
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 9 सितंबर 2025 को केदारनाथ धाम में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन की स्थिति पर सुनवाई की। इस दौरान एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की रिपोर्ट पर भी गौर किया, जिसमें उत्तराखंड सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों का ब्योरा दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाया जा रहा 600 केएलडी क्षमता वाला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) 80 से 85 फीसदी तैयार हो चुका है। यह काम दिसंबर 2024 तक पूरा होना था, लेकिन खराब मौसम के कारण इसमें देरी हो रही है।
यह प्लांट धाम में रहने वाले करीब 5,000 स्थाई लोगों और 20,000 तीर्थयात्रियों की दैनिक जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है।
रिपोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगस्त 2024 की संयुक्त समिति की रिपोर्ट में बताए गए अधिक तीर्थयात्रियों की संख्या दरअसल सोनप्रयाग से केदारनाथ तक आने-जाने वालों की थी, जबकि धाम में एक दिन में ठहरने वालों की संख्या तय सीमा से अधिक नहीं होती।
यात्रा मार्ग पर गौंरीकुंड के पास भी 222 केएलडी क्षमता के चार नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवर नेटवर्क का काम जारी है। वहीं, कैंपों में ठहरने वाले तीर्थयात्रियों के लिए 155 स्थाई शौचालय भी सोक पिट प्रणाली पर बनाए गए हैं। कुछ जगहों पर सीवेज रिसाव की शिकायतें आई थीं, जिन्हें अब ठीक कर लिया गया है।
संयुक्त समिति ने कुछ जगहों पर सीवेज के रिसाव की समस्या बताई थी, जिसे अब ठीक कर दिया गया है। विशेषज्ञ प्रोफेसर ए ए काजमी ने ऐसे स्थानों पर जोकासो सिस्टम लगाने की सलाह दी है, जिसके लिए प्रस्ताव मंजूरी हेतु भेजा जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई 1 दिसंबर 2025 को होगी।
गाजीपुर नाले में मलबा गिरने का मामला, एनजीटी ने मांगी पूरी जानकारी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 9 सितंबर 2025 को गाजीपुर नाले में निर्माण संबंधी मलबा फेंके जाने और सीवेज में रुकावट से जुड़ी शिकायत पर सुनवाई की। इस दौरान अदालत ने सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग की रिपोर्ट पर भी गौर किया।
विभाग ने 2 सितंबर को दायर अपने जवाब में कहा है कि सफाई और सुधार का काम पूरा कर लिया गया है। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि यह नाला वास्तव में गाजीपुर ड्रेन नहीं, बल्कि ट्रंक ड्रेन नंबर-2 (टीडी-2) है, जो साविता विहार और योजना विहार के पास से गुजरने वाला एक खुला बरसाती नाला है।
इसकी शुरुआत जीटी रोड, दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन के पास होती है और अंत में यह गाजीपुर नाले में जाकर मिल जाता है। इसमें पीडब्ल्यूडी, दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और एमसीडी जैसे विभागों के कई फीडर ड्रेनों का पानी आता है।
रिपोर्ट के अनुसार, आनंद विहार में अप्सरा बॉर्डर फ्लाईओवर के निर्माण के दौरान ठेकेदार गावर कंस्ट्रक्शन ने पाइल हेड, कंक्रीट, मलबा, मिट्टी और अन्य सामग्री नाले में गिरा दी थी। सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग ने पीडब्ल्यूडी और ठेकेदार को कई बार पत्र लिखकर यह सामग्री हटाने और पानी का बहाव सुचारू करने की मांग की थी।
विभाग ने स्पष्ट किया कि है कि टीडी-2 ‘आउटफॉलिंग ड्रेन’ नहीं है, यानी यह सीधे यमुना नदी में नहीं गिरता।
सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग का यह भी कहना है कि यह नाला केवल बरसाती पानी के लिए है, इसमें विभाग की ओर से कोई सीवेज या जहरीला कचरा नहीं डाला जाता। बदबू और मच्छर पनपने की समस्या आसपास और ऊपर से आने वाले अनट्रीटेड सीवेज की वजह से है, जिसकी जिम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड की है।
विभाग ने यह भी बताया कि नाले के किनारों पर पेड़-पौधों का रोपण भी किया गया है, लेकिन इस तरह से कि सफाई और मशीनों की आवाजाही में कोई बाधा न आए। ड्रेन के किनारे मशीनों की आवाजाही और गाद हटाने के लिए रास्ते खुले रखे गए हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई 3 दिसंबर 2025 को होगी।