
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, जबलपुर के कठौंदा वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट में कचरे का सही निपटान नहीं हो रहा है।
प्लांट में मिश्रित कचरा जलाने से ऊर्जा उत्पादन में कमी आ रही है और कचरे का पहाड़ जमा हो गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, कठौंदा स्थित यह संयंत्र 600 टन प्रतिदिन (टीपीडी) कचरे को जलाकर 11.5 मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता रखता है। यह प्लांट मास बर्निंग तकनीक पर आधारित है। लेकिन समस्या यह है कि यहां मिश्रित और बिना छंटाई का कचरा जलाया जा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने जबलपुर के कठौंदा स्थित वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट की खामियों पर अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंप दी है। यह प्लांट मध्यप्रदेश के जबलपुर में है। यह रिपोर्ट उस संयुक्त समिति के निरीक्षण पर आधारित है जिसे एनजीटी ने जुलाई 2024 को गठित किया था।
इस समिति में सीपीसीबी के क्षेत्रीय निदेशक, भोपाल स्थित पर्यावरण मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारी और शहरी विकास मंत्रालय के केंद्रीय लोक स्वास्थ्य व पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन (सीपीएचईईओ) के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।
समिति ने ग्वालियर, जबलपुर, रतलाम, मुरैना और रीवा का दौरा कर ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति का आकलन किया था। इसी दौरान कठौंदा प्लांट का भी निरीक्षण किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, कठौंदा स्थित यह संयंत्र 600 टन प्रतिदिन (टीपीडी) कचरे को जलाकर 11.5 मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता रखता है। यह प्लांट मास बर्निंग तकनीक पर आधारित है। लेकिन समस्या यह है कि यहां मिश्रित और बिना छंटाई का कचरा जलाया जा रहा है। ऐसे कचरे से बॉयलर में आवश्यक ऊष्मा (कैलोरिफिक वैल्यू) नहीं मिल पाती।
इस कमी की भरपाई के लिए संयंत्र में चावल की भूसी मिलाई जाती है ताकि जलने की क्षमता बढ़ सके।
जबलपुर नगर निगम द्वारा दिए आंकड़ों के मुताबिक, शहर से इकट्ठा होने वाले कुल कचरे में से महज 40 फीसदी ही वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट में बिजली बनाने के लिए उपयोग हो रहा है। बाकी कचरा प्लांट के पीछे फेंक दिया जाता है, जिससे वहां कचरे का पहाड़ जमा हो गया है।
समिति ने यह भी पाया कि म्युनिसिपल ठोस कचरे के साथ-साथ संयंत्र से निकलने वाली राख और फ्लाई ऐश भी वहीं फेंकी जा रही है। जबकि इसके लिए बनाए गए सैनिटरी लैंडफिल साइट का सही इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।
क्या है पूरा मामला
समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है कि जबलपुर का वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट ‘नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए)’ घोषित कर दिया गया है। फिलहाल यह राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के अधिकार क्षेत्र में है और एक रेजोल्यूशन ऑफिसर द्वारा संचालित किया जा रहा है। बैंक से रखरखाव के लिए जरूरी फंड न मिलने की वजह से संयंत्र की कार्यक्षमता लगातार गिर रही है।
सीपीसीबी की यह रिपोर्ट सितम्बर 2024 को तैयार की गई थी जिसे 24 सितम्बर 2025 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।
इस मामले में 12 जुलाई, 2024 को दिए अपने आदेश में अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और जबलपुर के जिला मजिस्ट्रेट को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था। उन सभी से 19 सितंबर, 2024 को होने वाली सुनवाई से एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया था।
गौरतलब है कि यह आवेदन एक जुलाई 2024 को भास्करहिंदी.कॉम में प्रकाशित एक खबर के बाद एनजीटी में दायर किया गया था।
यह खबर कठौंडा में ऊर्जा और अपशिष्ट निपटान संयंत्र के संबंध में थी। खबर में कहा गया है कि वहां कचरे को जलाने से बची धूल और मिट्टी का उचित तरह से निपटान नहीं किया जा रहा है और यह नियमों के विरुद्ध जमा हो रही है।