिए एक नई राह खोलता है, जिसमें क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम सेंसर शामिल हैं।“
गौरतलब है कि इन वैज्ञानिकों ने कई प्रयोगों के जरिए यह साबित किया है कि क्वांटम दुनिया के अजीबोगरीब गुण एक ऐसे सिस्टम में स्पष्ट रूप से दिखाए जा सकते हैं जिसे हाथ में पकड़ा जा सके। उनके सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रिकल सिस्टम में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में “टनलिंग” होती है जैसे यह सीधे एक दीवार के पार गुजर रहा हो।
साथ ही, उन्होंने यह भी दिखाया कि यह सिस्टम ऊर्जा को क्वांटम मैकेनिक्स के अनुसार निश्चित मात्राओं में ग्रहण और उत्सर्जित करता है। देखा जाए तो यह पुरस्कार सिर्फ एक सम्मान नहीं, बल्कि क्वांटम तकनीक के भविष्य की दिशा बदलने वाली खोज का प्रतीक है।
भौतिकी का यह नोबेल पुरस्कार हर साल फिजिक्स के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा दिया जाता है। नोबेल प्राप्त करने वाले वैज्ञानिकों को इनाम के तौर पर कुल 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन (करीब 12 लाख डॉलर) की पुरस्कार राशि से सम्मानित किया जाता है।
इससे पहले चिकित्सा के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार अमेरिका और जापान के वैज्ञानिकों को मिला था। वहीं रसायन विज्ञान के पुरस्कार को घोषणा बुधवार को की जाएगी।
बता दें कि नोबेल पुरस्कार की शुरुआत महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के आधार पर हुई थी। उन्होंने डायनामाइट के आविष्कार से जो धन कमाया, उसका एक हिस्सा विज्ञान, साहित्य और शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित करने के लिए रखा। भौतिकी पुरस्कार नोबेल की वसीयत में सबसे पहले उल्लिखित था, जो उनके समय में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
2024 में जेफ्री ई हिंटन और जॉन जे हॉपफील्ड को मिला था यह पुरस्कार
इतिहास में नोबेल भौतिकी पुरस्कार विजेताओं में अल्बर्ट आइंस्टीन, पियरे और मैरी क्यूरी, मैक्स प्लांक और नील्स बोहर जैसे वैज्ञानिक शामिल हैं, जिन्होंने विज्ञान की दिशा ही बदल दी।
बता दें कि 2024 में भौतिकी के नोबल पुरस्कार से जेफ्री ई हिंटन और अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन जे हॉपफील्ड को नवाजा गया था। जेफ्री ई हिंटन को एआई का पितामह भी कहा जाता है। इन दोनों वैज्ञानिकों को संयुक्त रूप से यह पुरस्कार एआई और मशीन लर्निंग से जुड़ी नई तकनीकों के विकास के लिए दिया गया था।
यह तकनीकें आर्टिफिशियल न्यूरॉन्स पर आधारित है। इसने मौजूदा समय की शक्तिशाली मशीन लर्निंग तकनीक की नींव रखी है। सरल शब्दों में कहें तो उन्होंने भौतिकी की मदद से आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क को प्रशिक्षित किया है, ताकि वो हम इंसानों की तरह ही सोच और सीख सके।
2023 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों पियरे एगोस्टिनी, फेरेन्क क्रॉस्ज और ऐनी एल'हुइलियर को उनके अभूतपूर्व प्रयोगों के लिए संयुक्त रूप से दिया गया था। इन तीनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार उनके अनूठे प्रयागों के लिए दिया गया था, जो मानवता को परमाणुओं और अणुओं के भीतर इलेक्ट्रॉनों की जांच करने के लिए शक्तिशाली उपकरण प्रदान करते हैं।
पियरे एगोस्टिनी, फेरेन्क क्रॉस्ज और ऐनी एल'हुइलियर ने अपने प्रयोगों में दिखाया है कि प्रकाश की बेहद छोटी तरंगे कैसे उत्पन्न की जाती हैं। इसका उपयोग उन तीव्र प्रक्रियाओं को मापने के लिए किया जा सकता है, जिनमें इलेक्ट्रॉन गति करते हैं या ऊर्जा में बदलते हैं।
वहीं 2022 में तीन वैज्ञानिकों एलेन एस्पेक्ट, जॉन एफ क्लॉसर और एंटोन जिलिंगर को क्वांटम फिजिक्स में उनके योगदान के लिए भौतिक के क्षेत्र में संयुक्त रूप से नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था।
सर चंद्रशेखर वेंकट रमन को भी मिल चुका है भौतिकी में नोबेल
नोबेल असेंबली द्वारा साझा की गई जानकारी से पता चला है कि 1901 से 2025 के बीच अब तक 229 वैज्ञानिकों को फिजिक्स यानी भौतिकी में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें चार महिला वैज्ञानिक भी शामिल हैं।
1903 में मैरी क्यूरी, 1963 में मारिया गोएपर्ट-मेयर, 2018 में डोना स्ट्रिकलैंड और 2020 में एंड्रिया घेज को यह पुरस्कार दिया गया था। वहीं जॉन बारडीन एकमात्र ऐसे पुरस्कार विजेता हैं, जिन्हें 1956 और 1972 में दो बार भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है।
इस कड़ी में सबसे पहले 1901 में विलहम कॉनरैड रॉटजन को भौतिकी में पहला नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्होंने नवम्बर 1895 में एक्स किरणों के रूप में जानी जाने वाली तरंग दैर्ध्य में विद्युतच्चुम्बकीय विकिरण के होने का पता लगाया था।
आपको जानकर हैरानी होगी कि सर चंद्रशेखर वेंकट रमन एकलौते ऐसे भारतीय वैज्ञानिक हैं जिन्हें फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार मिला है। उन्हें 1930 में इस पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्होंने अपने प्रयागों से साबित किया था कि जब किसी पारदर्शी वस्तु के बीच से प्रकाश की किरण गुजरती है, तो उनके तरंग दैर्ध्य यानी वेवलेंथ में बदलाव दिखता है।
इस आविष्कार को को उनके नाम पर ही रमन इफेक्ट कहा जाता है। आज भी कई क्षेत्रों में रमन इफेक्ट का उपयोग हो रहा है। उदाहरण के लिए चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की खोज में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का बहुत बड़ा हाथ था।