

इसरो के एलवीएम3 रॉकेट ने अमेरिका की एएसटी स्पेस मोबाइल के ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 संचार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया आज सुबह
यह उपग्रह बिना टावर या विशेष उपकरण के सीधे सामान्य स्मार्टफोन को 4जी और 5जी सेवाएं देगा विश्वभर में उपलब्ध
ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 केवल 60 उपग्रहों से वैश्विक मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान करेगा, जबकि अन्य प्रणालियों को हजारों उपग्रह चाहिए होते हैं
लगभग 6,500 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह लियो में भेजा गया अब तक का सबसे भारी व्यावसायिक पेलोड है माना जाता
यह मिशन ग्रामीण, दूरदराज और आपदा प्रभावित क्षेत्रों में संचार क्रांति लाकर डिजिटल विभाजन कम करेगा देश और दुनिया भर
भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसरो के शक्तिशाली प्रक्षेपण यान एलवीएम3 के माध्यम से अमेरिका की कंपनी एएसटी स्पेस मोबाइल के ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 संचार उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। यह मिशन न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मोबाइल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
यह प्रक्षेपण एलवीएम3 की छठी परिचालन उड़ान है और यह एक व्यावसायिक (कमर्शियल) मिशन है। इस मिशन के तहत ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह को निम्न पृथ्वी कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट – लियो) में स्थापित किया जाएगा। यह उपग्रह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में 4जी और 5जी मोबाइल सेवाएं पहुंचाने के लिए बनाया गया है, जहां आज भी मोबाइल टावर या स्थलीय नेटवर्क उपलब्ध नहीं हैं।
ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सीधे सामान्य स्मार्टफोन को इंटरनेट और मोबाइल सिग्नल प्रदान कर सकता है। इसके लिए किसी विशेष उपकरण, एंटीना या फोन में बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी। इसका अर्थ है कि ग्रामीण क्षेत्रों, पहाड़ी इलाकों, समुद्रों और आपदा प्रभावित क्षेत्रों में भी लोग वीडियो कॉल कर सकेंगे, इंटरनेट चला सकेंगे और मोबाइल सेवाओं का उपयोग कर सकेंगे।
इसरो के अनुसार, लो अर्थ ऑर्बिट में संचार उपग्रहों का नेटवर्क बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। आमतौर पर 24 घंटे लगातार सेवा देने के लिए 2,000 से 2,400 उपग्रहों की आवश्यकता होती है, जैसा कि स्टारलिंक जैसे सिस्टम में देखा जा सकता है। लेकिन ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 ने इस क्षेत्र में एक नया और अनोखा तरीका अपनाया है।
ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह का वजन लगभग 6,500 किलोग्राम है, जो इसे लो अर्थ ऑर्बिट में भेजे जाने वाले सबसे भारी व्यावसायिक संचार उपग्रहों में से एक बनाता है। इसमें करीब 2,400 वर्ग फीट का विशाल फेज्ड-एरे एंटीना लगा हुआ है। यह उपग्रह बहुत अधिक ऊर्जा की खपत करता है और इसे संचालित करने के लिए लगभग पांच से छह किलोवाट बिजली की जरूरत होती है। इसके बावजूद, केवल 60 ऐसे उपग्रहों के माध्यम से पूरी दुनिया में मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान की जा सकती है।
इन 60 उपग्रहों को एक से दो सालों की अवधि में पृथ्वी के चारों ओर चरणबद्ध तरीके से तैनात किया जाएगा। इसके बाद दुनिया के किसी भी हिस्से में, चाहे वह कितना ही दूरस्थ क्यों न हो, लगातार 4जी और 5जी सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकेंगी। यह तकनीक विशेष रूप से उन देशों और क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है, जहां मोबाइल नेटवर्क का विस्तार करना कठिन और महंगा है।
इस मिशन का भारत के लिए भी विशेष महत्व है। यह एलवीएम3 द्वारा भारत की धरती से प्रक्षेपित किया जाने वाला अब तक का सबसे भारी पेलोड है। इससे पहले एलवीएम3 ने चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और वनवेब के कई उपग्रह सफलतापूर्वक लॉन्च किए हैं। इससे इसरो की विश्वसनीयता और उसकी व्यावसायिक प्रक्षेपण क्षमता और मजबूत हुई है।
एलवीएम3 एक तीन चरणों वाला भारी प्रक्षेपण यान है, जिसमें दो ठोस ईंधन बूस्टर, एक तरल कोर चरण और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण शामिल है। इसकी भार वहन क्षमता इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाती है।
कुल मिलाकर, आईएसआरओ और एएसटी स्पेस मोबाइल का यह संयुक्त प्रयास अंतरिक्ष आधारित मोबाइल संचार की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह तकनीक भविष्य में डिजिटल विभाजन को कम करने, आपदा प्रबंधन में मदद करने और दुनिया को वास्तव में “कनेक्टेड” बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है।