नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी बेंच ने ठाणे में दस स्थानों पर की गई अवैध कचरा डंपिंग की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया है। मामला महाराष्ट्र का है।
21 अगस्त 2024 को दिए इस आदेश के मुताबिक जांच समिति में महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एमसीजेडएमए), ठाणे के जिला कलेक्टर और महाराष्ट्र राज्य वन विभाग के मैंग्रोव संरक्षण इकाई के उप वन संरक्षक के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
ट्रिब्यूनल ने समिति को साइट का दौरा करने और आवेदन में उठाए गए मुद्दों पर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। साथ ही यदि आवश्यक हो तो एक कार्य योजना की सिफारिश करने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उपाय सुझाने का भी समिति को निर्देश दिया है। इस रिपोर्ट को एक महीने के भीतर प्रस्तुत किया जाना है। इस दौरान महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एमसीजेडएमए) समन्वय के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
गौरतलब है कि अपने आवेदन में वनशक्ति ने दस स्थानों पर निर्माण और विध्वंस सम्बन्धी मलबे और कचरे की लगातार चल रही अवैध डंपिंग को उजागर किया है। जानकारी दी गई है कि इनमें से एक से आठ स्थान ठाणे नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। वहीं स्थान नौ और दस ग्राम पंचायत, काशेली के अंतर्गत आते हैं।
हालांकि यह सभी साइटें ठाणे जिले के काशेली, मुंब्रा, दिवा और आसपास के क्षेत्रों में उल्हास नदी के मुहाने और खाड़ी चैनलों की सीमा से लगे सीआरजेड-1(ए) और सीआरजेड-1(बी) क्षेत्रों में स्थित हैं।
क्या है पूरा मामला
आवेदकों के वकील ने बताया कि 15 जून, 2024 को महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण ने ठाणे के जिला कलेक्टर और मैंग्रोव सेल के उप वन संरक्षक को ईमेल भेजा था। ईमेल में दूसरे आवेदक स्टालिन दयानंद की एक मई, 2024 की शिकायत का उल्लेख किया गया, जिसमें ठाणे जिले में सीआरजेड क्षेत्रों (खारेगांव कलवा से मुंब्रा-दिवा और उससे आगे) के चल रहे पुनर्ग्रहण और विनाश के बारे में बताया गया था।
शिकायत में ठाणे जिले में मैंग्रोव, सीआरजेड क्षेत्रों, तटीय आर्द्रभूमि और खाड़ियों के निरंतर विनाश पर भी प्रकाश डाला गया है।
ऐसे में ट्रिब्यूनल ने अधिकारियों से स्थिति की पुष्टि, उचित कार्रवाई करने और 15 दिनों के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। हालांकि, आवेदकों के वकील का कहना है कि 30 जून, 2024 को 15 दिन की समय सीमा बीत चुकी है और कोई कार्रवाई नहीं की गई है। नतीजतन, आवेदकों ने आगे आवश्यक निर्देशों को जारी करने के लिए न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया है।
एनजीटी ने कहा कि यह पहली दृष्टि में "पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला मामला" बनता है, ऐसे में इस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है।