
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मेरठ की गॉडविन कंस्ट्रक्शन कंपनी को पर्यावरणीय मुआवजे के तौर पर 10 करोड़ का भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश चार मार्च, 2025 को दिया गया है।
जुर्माने की यह राशि अगले तीन महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के पास जमा करानी होगी। गौरतलब है कि यह जुर्माना कंपनी द्वारा विकसित क्षेत्र में सीवेज और कचरे का उचित तरीके से निपटान और प्रबंधन न करने के लिए लगाया गया है।
न्यायाधिकरण ने गॉडविन कंस्ट्रक्शन कंपनी को इस क्षेत्र में पैदा हो रहे सीवेज के उपचार के लिए ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने यह भी कहा है कि यह प्लांट अगले छह महीने के भीतर चालू हो जाना चाहिए।
अदालत के मुताबिक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का पालन करते हुए कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया जाए।
आदेश में कहा गया है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कचरे का उचित तरीके से निपटान और प्रबंधन किया जाए। इस दौरान पर्यावरण सम्बन्धी नियमों और कानूनों का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके बावजूद यदि वहां किसी तरह का उल्लंघन होता है तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
अदालत ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को गॉडविन कंस्ट्रक्शन कंपनी और मेरठ विकास प्राधिकरण से परियोजना की लागत सहित उसका विवरण एकत्र करने के लिए कहा गया है। उसके बाद, यह अंतिम पर्यावरणीय दंड की गणना करेगा। बोर्ड से अंतिम पर्यावरणीय मुआवजे की गणना करने के लिए भी कहा गया है।
इस मुआवजे का उपयोग पर्यावरण को पहुंचे नुकसान को दुरुस्त करने और उसकी बहाली के लिए किया जाएगा। यूपीपीसीबी और मेरठ के जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति इसके लिए योजना बनाएगी। वहीं जिला मजिस्ट्रेट इन प्रयासों का नेतृत्व करेंगे।
आदेश में कहा गया है कि यह योजना दो महीने में तैयार हो जानी चाहिए और इसे अगले चार महीने में क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) को जल अधिनियम, 1974 का पालन करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि परियोजना क्षेत्र में सीवेज इकट्ठा न हो। यदि आवश्यक हो, तो कनेक्टिंग पाइपलाइन को बदलकर उसकी जगह अधिक क्षमता वाली पाइपलाइन लगानी चाहिए। मेरठ विकास प्राधिकरण को यह काम दो महीने के भीतर पूरा करना होगा।
इन सभी निर्देशों का पालन हो रहा है, इसके सम्बन्ध में अदालत ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है।
जेजे क्लस्टर के लिए सीवेज योजना की रूपरेखा प्रस्तुत करेगा दिल्ली जल बोर्ड
दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) की ओर से पेश वकील ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को जानकारी दी है कि एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल किया जाएगा।
इस हलफनामे में सभी जेजे क्लस्टरों को सीवेज सुविधाएं प्रदान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए समयसीमा शामिल होगी कि सीवर लाइनें ट्रीटमेंट प्लांट से ठीक से जुड़ी हुई हैं। 28 फरवरी, 2025 को उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया है कि इसमें सभी प्रासंगिक विवरण शामिल किए जाएंगे।
डीजेबी के वकील का यह भी कहना है कि कुछ नाले अवरुद्ध हैं। उनमें से सीवेज और सेप्टेज को टैंकरों के माध्यम से उठाया और ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाया जाता है।
इस हलफनामे में जेजे क्लस्टरों से निकलने वाले सीवेज और सेप्टेज की मात्रा, उसका उपचार कैसे किया जाता है और कौन से ट्रीटमेंट प्लांट इसे संभालते हैं, इस बारे में सभी जानकारी शामिल होगी। साथ ही इन ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता और प्रदर्शन का भी उल्लेख किया जाएगा।
गौरतलब है कि सड़कों और नालियों पर अवैध ट्रकों द्वारा सीवेज डंप करने को लेकर अदालत में शिकायत करते हुए एक आवेदन दायर किया गया था। आरोप है कि इस डंपिंग की वजह से प्रदूषण हो रहा है, जिसका असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है।
ट्रिब्यूनल ने पहले भी उन इलाकों में सेप्टेज प्रबंधन से जुड़े गंभीर मुद्दों पर ध्यान दिया था, जहां सीवर प्रणाली मौजूद नहीं है। इस मामले में अगली सुनवाई दो मई, 2025 को होगी।