यूपी : सात महीने बीत गए लेकिन न तालाब पहचाने गए और न ही बनी कार्ययोजना

एनजीटी की समिति ने कहा है कि बॉयोडिग्रेडबल प्लास्टिक का इस्तेमाल प्रदूषण को कम करने में कारगर हो सकता है। उत्तर प्रदेश को छह महीने में ऐसी योजना तैयार करनी चाहिए।
यूपी : सात महीने बीत गए लेकिन न तालाब पहचाने गए और न ही बनी कार्ययोजना
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उत्तर प्रदेश में नदियों, तालाब और जलाशयों की स्थिति के बारे में कोई ठोस जानकारी और योजना अभी तक नहीं तैयार हो सकी है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल  (एनजीटी) के 25 फरवरी, 2020 के आदेश के मुताबिक उत्तर प्रदेश समेत देशभर के राज्यों को वाटर बॉडीज की पहचान और उसके प्रबंधन, संरक्षण को लेकर राज्य को 30 जुलाई, 2020 तक जिला स्तरीय योजना तैयार करनी थी। वहीं, जिलाधिकारियों की ओर से समय से जवाब न दाखिल करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को 30 जुलाई, 2020 के बाद से प्रत्येक महीने एक लाख रुपये के हिसाब से जुर्माना वसूलने को भी कहा गया था। लेकिन यह सब कुछ अभी तक नहीं हो पाया। न ही राज्यों में जलाशयों की स्थिति रिपोर्ट और योजनाएं तैयार हुईं न ही सीपीसीबी ने राज्यों को देरी के कारण जुर्माने के संबंध में कोई पत्र ही लिखा है। 

एनजीटी के जरिए गठित दो सदस्यीय निगरानी समिति ने 01 अक्तूबर, 2020 अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार के धीमें कामकाज पर सवाल उठाया गया है। इस समिति के चेयरमैन जस्टिस एसवीएस राठौर हैं। समिति ने अपनी टिप्पणी और सिफारिश में कहा है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जवाब देना चाहिए कि आखिर उनकी ओर से उन प्राधिकरणों और अधिकारियों को एक लाख रुपये जुर्माने देने के लिए आदेश क्यों नहीं दिया गया। हालांकि एनजीटी ने कोविड-19 के दौरान लंबे लॉकडाउन राज्य और सीपीसीबी को स्थिति रिपोर्ट और जवाब दाखिल करने के ले 31 अक्तूबर तक की मोहलत दी है। 

दो सदस्यीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए राज्य सरकार को छह महीने में एक ऐसी योजना तैयार करनी चाहिए जिससे घरेलू और औद्योगिक स्तर पर पूरी तरह से बायो डिग्रेडबल प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा सके। साथ ही वाटर बॉडीज की साफ-सफाई और पुनरुद्धार में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित किए जाने की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। 

समिति ने कहा कि ग्रामीण पंचायती विभाग ने बताया है कि राज्य में मनरेगा के तहत 2,40,469 वाटर बॉडीज का पुनरुद्धार किया गया है जबकि यह एक सामान्य कथन भर है। इसका निरीक्षण और परिणाम भी देखा जाना चाहिए। साथ ही राज्य के सभी जियो टैगिंग वाले जलाशयों में इनको शामिल करना चाहिए। वहीं, वन विभाग ने 25 करोड़ पौधारोपण की बात कही थी, इसे पंचायत स्तर पर जिम्मेदारी तय होने के साथ ही अमल में लाया जाना चाहिए। 

प्रत्येक जिलाधिकारी को प्रत्येक गांव से एक एक तालाब की जिम्मेदारी लेने को कहा गया है। इस योजना को जिला पर्यावरण योजना में शामिल किया जाना चाहिए और हर 15 दिन पर इसकी समीक्षा डीएम को करनी चाहिए। साथ ही इसे वार्षिक कार्ययोजना में भी शामिल किया जाना चाहिए। 

एनजीटी की ओर से देशभर के राज्यों को जलाशयों की पहचान, जियो टैगिंग और उनके संरक्षण व पुनरुद्धार के काम का आदेश दिया गया है। बहरहाल ज्यादातर राज्यों ने अभी तक अपनी कार्ययोजना नहीं तैयार की है। इस मामले पर एनजीटी नवंबर में सुनवाई करेगा। 

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