केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि गुरुग्राम और फरीदाबाद अभी भी बंधवाड़ी डंपसाइट पर कचरा डाल रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इस कचरे को प्रोसेस करने की पर्याप्त क्षमता मौजूद नहीं है। हालांकि इस साइट पर पुराने जमा कचरे को निपटाने के लिए चार एजेंसियों की मदद ली जा रही है। अनुमान है कि यह काम दिसंबर 2024 तक पूरा हो जाएगा।
वहां जमा 44 लाख मीट्रिक टन कचरे में से अब तक 30 लाख मीट्रिक टन कचरे की बायोमाइनिंग हो चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 16 जुलाई, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
गौरतलब है कि 2024 में बढ़ते तापमान और मीथेन उत्सर्जन के कारण आग लगने की छह घटनाएं सामने आई थी। वहां बढ़ते तापमान के चलते पानी का छिड़काव तक करना पड़ा था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस साइट पर छह पोर्टेबल हैंडहेल्ड मीथेन डिटेक्टरों की मदद से मीथेन की निगरानी की जा रही है, हालांकि इस साइट पर निरंतर निगरानी के लिए उचित स्थानों पर कोई निश्चित मीथेन डिटेक्टर नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक लीचेट को एचडीपीई-लाइन वाले तालाबों में एकत्र किया जाता है और उसके बाद उपचार के लिए गुरुग्राम महानगर विकास प्राधिकरण के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में ले जाया जाता है। इस प्लांट की कुल क्षमता 120 एमएलडी है।
ऐसे में सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में सम्बंधित स्थानीय अधिकारियों द्वारा अपनी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं में तुरंत सुधार करने की सिफारिश की है। इससे ठोस कचरे को एकत्र और अलग करने के साथ परिवहन और प्रोसेस करने का काम किया जा सके। सीपीसीबी के मुताबिक बंधवाड़ी डंपसाइट पर ताजा कचरा डंप न किया जाए इसके लिए यह आवश्यक है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बायोरेमेडिएशन का काम अभी पूरा नहीं हुआ है, वहीं अब तक केवल 20 फीसदी भूमि को ही बहाल किया जा सका है।
बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर अभी लागू नहीं हो पाया है फायर एक्शन प्लान
सीपीसीबी के दिशा-निर्देशों के अनुसार फायर एक्शन प्लान तैयार हो चुका है और उसे हरियाणा अग्निशमन विभाग द्वारा मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि इसके लिए आवश्यक पाइप नेटवर्क अभी स्थापित नहीं हो पाया है।
इसकी वजह पर प्रकाश डालते हुए गुरुग्राम नगर निगम ने जानकारी दी है कि बंधवाड़ी लैंडफिल में हर दिन 8,000 टन पुराने कचरे का उपचार किया जाता है। साथ ही वहां प्रतिदिन 2,000-2,500 टन नए कचरे के निपटान को अंजाम दिया जाता है, जिसकी वजह से वाहनों की अत्यधिक आवाजाही और चल रही बायोरेमेडिएशन गतिविधियों की वजह से कार्य योजना के अनुसार आवश्यक पाइप नेटवर्क स्थापित कर पाना संभव नहीं हो सका है।
यह जानकारी गुरुग्राम नगर निगम ने 16 जुलाई, 2024 को एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में दी है। इस रिपोर्ट में निगम ने लैंडफिल में भविष्य में आग की घटनाओं को नियंत्रित करने और रोकने के लिए उठाए कदमों की जानकारी दी है। गौरतलब है कि बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर लगी आग के मामले में छपी एक खबर पर 25 अप्रैल, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुरुग्राम नगर निगम से रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।
रिपोर्ट के मुताबिक लैंडफिल में आग अक्सर तब लगती है जब बायो-रिमेडिएशन के दौरान ऑक्सीजन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे बैक्टीरिया की गतिविधि और तापमान बढ़ जाता है। इसे एरोबिक अपघटन के रूप में भी जाना जाता है। इन्हें "हॉट स्पॉट" भी कहा जाता है क्योंकि जब वे मीथेन गैस पॉकेट्स से मिलते हैं तो आग लग सकती है। इसके अलावा, कचरे में मौजूद धातु व कांच के टुकड़ों से परावर्तित होने वाली सूर्य की किरणों की वजह से भी हॉट स्पॉट बन सकते हैं।
क्यों उपयोग की जगह साफ करने के बाद नालों में छोड़ा गया पानी, एनजीटी ने यूपीपीसीबी से मांगी रिपोर्ट
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण (यूपीपीसीबी) से नोएडा प्राधिकरण द्वारा नालों में शोधित पानी छोड़े जाने के आरोपों पर जवाब देने का निर्देश दिया है। 16 जुलाई को दिए इस निर्देश में अदालत ने यूपीपीसीबी के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण, नोएडा के जिला मजिस्ट्रेट और जीबी नगर के जिला मजिस्ट्रेट से भी उनका जवाब मांगा है।
गौरतलब है कि 11 जून, 2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया था। इस खबर में कार्यकर्ता ने नोएडा प्राधिकरण पर शोधित पानी को नालों में छोड़े जाने का आरोप लगाया था।
यह मामला दूषित पानी को साफ करने के बाद नोएडा प्राधिकरण द्वारा सिंचाई के लिए उपयोग करने के बजाय नालियों में डाले जाने से जुड़ा है। खबर के मुताबिक इस पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता था, लेकिन इसकी जगह भूजल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा है, जो जल जैसे अनमोल संसाधन का दुरूपयोग है।
वहीं नोएडा प्राधिकरण का दावा है कि उसने जल एवं बागवानी विभाग को पार्कों, ग्रीन बेल्ट और शहर के अन्य हरे भरे क्षेत्रों की सिंचाई के लिए गंदे पानी को साफ करने के बाद उपयोग करने का निर्देश दिया है। हालांकि, आरोप है कि नोएडा प्राधिकरण के कर्मचारी इस उद्देश्य के लिए भूजल का उपयोग कर रहे हैं।