मणिपुर में गंदे पानी को साफ करने के बाद दोबारा उपयोग की योजना बनाई गई है। वहीं बिष्णुपुर (कीनोउ), इम्फाल ईस्ट (केइराओ), और इम्फाल वेस्ट (फयेंग) के ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस कचरे के उचित प्रबंधन के लिए प्रणाली स्थापित की गई है। यह जानकारी मणिपुर ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी एक रिपोर्ट में साझा की है।
इंदौर ने अपने कचरे का प्रबंधन कैसे किया इसे समझने के बाद एक टीम मणिपुर के शहरों, गांवों और पहाड़ी इलाकों में कचरा कम करने की योजना पर काम कर रही है।
रिपोर्ट से पता चला है कि शहरी क्षेत्रों में कचरे को अलग किया जाता है। इसी तरह 99 फीसदी घरों से कचरा एकत्र किया जाता है। ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में लोग अक्सर गीले कचरे से खाद बना रहे हैं वहीं इसे जानवरों को खिलाना बेहद आम है। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में करीब 90 फीसदी कचरे का या तो खाद या फिर जानवरों के लिए चारे के रूप में उपयोग किया जाता है।
यह रिपोर्ट 12 सितंबर, 2024 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड की गई है।
बड़ौत में कचरे और सीवेज से पटी सिंचाई के लिए बनी नहर, एनजीटी ने जुर्माना बढ़ाने की कही बात
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बागपत के जिला मजिस्ट्रेट और बड़ौत के कार्यकारी अधिकारी को रजवाहे नहर में सीवेज को जाने से रोकने के लिए उठाए कदमों पर एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। गौरतलब है कि 10 सितंबर, 2024 को अदालत बरौठ नगर परिषद के भीतर रजवाहे सिंचाई नहर में छोड़े जा रहे सीवेज के मुद्दे पर विचार कर रहा था।
गौरतलब है कि इस मामले में बड़ौत नगर परिषद ने एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है। इस रिपोर्ट के साथ जो तस्वीरें साझा की गई हैं वो नहर की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डालती हैं। सिंचाई के लिए बनी यह नहर सीवेज और कचरे से भर गई है। ऐसे में कृषि के लिए इस दूषित पानी का उपयोग करने से स्वास्थ्य से जुडी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
अदालत का कहना है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने एक जुलाई, 2020 से 30 अप्रैल, 2024 के बीच पांच लाख रुपए प्रति माह की दर से 2.3 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा (ईसी) लगाया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 27 अगस्त, 2024 को बागपत के कलेक्टर को यह राशि वसूलने के बारे में सूचित किया था, लेकिन अभी तक इसे वसूला नहीं गया है।
अदालत का कहना है कि उल्लंघन अभी भी जारी है। रिपोर्टों से इस बात का भी पता नहीं चल रहा कि सीवेज को नहर में जाने से रोकने के लिए जमीनी स्तर पर कोई प्रभावी कदम उठाया गया है। ऐसे में लगातार जारी इस उल्लंघन के लिए अधिक पर्यावरणीय मुआवजा (ईसी) वसूले जाने की आवश्यकता है।
अदालत का यह भी कहना है कि बड़ौत की नगर परिषद ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है क्योंकि सीवेज को नहर में जाने से रोकने के लिए अब तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित नहीं किया गया है।