11 फरवरी का दिन। गुजरात के सूखाग्रस्त क्षेत्र सौराष्ट्र के मोरबी जिले में सूर्य का उदय होना अभी बाकी है। खिराई गांव से गुजर रही नर्मदा की नहर के किनारे अचानक हजारों डीजल पंपों की घड़घड़ाहट शुरू हो जाती है। नहर के किनारे जितना संभव हो सके, उतना पानी निकालने के लिए सैकड़ों किसान जमा हैं। वे अधिक से अधिक पानी का निचले इलाकों में भंडारण करना चाहते हैं। गांव के किसान रोहित सांज्य का कहना है, “नहर का पानी तेजी से कम होता जा रहा है।
सरकार ने पहले कहा था कि सिंचाई के लिए नहर का पानी 15 मार्च तक उपलब्ध रहेगा लेकिन अब इसे एक महीने कम कर दिया गया है।” उनका कहना है कि संशोधित निर्णय ने ठंड की पूरी फसलों को खतरे में डाल दिया है। वह बताते हैं कि फसलें पकने की अवस्था में पहुंच गई हैं। मार्च-अप्रैल में कटाई से पहले कुछ चरणों में पानी की जरूरत है। पानी की आपूर्ति रुकने से पहले हम इन अंतिम चरणों की सिंचाई के लिए पानी का भंडारण करना चाहते हैं।” सांज्य ने अपने तीन हेक्टेयर के खेत में गेहूं, अदरक और जीरा उगाया है।
दूसरे गांवों में हालात और विचित्र हैं। मोरबी जिले के खांखरेची गांव के हितेश पटेल का कहना है, “सरकार ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल तैनात कर दिया है। यह पुलिस बल रोज हमारे गांव का दौरा करता है, यह देखने के लिए कि कोई पानी तो नहीं निकाल रहा है। हमने अपनी फसल के लिए पर्याप्त पानी एकत्र कर लिया है।” कच्छ से सटे सूखा प्रभावित बनासकांठा जिले में पुलिस की एक टुकड़ी ने पालनपुर गांव में 5 फरवरी को रेड मारी थी और नहर से पानी निकालने के लिए डाले गए पाइपों को उखाड़ दिया था। गिरफ्तारी की आशंका से फिलहाल किसान डरे हुए हैं।
सांज्य कहते हैं, “हमने ऐसी खतरनाक परिस्थितियों का कभी सामना नहीं किया। सरदार सरोवर बांध की उंचाई बढ़ाते समय सरकार ने आश्वासन दिया था कि वह सूखाग्रस्त कच्छ और सौराष्ट्र को पानी उपलब्ध कराएगी। लेकिन बांध के पूरी क्षमता के साथ शुरू होने के एक साल के भीतर ही नहरें सूखने लगी हैं।”
16 फरवरी को मोरबी जिले के कुछ गांवों के किसानों ने सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (एसएसएनएल) के अधिकारियों से मुलाकात की थी जो नहरों का प्रबंधन करते हैं। सुरेंद्रनगर जिले के कुंभरिया गांव के डीपी पटेल का कहना है, “उन्हें अनौपचारिक रूप से सिंचाई के लिए नहर से पानी निकालने की अनुमति दे दी गई थी लेकिन साथ ही चेता दिया था कि पुलिस से सावधान रहें क्योंकि वह किसी भी वक्त निरीक्षण के लिए आ सकती है। उन्होंने बताया कि अभी तो संकट की शुरूआत भर है।
22 जनवरी को जारी सरकारी अडवाइजरी में कहा गया है कि किसान नर्मदा का पानी मिलने की उम्मीद में गर्मियों की फसल न उगाएं। नर्मदा का पानी मिलने को लेकर स्पष्टता की कमी है। ग्रामीण इलाकाें में 15 फरवरी जबकि शहरी क्षेत्रों में 15 तक तक पानी मिलने की बात सरकार द्वारा बताई गई है।
खिराई गांव के सीमांत किसान जयराम भाई पटेल बताते हैं, “गर्मियों की फसलें चारे का मुख्य स्रोत हैं। इस सूखा प्रभावित क्षेत्र में मवेशी पर किसान काफी हद तक निर्भर हैं। ज्वार, बाजरा और तिल करीब 0.85 मिलियन हेक्टेयर में उगाया जाता है। मेरी तीन भैंसें और एक गाय करीब 13 लीटर दूध देती हैं। यह मेरी आमदनी का मुख्य स्रोत है। अगर मैंने चारा नहीं उगाया तो प्रतिदिन 200 रुपए के हिसाब से इस पर खर्च करना पड़ेगा।”
अहमदाबाद में रहने वाले राजनीतिक समीक्षक हरि देसाई ने नर्मदा के मसलों पर बहुत कुछ लिखा है। उन्हें इस संकट के पीछे राजनीति का हाथ नजर आता है। उनका कहना है, “भारतीय जनता पार्टी ने भले ही दिसंबर 2017 में विधानसभा चुनाव जीत लिए हों लेकिन पार्टी का मोरबी और बनासकांठा जिले में पूरी तरह सफाया हो गया। यहां से चुनाव हारने वाले एक बीजेपी नेता ने खुलेआम धमकी दी थी कि वह लोगों को सबक सिखाएंगे। खेती के लिए वह नहर से पानी नहीं लेने देंगे।”
हालांकि सरकार इस संकट के लिए मध्य प्रदेश में नदी के जलग्रहण क्षेत्र में कम बारिश को जिम्मेदार बता रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी के जल सलाहकार बीएन नावलावाला ने डाउन टू अर्थ को बताया, “जलवायु में बदलाव के कारण नर्मदा के ऊपर के राज्यों में 2017 के मानसून में कम बारिश दर्ज की गई है। इस कारण सरदार सरोवर बांध को 28 मिलियन एकड़ फीट पानी की तुलना में 14.55 मिलियन एकड़ फीट पानी ही प्राप्त हुआ है। नर्मदा बेसिन क्षेत्र के चार राज्यों गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में पानी का बंटवारा होता है, ऐसे में गुजरात के हिस्से का पानी करीब आधा रह गया है। राज्य को 9 मिलियन एकड़ फीट पानी के बजाय 4.71 मिलियन एकड़ फीट पानी ही मिला है।
नावलावाला ने जिन तथ्यों को साक्षा किया है, उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। लेकिन जिस तथ्य का स्पष्टीकरण बाकी है, वह यह है कि बांध का जलस्तर सितंबर में अधिकतम 130.64 मीटर पर पहुंच गया था। इसका अर्थ यह है कि पिछले साल सितंबर के मुकाबले जलस्तर 8.75 मीटर अधिक था। यह 1.5 मिलियन एकड़ फीट अधिक है। ऐसे में सवाल है कि पानी गया कहां?
मानव निर्मित संकट
डाउन टू अर्थ ने जब संकट की तह में जाने की कोशिश को तो पता चला कि 2017 में मानसून के बाद जलाशय में पिछले साल की तुलना में अधिक पानी था। 31 दिसंबर 2017 को पानी का स्तर पिछले साल के इसी दिन के स्तर से नीचे चला गया। जलस्तर में यह गिरावट मामूली नहीं थी। 2016 में सितंबर से दिसंबर के बीच जलस्तर 3.12 मीटर नीचे चला गया। 2017 में इसी अवधि के दौरान यह गिरावट 11.67 मीटर हो गई।
12 जनवरी 2018 को राज्य के मुख्य सचिव जेएन सिंह ने मीडिया को जानकारी दी कि राज्य पानी के भीषण कमी का सामना करने वाला है क्योंकि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर खतरनाक स्तर से गिर गया है। 20 फरवरी को पानी 110.64 मीटर से नीचे चला गया। यह पिछले एक दशक का सबसे निम्न स्तर था। ऐसे समय में एसएसएनएल को सभी पावर हाउस बंद करने पड़े थे।
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, “यह पानी की दिनदहाड़े डकैती थी। सभी को पता था कि यह किसने की। ऐसे में सवाल है कि सितंबर से दिसंबर के बीच हुआ क्या था?
इसे राजनीतिक चाल कहा जाए या महज संयोग कि विवादित सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन का बेहतर प्रबंधन नहीं किया जा सका। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य में बांध के फाटक खोलकर अपना जन्मदिन मनाया। इस उदघाटन के साथ ही 15 दिन चले मां नर्मदा महोत्सव का समापन हुआ। राज्य सरकार ने छह दशक पुरानी इस परियोजना के पूर्ण होने पर यह महोत्सव आयोजित किया था। महज दो महीने बाद विधानसभा चुनाव थे। मोदी जनता को संदेश देना चाहते थे कि उन्होंने सौराष्ट्र और कच्छ को पानी देकर अपना चुनावी वादा पूरा कर दिया है।
इस विशाल बांध से बहुत तेजी से 458 किमी लंबी मुख्य नहर, इससे जुड़ी नहरों और लघु नहरों में पानी छोड़ दिया गया। सूखाग्रस्त राजकोट शहर के लोगों ने पहली बार अजी बांध में पानी के ओवरफलो को देखा। सभी बांधों में पानी पहुंचा दिया गया जो पहले से मानसून के कारण भरे हुए थे। सांज्य बताते हैं, “हम मच्छू बांध से समुद्र की ओर पानी को बहते हुए देखकर हैरान थे, सभी नहरों में पानी ओवरफलो हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि हमारा पानी का संकट खत्म हो गया है।”
अचानक पानी का बहाव देखकर गुजरात के किसान ने खुद को अजीबोगरीब हालात में पाया। 22 फरवरी को गुजरात सरकार की ओर से जारी सामाजिक आर्थिक रिव्यू में अनुमान लगाया गया है कि 2017-18 में खाद्य फसलों के उत्पादन में 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जाएगी। यह हालात तब हैं जब रबी की फसल के रकबे में इस साल 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, दलहन का रकबा दोगुना हुआ है और तिलहन में 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जबकि अदरक के रकबे में आश्चर्यजनक ढंग से 222 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
राज्य के सबसे बड़े किसान समूह खेडूत समाज के सचिव सागर राबड़ी का कहना है, “यह पानी की साफ बर्बादी है। जब रबी की फसल का कटाई का समय आया तो पानी खत्म होने लगा। बांध से छोड़ा गया पानी अंतिम छोर पर नहीं पहुंचा क्योंकि आधे से अधिक प्रस्तावित नहरें अब तक नहीं बन पाई हैं। राबड़ी बताते हैं कि चालू नहरों से पानी बह गया। वह सुरेंद्रनगर, अहमदाबाद और मोरबी का दौरा कर किसानों को जागरूक कर रहे हैं कि वे सरकार से नर्मदा के पानी के इस्तेमाल का आंकड़ा मांगे। पानी के उपयोग की जानकारी पारदर्शी तरीके से नहीं मिल रही है। पानी की बर्बादी को लेकर खेडूत समाज ने मोरबी और सुरेंद्रनगर में नहरों के किनारे बसे गांवों में 11 से 15 फरवरी किसान यात्रा की और 12 से 16 मार्च तक विधानसभा के सामने धरना भी दिया। विधानसभा में जमा की गई रिपोर्ट के अनुसार, 71,758 किमी की प्रस्तावित नहरों में 44,300 किमी नहरें ही 2016 तक बन पाई थीं।
सरदार सरोवर बांध से जुड़ी समस्याओं पर काफी लिखने वाले विद्युत जोशी बताते हैं कि सरकार नहरों की शाखाओं और छोटी नहरों को बनाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है। इनसे ही नर्मदा का पानी लोगों तक पहुंच सकता है। अब तक बनी नहरों से 0.3 मिलियन हेक्टेयर तक ही सिंचाई के लिए पानी पहुंच सकता है जबकि 1.8 मिलियन हेक्टेयर तक पानी पहुंचाने का वादा था।
नर्मदा के पानी की असफलता का एक और दुष्परिणाम है। सरदार पटेल बांध से हर साल कनाल हेड पावर हाउस (सीएचपीएच) से 250 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य है। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अभियंता ने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बीच 16:27:57 के अनुपात में इसका बंटवारा होना है। जुलाई 2017 में जब से जल की उपलब्धता के आधार पर गुजरात और राजस्थान में सिंचाई चालू हुई है और सीएचपीएच चालू हुआ है, तब से एक यूनिट भी बिजली पैदा नहीं की गई है। इसका अर्थ है कि गुजरात को बिजली पैदा न करने पर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को भुगतान करना होगा। भुगतान की राशि के बारे में प्रश्न किया गया तो नावलावाला ने उत्तर टाल दिया। सीएचपीएच में बिजली उत्पादन के वक्त यह भी सुनिश्चित करना है कि निचले हिस्सों में पानी की उपलब्धता बनी रहे जो पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
राबड़ी प्रश्न करते हैं, “अगर नर्मदा का जलग्रहण क्षेत्र कम मानसून का सामना कर रहा है तो प्रधानमंत्री ने जन्मदिन पर बांध के फाटक खोले ही क्यों?”