वाराणसी में गंगा किनारे हो रहे कंक्रीट के निर्माण के खिलाफ क्यों नहीं की गई कार्रवाई: एनजीटी

कोर्ट ने यूपीपीसीबी से पूछा है कि टेंट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर गंगा के किनारे कंक्रीट की संरचनाओं का निर्माण करके नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई
गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं, यह पर्यावरण के नजरिए से बेहद अहम होने के साथ-साथ धार्मिक आस्था का भी प्रतीक है; फोटो: आईस्टॉक
गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं, यह पर्यावरण के नजरिए से बेहद अहम होने के साथ-साथ धार्मिक आस्था का भी प्रतीक है; फोटो: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि टेंट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर वाराणसी में गंगा के किनारे कंक्रीट की संरचनाओं का निर्माण करके नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई।

गौरतलब है कि मामला  गंगा नदी के किनारे 100 एकड़ में फैली टेंट सिटी परियोजना से जुड़ा है। आवेदक की शिकायत है कि वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए स्थापित यह परियोजना वनस्पतियों और वहां पाने जाने वाले जीवों को नुकसान पहुंचा रही है। इतना ही नहीं आवेदक ने चिंता जताई है कि इससे पैदा हो रहे दूषित सीवेज को बिना ट्रीटमेंट के गंगा में छोड़ा जा रहा था।

इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव (पर्यावरण) की ओर से 17 नवम्बर 2023 को अनुपालन रिपोर्ट दायर की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक यूपीपीसीबी ने इस मामले में 23 नवंबर, 2023 के एक आदेश के माध्यम से मेसर्स प्रवेग कम्युनिकेशन (इंडिया) लिमिटेड और मेसर्स निरान, टेंट सिटी प्रत्येक पर 17,12,500 रुपए का जुर्माना लगाया है।

उन्हें इसके भुगतान के लिए 15 दिन का समय दिया गया था। हालांकि यह समय सीमा बीत चुकी है और यूपीपीसीबी की ओर से पेश वकील का कहना है कि अब तक, न तो परियोजना समर्थकों ने कोई भुगतान किया है और न ही यूपीपीसीबी ने कोई राशि वसूल की है।

कैसे कछुआ अभयारण्य को किया जा सकता है गैर-अधिसूचित, कोर्ट ने पूछा सवाल

वहीं आवेदक ने अपने हलफनामे में कहा है कि बहुत सारी निर्माण सामग्री और संरचनाएं अभी भी नदी तट या तल के किनारे खड़ी हुई हैं। इनमें कंक्रीट संरचना, ईंट संरचना शामिल हैं। ऐसे में अदालत न कहा है कि अधिकारियों द्वारा आज तक क्षतिग्रस्त पर्यावरण की बहाली के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

वहीं एनजीटी ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वकील से यह भी पूछा है कि कैसे एक कछुआ अभयारण्य को गैर-अधिसूचित किया जा सकता है,  जब तक कि यह पता न चल जाए कि वास्तव में, साइट पर कोई कछुए नहीं रह रहे हैं और यदि कछुए मौजूद थे, तो पूर्व अधिसूचित साइट पर उपलब्ध कछुओं का क्या हुआ। हालांकि वकील इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सके और उन्होंने इसके लिए कोर्ट से और समय देने का अनुरोध किया है।

गौरतलब है कि इस मामले में वाराणसी विकास प्राधिकरण ने 29 नवंबर 2023 को एनजीटी में दाखिल अपने जवाब में कहा था कि वाराणसी टेंट सिटी परियोजना से निकलने वाला सीवेज गंगा नदी में नहीं छोड़ा जा रहा है। साथ ही सीवेज और ठोस के उचित निपटान के लिए कानून को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था की गई है। प्राधिकरण का कहना था कि यह परियोजना पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा रही और न ही यह गंगा को मैला कर रही है

वाराणसी विकास प्राधिकरण ने कोर्ट को यह भी आश्वासन दिया था कि भविष्य में टेंट सिटी पानी के बहाव से 100 मीटर दूर बसाई जाएगी। बता दें कि मौजूदा समय में टेंट सिटी को जल प्रवाह से 60 मीटर की दूरी पर बसाया गया है।

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