मानव कोशिकाओं में जहरीली धातुओं का पता लगाना होगा आसान, आईआईटी गुवाहाटी की खोज

भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज जहां रोगों के निदान में फायदेमंद होगी साथ ही इसकी मदद से पर्यावरण में मौजूद हानिकारक धातुओं की निगरानी और प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी से जुड़े शोधकर्ताओं ने मानव कोशिकाओं और पर्यावरण में हानिकारक धातुओं का पता लगाने के लिए एक प्रभावी और किफायती तरीका विकसित किया है।

वैज्ञानिकों की इस खोज से मानव कोशिकाओं और पर्यावरण में पारा जैसी जहरीली धातुओं की पहचान आसान हो जाएगी। भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज जहां रोगों के निदान में फायदेमंद होगी साथ ही इसकी मदद से पर्यावरण में मौजूद हानिकारक धातुओं की निगरानी और प्रबंधन में  क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं।

गौरतलब है कि दूषित, भोजन, पानी, हवा या त्वचा के जरिए पारे के संपर्क में आने से स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इनमें तंत्रिका तंत्र को होने वाला नुकसान, अंगों की विफलता के साथ-साथ याददाश्त और सोचने समझने की क्षमता को होने वाला नुकसान शामिल है।

अध्ययन आईआईटी गुवाहाटी से जुड़े प्रोफेसर सैकत भौमिक और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भुवनेश्वर के प्रोफेसर चंदन गोस्वामी के नेतृत्व में किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे ‘जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री सी’ और ‘मैटेरियल्स टुडे केमिस्ट्री’ में प्रकाशित हुए हैं।

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्थिर और सुरक्षित पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल विकसित किए हैं, जो मानव कोशिकाओं में पारा जैसी विषैली धातुओं का पता बिना कोई नुकसान पहुंचाए लगा सकते हैं।

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पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल का है कमाल

बता दें कि पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल अपने असाधारण गुणों के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें धातु के आयनों का पता लगाने के लिए आदर्श बनाते हैं। ये नैनोक्रिस्टल इंसानी बाल से करीब एक लाख गुणा छोटे होते हैं।

यह प्रकाश के साथ खास तरह से प्रतिक्रिया करके चमकते हैं। इसकी वजह से इनका जीवित कोशिकाओं में फ्लोरोसेंट जांच के रूप में उपयोग किया जा सकता है। हालांकि पानी में जल्द विघटित हो जाने की वजह से इनका उपयोग सीमित था।

इस समस्या को हल करने के लिए, शोधकर्ताओं ने पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल को सिलिका और पॉलिमर कोटिंग से ढंक कर सुरक्षित कर दिया। इससे पानी में इनकी स्थिरता और चमक बढ़ गई। यह कोटिंग नैनोक्रिस्टल को लंबे समय तक काम करने में मदद करती है, जिससे वे व्यावहारिक उपयोग के लिए अधिक प्रभावी बन जाते हैं।

इस तरह यह उन्नत नैनोक्रिस्टल विशिष्ट तरंगदैर्घ्य में चमकीले हरे रंग की रौशनी उत्सर्जित करते हैं। इस तरह पारा के आयनों का सटीकता से पता लगाना संभव हो जाता है। इसकी मदद से हानिकारक पारी को छोटी मात्रा का भी पता लगाया जा सकता है।

अध्ययन के मुताबिक नैनोक्रिस्टल बहुत संवेदनशील होते हैं और बेहद कम स्तर पर पारे का पता लगा सकते हैं। जब इनका जीवित कोशिकाओं पर परीक्षण किया गया, तो वे सुरक्षित थे और पारे को सफलतापूर्वक ट्रैक करते हुए इन्होने कोशिकाओं की कार्यक्षमता को नुकसान नहीं पहुंचाया था।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और आईआईटी गुवाहाटी में प्रोफेसर सैकत भौमिक ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि “इन नैनोक्रिस्टल की एक प्रमुख विशेषता उनका संकीर्ण प्रकाश उत्सर्जन है, जो धातु का पता लगाने के दौरान सिग्नल-टू-नॉइस के अनुपात को कम करके संवेदनशीलता में सुधार करता है।“

“पारंपरिक इमेजिंग विधियां अक्सर प्रकाश में बिखराव से जूझती हैं, जिसके कारण कोशिका की गहरी परतों से स्पष्ट छवियों को कैप्चर करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि ये नैनोक्रिस्टल मल्टीफोटोन अवशोषण का उपयोग करते हैं, जिससे कहीं ज्यादा स्पष्ट और विस्तृत छवियां प्राप्त होती हैं। यह गुण उन्हें चिकित्सा और जैविक अनुसंधान के लिए एकदम सही बनाता है।“

उनके मुताबिक ये नैनोक्रिस्टल पारे के साथ-साथ शरीर में मौजूद अन्य जहरीली धातुओं को खोजने में मदद कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इन नैनोक्रिस्टल का उपयोग दवा देने में भी किया जा सकता है, तथा इनका इस्तेमाल यह पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है कि दवाएं रियल टाइम में कितनी अच्छी तरह काम कर रही है।

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