यमुना प्रदूषण: एनजीटी का बड़ा एक्शन दिल्ली नगर निगम और जल बोर्ड पर लगाया 50.4 करोड़ का जुर्माना

एनजीटी का कहना है कि प्रदूषण के लिए जल बोर्ड और दिल्ली नगर निगम दोनों ही जिम्मेवार हैं। उन्होंने सीवेज को बरसाती पानी के लिए बनाए नालों में बहने दिया, जिससे यमुना प्रदूषित हो रही है
प्रतीकात्मक तस्वीर
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने  21 नवंबर, 2024 को दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और नगर निगम (एमसीडी) को 50 करोड़ रूपए का पर्यावरणीय मुआवजा देने का निर्देश दिया है, मामला सीवेज की वजह से यमुना में बढ़ते प्रदूषण से जुड़ा है।

अपने आदेश में एनजीटी ने कहा कि जल प्रदूषण के लिए जल बोर्ड और एमसीडी दोनों ही जिम्मेदार हैं। उन्होंने नालों से निकलने वाले सीवेज को बरसाती पानी के नालों में बहा दिया, जिससे यमुना प्रदूषित हो गई। अदालत का यह भी कहना है कि उन्होंने बरसाती नालों में आरसीसी चैंबर और विभाजन भी किए हैं, जिससे उन्हें सफाई और डिसिल्टिंग करीब-करीब नामुमकिन हो गई। इसकी वजह से न केवल बरसाती पानी के लिए बनाए ड्रेनेज सिस्टम को नुकसान पहुंचा है साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा हो रहा है।

एनजीटी ने कहा कि जल बोर्ड और एमसीडी दोनों ने जल अधिनियम, 1974 के नियमों का उल्लंघन किया है और उन्हें 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' के तहत हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी। अदालत ने दोनों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में अलग-अलग 25.22 करोड़ रूपए का जुर्माना लगाया है। उन्हें मुआवजे की यह राशि दो महीनों के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास जमा करनी होगी।

यह निर्णय एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली बेंच द्वारा दिया गया, जिसमें न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद भी शामिल थे।

अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को जल अधिनियम, 1974 का उल्लंघन करने के लिए डीजेबी और एमसीडी के अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने का भी निर्देश दिया। इसमें धारा 24, 43 और 45बी के साथ-साथ संबंधित नियमों के तहत प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण से जुड़े अपराध शामिल हैं। सीपीसीबी को 31 जनवरी, 2025 तक अदालत के सामने की गई कार्रवाई पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है।

अदालत ने एमसीडी और डीजेबी को नियमित अंतराल पर बरसाती पानी के नालों पर लगाए ढक्कनों को हटाने का भी निर्देश दिया है। इससे न केवल सफाई और गाद निकालने का काम आसान हो जाएगा साथ ही गैसों और दुर्गंध को बाहर निकलने में भी मदद मिलेगी, जिससे वे एक ही जगह पर जमा होकर बाहर नहीं निकल पाएंगी।

अदालत ने निर्देश दिया है कि यह काम एक महीने के भीतर पूरा हो जाना चाहिए, और अगले महीने में इसके परिणाम और नतीजों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि क्या इससे समस्या हल हो गई है। यदि समस्या बनी रहती है, तो एमसीडी को बरसाती नालों से पूरे आरसीसी चैम्बर कवर और दीवारें हटानी चाहिए ताकि उन्हें उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जा सके। यह काम तीन महीने के भीतर पूरा करना होगा।

दिल्ली जल बोर्ड और एमसीडी से वसूले गए पर्यावरण मुआवजे का उपयोग सीपीसीबी द्वारा दिल्ली में पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई और बहाली के लिए किया जाना चाहिए।

बहाली की योजना को सीपीसीबी, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), प्रधान मुख्य वन संरक्षक (दिल्ली) और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति द्वारा एक महीने के भीतर बनाना होगा।वहीं मुआवजा वसूले जाने के बाद दो महीने के भीतर इस योजना को लागू किया जाना चाहिए।

सीपीसीबी के सदस्य सचिव इन कार्यों के समन्वय और पालन के लिए नोडल प्राधिकरण के रूप में कार्य करेंगे। क्या निर्देशों का पालन किया जा रहा है इस बारे में सीपीसीबी को 28 फरवरी, 2025 तक अपनी रिपोर्ट कोर्ट के सामने प्रस्तुत करनी होगी।

क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि इस मामले में ग्रेटर कैलाश - I के उत्तरी ब्लॉक आरडब्लूए निवासियों ने एनजीटी में एक आवेदन दायर किया था। जो पिछले 25 वर्षों से बरसाती नाले कुशक में अवैध रूप से छोड़े जा रहे दूषित सीवेज की वजह से समस्याओं का सामना कर रहे हैं। आवेदन में यह भी कहा गया है किअधिकारियों ने बी-159 से बी-187 तक के घरों के पास मौजूद नाले के हिस्से को नहीं ढका है, जबकि नाले का बाकी हिस्सा (14,209.776 वर्ग मीटर) कवर है।

नाले का खुला हिस्सा चिमनी की तरह काम करता है, जिससे गंदी और जहरीली गैसें निकलती रहती हैं। ये जहरीली गैसें सीधे यहां रहने वाले लोगों के रसोई और बेडरूम में प्रवेश कर रही हैं, जिससे साल भर चौबीसों घंटे जीवन नरक बना रहता है।

स्थानीय निवासियों ने कई अधिकारियों से संपर्क किया। उन्होंने दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) से बरसाती नाले में अवैध रूप से छोड़े जा रहे दूषित सीवेज को रोकने की गुजारिश की साथ ही दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से नाले के खुले हिस्सों को ढकने के लिए कहा गया, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उनका कहना है कि पूरा बरसाती नाला एक बार खुला था, और डीजेबी ने साफ किए बिना सीवेज उसमें बहने दिया।

वहीं जहरीली गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए, एमसीडी ने बरसाती नाले को ढकने का फैसला किया और इसके 14,209.776 वर्ग मीटर हिस्से को ढक दिया गया।

हालांकि, कुछ गैर सरकारी संगठनों ने इसपर आपत्ति जताई और ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया गया, जिसके बाद नाले को और ढकने पर रोक लगा दी गई। इसकी वजह से नाले का 1,466.11 वर्ग मीटर हिस्सा खुला रह गया और अब वो चिमनी की तरह काम कर रहा है। इससे नाले के ढके हिस्से में बनने वाली जहरीली गैसें निकल रही हैं।

साइट का दौरा करने वाली एक समिति ने पाया कि ग्रेटर कैलाश, एंड्रयूज गंज और निजामुद्दीन के हिस्से में नाले से निकलने वाली गैसें असहनीय थी। प्रवाह को निर्देशित करने के लिए बनाए गए कंक्रीट के बक्से मलबे और कचरे से भरे थे, जिससे स्थिति और खराब हो गई। इसकी वजह से नाला बेहद गंदा और अनियंत्रित हो गया था।

तीन नवंबर, 2023 को ट्रिब्यूनल ने पाया कि डीजेबी सीवेज युक्त कीचड़ को रोकने और मोड़ने के लिए दी गई समय सीमा के भीतर उचित कार्रवाई करने में विफल रहा है। अदालत ने यह भी पाया कि नाला तूफानी पानी के लिए है, लेकिन सीवेज और कीचड़ को विभिन्न स्थानों से इसमें प्रवेश करने दिया गया। यह डीजेबी, स्थानीय निकाय और एमसीडी की गलती, निष्क्रियता या लापरवाही के कारण हुआ।

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