उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार ने अभी तक पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में लगाए गए जुर्माने की राशि को जमा नहीं कराया है। एनजीटी के समक्ष सीपीसीबी द्वारा 11 अगस्त को दायर की गई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। सीपीसीबी द्वारा यह जुर्माना सीवेज परियोजनाओं को समय पर पूरा न कर पाने के लिए लगाया था। गौरतलब है कि इन राज्यों में बड़े पैमाने पर अशोधित सीवरेज बिना ट्रीटमेंट के गंगा नदी में छोड़ा जा रहा है, जिससे प्रदूषण में इजाफा हो रहा है।
इसके साथ ही रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि झारखंड पर लगाए जुर्माने को हटा लिया गया है क्योंकि उसने 6 नालों में से दो को शुरू कर दिया गया है, बाकी चार नालों पर भी काम चल रहा है। साथ ही उसने सीवेज ट्रीटमेंट के अंतरिम उपायों को अपना लिया है
इस मामले में एनजीटी ने 12 दिसंबर, 2019 को एक आदेश जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि सीवेज उपचार से संबंधित परियोजनाओं को 31 जून, 2020 तक पूरा कर लिया जाना था। और अन्य परियोजनाओं के लिए 31 दिसंबर, 2020 तक की छूट दी गई थी। जो भी राज्य उसे पूरा कर पाने में विफल रहेंगे उन्हें मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया था।
जब तक यह पूरे नहीं होते तब तक गंदे सीवेज को सीधे गंगा में बहाए जाने से बचने के लिए अंतरिम उपायों को अपनाने का भी आदेश दिया गया था। जिससे दूषित सीवेज को गंगा के पानी में मिलने से रोका जा सके। साथ ही यदि 1 नवंबर, 2019 तक इन उपायों को नहीं अपनाया जाता तो इसके लिए मुआवजा भरना जरुरी कर दिया था।
इस आदेश का पालन करते हुए 23 जून 2020 को सीपीसीबी ने एक नई रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट कर दी थी। इस रिपोर्ट में जो नाले दूषित सीवेज को नदी में डाल रहे थे, उनपर कितना जुर्माना लगाया जाना है इस बात की गणना दी गई थी।
रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी है कि पश्चिम बंगाल ने 26 जून को सीपीसीबी के अकाउंट में जुर्माने के 20 लाख रुपये जमा करा दिए थे। यह जुर्माना 1 नवंबर, 2019 से - 29 फरवरी 2020 की समयावधि के लिए लगाया गया था।
रिपोर्ट के अनुसार यह जुर्माना जंगीपुर नाले के लिए लगाया गया था, जिसका भुगतान कर दिया गया है। इसके बारे में पश्चिम बंगाल के राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के प्रबंधन समूह ने एक पत्र द्वारा 8 जुलाई को सीपीसीबी को इस बाबत जानकारी दी है।
गौरतलब है कि गंगा प्रदूषण का एक बड़ा कारण आसपास के कस्बों और शहरों से निकला अपशिष्ट जल है। आंकड़ों के अनुसार गंगा में 80 फीसदी प्रदूषण घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के कारण होता है। इनके ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था न होने के कारण इस गंदे पाने को ऐसे ही गंगा और उसकी सहायक नदियों में छोड़ दिया जाता है।