
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के शोधकर्ताओं ने वास्तविक समय में इनडोर या भीतर का मानचित्रण करने का उपकरण विकसित किया है। यह रोशनी की कमी या अन्य तरह की रुकावटों में भी अपना काम बखूबी से करता है। यह मौजूदा बुनियादी ढांचे पर कम से कम निर्भर रह कर सटीक मानचित्र बना सकता है।
प्रेस विज्ञप्ति में कहा कहा गया है कि यह अनोखी तकनीक आपदा राहत कर्मियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आपात स्थितियों के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा के कार्यों को मौजूदा बुनियादी ढांचे की मदद से आगे बढ़ाना अक्सर कठिन हो जाता है।
'यूबिकमैप' नामक यह हल्की तकनीक 'रेडियो टोमोग्राफिक इमेजिंग' या आरटीआई नामक तकनीक का उपयोग करके अंदर के वातावरण का पूरे विवरण के साथ सटीक मानचित्र बनाने के लिए रेडियो आवृत्ति-आधारित इमेजिंग का फायदा उठाती है।
आरटीआई प्रणाली आम तौर पर वायरलेस ट्रांसीवर के नेटवर्क पर निर्भर करते हैं, जो कुछ जानें-पहचानी जगहों पर लगे होते हैं। ट्रांसीवर के संचार के दौरान संरचनाओं के कारण रुकावट आने पर वायरलेस सिग्नल की शक्ति कमजोर हो जाती है। सिग्नल की शक्ति में आई कमजोरी का विश्लेषण कर फिर से संबंधित क्षेत्र का संरचनात्मक खाका या फर्श का नक्शा बनाया जाता है।
यूबिकमैप पहले से मौजूद बुनियादी ढांचे पर निर्भरता को दूर कर एक गतिशील और छोटा उपकरण सामने लाता है। यह पहनने योग्य ट्रांसीवर का उपयोग करता है जिसे सुरक्षा और बचाव में लगे लोग आसानी से शरीर पर पहन सकते हैं। इस परिस्थिति से गुजरते बचाव दल के लोगों के साथ ये उपकरण अपने-आप उनकी स्थिति तय करते हैं और फर्श के नक्शे को लगातार अपडेट करते हैं। इस तरह के कार्य से क्षेत्र का सटीक और वास्तविक समय में नक्शा मिल जाता है।
आने वाले समय में यूबिकमैप स्मार्ट सीटी और स्वायत्त प्रणालियों के लिए एक बुनियादी तकनीक बन कर भीतरी कठिनाइयों के बावजूद यह आधुनिक नक्शे बनाने की क्षमता रखता है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस शोध की अगुवाई आईआईटी मद्रास के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अयोन चक्रवर्ती के द्वारा की गई है।
प्रेस विज्ञप्ति में आईआईटी मद्रास के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अयोन चक्रवर्ती के हवाले से कहा गया है कि सार्वजनिक सुरक्षा की घटनाएं, विशेष रूप से खोज और बचाव अभियान, अक्सर सटीक और इमारतों के अंदर की योजनाओं की कमी के कारण रुकावट आती हैं। यहां तक कि जब नक्शे उपलब्ध होते हैं, तब भी वे आम तौर पर आपदाओं के दौरान प्रभावी मिशन योजना के लिए आवश्यक वास्तविक समय की गतिशीलता को पकड़ने में विफल होते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि यह तकनीक राहत व बचाव कर्मियों को एक मजबूत और पोर्टेबल उपकरण देगी। इसके लिए उन्हें पहले की तरह एक सीध में दिखने या फिर कम्प्यूटेशन के संसाधन मिलने जैसी कोई निर्भरता नहीं रहेगी। भीतर के नक्शे उनके सामने होंगे। इस तरह जटिल परिस्थितियों में जब बचाव के लिए अधिक समय नहीं होता यह तकनीक अहम साबित होगी।
विज्ञप्ति में प्रोफेसर डॉ. अयोन चक्रवर्ती के हवाले से कहा गया है कि आईआईटीएम परिसर की कुछ आवासीय इकाइयों के अंदर नियंत्रित परिस्थिति में इस तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। इन परीक्षणों के बाद इस प्रणाली के कारगर होने का सबूत मिल गया है। हालांकि परीक्षणों के दौरान ट्रांसीवर की गति और स्थानीय काम में पूरी सावधानी बरती गई है।
इस बीच वायरलेस फ्रिक्वेंसी के विकल्प को अनुकूल बनने पर लगातार गौर किया जा रहा है। अंदर पहुंच बढ़ाने के साथ छवि का रिज़ॉल्यूशन बढ़ाने के बीच संतुलन बनाया जा रहा है, यह वायरलेस सेंसिंग प्रणाली के डिजाइन का जरूरी पहलू है।
उन्होंने कहा कि यूबिकमैप की मदद से सार्वजनिक सुरक्षा और आपदा राहत कार्य की दुनिया बदलने वाली है। इसका डिजाइन किफायती और छोटा है इसलिए यह हर तरह के लोगों के लिए सुलभ होगा। यह प्रणाली मौजूदा उपकरणों जैसे कैमरों के साथ भी काम कर सकता है। इस तरह यह स्थानीय आधार पर भीतर के नक्शे और संपूर्ण समाधान प्रदान करेगा।
इस तकनीक की मदद से निकासी का सही रास्ता और संसाधनों का सही उपयोग करना आसान होगा। आपदा राहत कर्मियों को सटीक, भीतर के नक्शे मिलेंगे, भले ही अंदर दिखाई न दे या पहुंचना कठिन ही क्यों न हो।
मौजूदा तकनीकों की सीमाएं या कमियां
वास्तविक समय मानचित्रण के लिए मौजूदा कैमरा-आधारित समाधानों में कई तरह की कमियां हैं। यह अंदर देखने की स्पष्टता पर निर्भर करता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि अंदर सब कुछ व्यवस्थित हो और कई अन्य रुकावटें भी होती हैं या फिर रोशनी की कमी भी हो सकती है। इस परिस्थिति में मौजूदा समाधान कारगर नहीं होता है। इतना ही नहीं, ऐसे समाधानों के लिए अक्सर कम्प्यूटेशन का पूरा बुनियादी ढांचा चाहिए जो नहीं मिलने पर सार्वजनिक सुरक्षा के मोर्चों पर उनका उपयोग अव्यावहारिक हो जाता है।
इस प्रणाली में भीतर के नक्शे को विस्तार देने के साथ-साथ नक्शे तैयार किए गए तत्वों के भौतिक गुणों का भी अनुमान लगा सकता है, जैसे कि शुष्क दीवार को कंक्रीट या धातु से अलग दिखाना। इस जानकारी से राहत कर्मियों का काम काफी आसान हो जाता है। वे अंदर की तमाम कठिनाइयों के बीच से निकासी का सुरक्षित और अधिक कारगर रास्ता या बचाव का रास्ता तय कर सकते हैं।