पांच नवंबर, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सौंपे हलफनामे के मुताबिक, लक्षद्वीप ने ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन के लिए कई कदम उठाए हैं। यह हलफनामा 14 मई, 2019 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश पर कोर्ट में सबमिट किया गया है। इस आदेश के मुताबिक मामले में तिमाही रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
इस रिपोर्ट में एक अप्रैल, 2024 से 30 सितंबर, 2024 के बीच हुई प्रगति की जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में एनजीटी द्वारा 23 अप्रैल, 2024 को दिए आदेश का भी पालन किया गया है। एनजीटी द्वारा दिए निर्देशों को ध्यान में रखते हुए लक्षद्वीप प्रशासन ने कई कदम उठाए हैं।
इन कदमों में तरल कचरे के प्रबंधन और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों की देखरेख के लिए एक उच्च स्तरीय निगरानी समिति (एचएलएमसी) का गठन शामिल है। हलफनामे के मुताबिक लक्षद्वीप में पैदा होने वाला कुल ठोस कचरा करीब 18 टन प्रतिदिन (टीपीडी) है।
इसमें 12 टीपीडी गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरा और छह टीपीडी मुख्य रूप से रसोई में पैदा होने वाला कचरा है। लक्षद्वीप के निवासियों को घरेलू स्तर पर रसोई से निकलने वाले कचरे का प्रबंधन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि उसे मवेशियों, बकरियों और मुर्गियों जैसे जीवों को खिलाया जा सके।
पंचायत विभाग ने सात और 30 मई, 2024 को पंचायत सचिव की अगुआई में बैठकें कीं। पशुपालन, कृषि, मत्स्य पालन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा उद्योग जैसे विभागों के प्रमुख हितधारकों ने द्वीपों में मवेशियों, मुर्गियों और बकरियों द्वारा रसोई से निकलने वाले कचरे की खपत का आंकलन करने के लिए चर्चा की है।
कचरे के उचित प्रबंधन के लिए उठाए गए हैं कई कदम
पशुपालन विभाग द्वारा 2023-24 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक, 620 मवेशी, 22,680 बकरियां और 83,410 मुर्गियां हैं। इन मवेशियों की दैनिक खपत की औसत आवश्यकता 10.64 मीट्रिक टन प्रतिदिन आंकी गई है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने कवरत्ती, मिनिकॉय और कल्पेनी द्वीपों पर 35 बायोगैस संयंत्र स्थापित किए हैं। ये संयंत्र मिलकर हर दिन रसोई से निकलने वाले 269.5 किलोग्राम कचरे का प्रबंधन कर सकते हैं।
गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे के लिए, 2019-2020 में कवरत्ती और अगत्ती द्वीपों पर 100 किलोग्राम प्रति घंटा क्षमता वाले दो भस्मक स्थापित किए गए हैं, ताकि जलने योग्य कचरे को जलाया जा सके। वर्तमान में, सभी द्वीपों पर मौजूद 1,925 मीट्रिक टन कचरे को जलाया जाना बाकी है। ऐसा न हो सक पाने की प्रमुख वजह भस्मक की सीमित क्षमता है।
रिपोर्ट के मुताबिक द्वीपों पर पैदा होने वाले सीवेज का मुख्य स्रोत घर, निजी व्यवसाय और सरकारी इमारतें हैं। इन सभी प्रतिष्ठानों में मल अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए सेप्टिक टैंक और सोख गड्ढे हैं, साथ ही गैर-मल अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए अलग से सोख गड्ढे भी हैं। लक्षद्वीप ने अंद्रोत्त, कवरत्ती और बित्रा के द्वीपों पर 1,618 बायो-डाइजेस्टर भी लगाए हैं।