नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) नर्मदा घाटी पर बने सरदार सरोवरब बांध की गैर कानूनी डूब को तो अब तक तो वैद्य नहीं कर पाया है अब उसने घाटी में एक और नए बांध के निर्माण के लिए निविदा जारी कर दी है, हालांकि यह गैर कानूनी है। एनवीडीए ने मध्य प्रदेश के हरदा एवं होशंगाबाद जिले में नर्मदा घाटी पर मोरंड एवं गंजाल नदी पर प्रस्तावित संयुक्त सिंचाई परियोजना के निर्माण के लिए निविदा (टेंडर) जारी किया है। यह पूरी तरह से गैर कानूनी है। यह बात जिंदगी बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता शमारुख धारा ने डाउन टू अर्थ को बताई। उन्होंने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मिली है कि नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन कर मोरंड एवं गंजाल बांध की निविदा जारी की गई है। ध्यान रहे कि यह बांध नर्मदा घाटी पर बनने वाले तीस बड़े बांधों में से छठे नंबर का होगा। इसके पहले पांच बड़े बांध इस घाटी पर बन चुके हैं। जिनका अब तक स्थानीय जनता को लाभ नहीं पहुंच पाया है।
ध्यान रहे कि परियोजना प्रस्तावक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को 17 अक्टूबर, 2012 में टीओआर (टर्म्स ऑफ रिफरेंसेज) मिला था, जिसकी वैधता 2 वर्ष की थी, जिसे बढ़ाकर 4 वर्ष किया गया था। परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जन सुनवाई और पर्यावरण प्रभाव का आकलन करके इसी समय के अंदर केन्द्रीय सरकार के पर्यावरण मंत्रालय में भेजना था। जिसे परियोजना प्रस्तावक एनवीडीए ने आनन फानन में नवम्बर 2015 में इस परियोजना से प्रभावित तीन जिलों में जन सुनवाई कर ली जिसमें लोगों को कठोर विरोध के बावजूद इसकी रिपोर्ट के साथ पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट जुलाई 2016 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्तुत की। इस परियोजना में हरदा, होशंगाबाद एवं बेतुल जिले का 2371.14 हेक्टेयर का घना जंगल डुबाया जा रहा है। कानून के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर वन भूमि को खत्म करने के लिए फारेस्ट क्लियरेंस लेना अनिवार्य होता है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी मार्च, 2017 में स्पष्ट रूप से कहा था की इस परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी तभी मिलेगी जब एनवीडीए को फारेस्ट क्लियरेंस प्राप्त होगा कानून के अनुसार फारेस्ट क्लियरेंस की प्रक्रिया शुरू किए बिना पर्यावरणीय मंजूरी के लिए आवेदन करना गैर कानूनी है।
सितंबर, 20109 में सूचना अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार इस परियोजना को ना तो पर्यवार्नीय मंजूरी मिली है और ना ही फारेस्ट क्लियरेंस मिला है। इन सभी तथ्यों के आधार पर की जब वन एवं पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली हो तब नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा बांध के निर्माण के लिए निविदा जारी करना कानून का उल्लंघन है। वर्ष 2012 में जिस परियोजना की लागत 1434 करोड़ बताया गया था, उसी परियोजना में बिना कोई काम शुरू हुए ही बिना पिछली शिवराज सिंह की भाजपा सरकार ने बिना सोचे समझे यह लागत दोगुना करके 2017 में लगभग 2800 करोड़ का प्रशासनिक स्वीकृति जल्द बाजी में दे दी। यह एक विडंबना ही है कि आज जब मध्य प्रदेश के धार, अलीराजपुर, बड़वानी जिले के 178 गांव सरदार सरोवर बांध के बेक वाटर से अपनी जिंदगी से संघर्ष कर रहे है तब एनवीडीए एक और बड़ा बांध बनाने की तैयारी कर रह है जो कि निश्चित ही प्रदेश के हित में नही कहा जा सकता है।