वापी नगर पालिका द्वारा एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया कि - वर्तमान में वापी नगर पालिका में प्रति दिन 50 टन (टीपीडी) अपशिष्ट उत्पन्न होता है। उत्पन्न कचरे का 65-70 फीसदी मूल जगह पर ही छानकर अलग किया जाता है, इसके बाद इसे एकत्र कर सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधा (मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी) में भेज दिया जाता है। अलग किए गए कचरे को अधिकृत रिसाइकल करने वालों को बेच दिया जाता है।
लगभग 33 वाहन सूखे और गीले कचरे को इकट्ठा करते हैं और इनमें जीपीएस लगे हुए हैं। ये सभी तय किए गए मार्गों में कचरे को इकट्ठा करने के लिए घर-घर जाते हैं। नगरपालिका ने 100 किलो गीला कार्बनिक अपशिष्ट को बदलने वाली (ओडब्ल्यूसी) मशीन लगाई है। उक्त मशीन में जो अपशिष्ट संसाधित किया जाता है, उसका उपयोग नगरपालिका द्वारा बनाए गए बागानों में खाद के रूप में किया जाता है और शेष को लोगों के उपयोग के लिए बेच दिया जाता है।
100 टीपीडी की क्षमता वाले एक ठोस अपशिष्ट संयंत्र के 30 जून, 2021 तक पूरा होने की संभावना है। शहर के विस्तार को देखते हुए अगले 30 वर्षों में सीवेज के उपचार के लिए वापी नगर पालिका ने पहले ही निर्माण शुरू कर दिया है। 2 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) जिनकी क्षमता 14 एमएलडी और 29.5 एमएलडी है। वापी नगरपालिका के आसपास के क्षेत्र में कुल 7 नाले हैं। एसटीपी के संचालन शुरू होने तक सीटू रीमेडिएशन में जिन बिंदुओं पर काम किया जाएगा, वे निर्धारित किए गए हैं। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि चाणोद, छारवाड़ा, चंदोर और नामधा के गांव नगर पालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।
वापी के अधिसूचित क्षेत्र प्राधिकरण, जीआईडीसी द्वारा एनजीटी को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि वह 11 गांवों को मुफ्त में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति कर रहा है।
औद्योगिक विकास निगम द्वारा भूमिगत पाइपलाइन नेटवर्क के माध्यम से चिर्री, कोचवाड़ा, राता, नामधा, चानोद, करवड़, डूंगरा, बलीठा, चारवड़ा, चाणोद और चल्ला के गांवों में मुफ्त फिल्टर पानी की आपूर्ति की जा रही है। गुजरात जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड द्वारा 31 मार्च, 2021 से संपूर्ण जलापूर्ति की जाएगी।
वापी क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है:
1) वापी नगरपालिका
2) वापी जीआईडीसी औद्योगिक क्षेत्र और
3) वापी अधिसूचित क्षेत्र प्राधिकरण
जबकि वापी शहर को वापी नगरपालिका द्वारा संचालित किया जाता है, जीआईडीसी वापी का औद्योगिक / व्यावसायिक और आवासीय बेल्ट अधिसूचित क्षेत्र प्राधिकरण के दायरे में है। चानोद, चारवाड़ा, नामधा और चंदोर नाम के सभी गांव, ग्राम पंचायत हैं और उनके पास डिस्चार्ज और ठोस कचरा प्रबंधन का अपना तंत्र है।
हलफनामे में कहा गया है कि वापी जीआईडीसी बेल्ट के अंदर 1117 हेक्टेयर जमीन शामिल है, जिसमें 102 हेक्टेयर आवास क्षेत्र है। एक भूमिगत पाइपलाइन नेटवर्क है, जिसे जीआईडीसी द्वारा जीआईडीसी एस्टेट के भीतर औद्योगिक एफ्लुएंट के संग्रह के लिए बनाया गया है। इस एफ्लुएंट को उपचारित करने के लिए सीईटीपी में ले जाया जाता है। सीईटीपी का प्रबंधन वापी ग्रीन एनवायरो लिमिटेड द्वारा किया जाता है।
वर्तमान में अधिसूचित क्षेत्र के आवासीय क्षेत्र में कोई एसटीपी नहीं हैं। हालांकि 2023 तक 2 एसटीपी को चालू करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा गया है। अधिसूचित क्षेत्र प्राधिकरण, जीआईडीसी की सीमा में उत्पन्न अपशिष्ट 21 टीपीडी है। उत्पन्न कचरे का लगभग 65-70 फीसदी मूल जगह पर ही एकत्रित किया जाता है, एकत्र किए गए अपशिष्ट को एमएसडब्ल्यू साइट पर भेजा जाता है।
महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में धामपुर झील है। सिंधुदुर्ग जिले के कलेक्टर द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष अनुपालन में दायर हलफनामे में सूचित किया गया कि झील में एक स्काईवॉक का अवैध निर्माण किया गया था। साइट निरीक्षण रिपोर्ट में भी अवैध निर्माण की पुष्टि हुई।
सिंधुदुर्ग के सावंतवाड़ी में पीडब्ल्यूडी ने सिंचाई विभाग की एनओसी का उल्लंघन किया है और अवैध ढांचे का निर्माण किया है, लेकिन लगातार फॉलोअप, बार-बार मीटिंग, कार्यालय के आदेश के बाद भी सावंतवाड़ी पीडब्ल्यूडी निम्नलिखित करने में विफल रही
9 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी के आदेश के अनुपालन में, सिंधुदुर्ग के कलेक्टर ने पीडब्ल्यूडी के आधिकारिक बैंक खाते पर पाबंदी लगा दी गई।
एनजीटी और सिंधुदुर्ग के कलेक्टर के आदेशों को लागू करने में पीडब्ल्यूडी के सुस्त और लापरवाह रवैये के कारण, पीडब्ल्यूडी के अधिकरियों के खिलाफ विभागीय जांच का प्रस्ताव रखा गया, जिसके बाद अवैध ढांचे को हटाने के लिए प्रयास किए गए।
एनजीटी ने 27 अक्टूबर, 2020 को अपने 14 दिसंबर, 2017 के आदेश के खिलाफ दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन (डीएसआईआईडीसी) के द्वारा दायर याचिका का निपटारा किया।
दिसंबर 2017 के आदेश में निर्देश दिया गया था कि दिल्ली सरकार के साथ व्यावसायिक भवनों के लिए उपलब्ध भूमि को तब तक विकसित नहीं किया जाएगा जब तक कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भूमि उपलब्ध नहीं कराई जाती है।
वर्तमान याचिका में, याचिकाकर्ता ने कहा कि 42.5 एकड़ भूमि के रूप में एक विकल्प है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए।
एनजीटी ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उपयुक्त भूमि की उपलब्धता के मुद्दे को पहले मुख्य सचिव और उपराज्यपाल को सुलझाना होगा, निकले निर्णय के आधार पर डीएसआईआईडीसी अदालत का रुख कर सकता है।