नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 29 अगस्त, 2024 को कहा है कि दिल्ली के संगम विहार में रहने वालों के पास कचरा फेंकने के लिए निर्धारित स्थान नहीं है, ऐसे में कचरा इस क्षेत्र में चारों ओर बिखरा रहता है। ट्रिब्यूनल ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा दायर एक रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद यह टिप्पणी की।
ऐसे में एनजीटी ने इस मामले से जुड़े सभी विभागों जैसे दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली जल बोर्ड, दक्षिण पूर्वी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट और सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग को ट्रिब्यूनल के समक्ष अपना हलफनामा दाखिल करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 11 दिसंबर, 2024 को होगी।
एमसीडी की रिपोर्ट से पता चला है कि संगम विहार में हर दिन करीब 35-40 टन कचरा पैदा होता है। हालांकि जगह की कमी के चलते वार्ड 168 और 169 में कचरा एकत्र करने के लिए कोई निर्धारित केंद्र या एफसीटीएस नहीं है। एमसीडी का कहना है कि इस कचरे को उठाना और उसका निपटान करना उनके लिए बड़ी समस्या बन चुका है।
चूंकि इस क्षेत्र में गलियां बहुत संकरी हैं, इसलिए प्राइवेट कर्मचारियों की मदद से छोटे ट्रकों और मैनुअल रिक्शा का उपयोग करके कचरा एकत्र किया जाता है। अदालत का कहना है कि हालांकि, रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि कचरा कहां से उठाया जाता है, क्योंकि इसके लिए कोई निर्दिष्ट बिंदु नहीं हैं।
वहीं एमसीडी की ओर से पेश वकील ने अदालत को जानकारी दी है कि उन्होंने इलाके में कचरा एकत्र करने के लिए निर्धारित केंद्र (एफसीटीएस) बनाने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से जमीन मांगी है। हालांकि, उन्हें अब तक डीडीए से कोई जवाब नहीं मिला है।
कोर्ट में भी जारी रहा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर
गौरतलब है कि इस मामले में एनजीटी ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया है। अखबार में छपी तस्वीरों में कचरे का एक बड़ा ढेर दिखाया गया था। अदालत का कहना है कि इसके बावजूद एमसीडी ने अपनी रिपोर्ट में तस्वीर में दिखाई गई दयनीय स्थिति पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। दूसरी एमसीडी ने मौजूदा अपडेट की हुई तस्वीरों को रिकॉर्ड में रखने के लिए और समय मांगा है।
इस मामले में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने आठ अगस्त, 2024 को निरीक्षण किया था। इसके बाद 16 अगस्त, 2024 को अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी थी। रिपोर्ट में बताया गया कि क्षेत्र में सीवर ओवरफ्लो हो रहे थे, कुछ गलियां टूटी पड़ी थी, जबकि नालियां कचरे से भरी थी।
अदालत के मुताबिक, डीपीसीसी की रिपोर्ट के साथ जो तस्वीरें कोर्ट के समक्ष रखी गई हैं, उनसे इलाके में सीवर प्रबंधन की बहुत खराब स्थिति का पता चलता है। वहीं जहां तक सीवेज के अनुचित प्रबंधन का सवाल है, एमसीडी का रुख यह था कि इसकी जिम्मेवारी दिल्ली जल बोर्ड की है।