केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने हरियाणा सरकार की प्राचीन सरस्वती नदी पुनरुत्थान परियोजना के प्रस्ताव पर कहा है कि इस काम को पर्यावरण मंजूरी की जरूरत ही नहीं है। जबकि कुछ महीनों पहले ही मंत्रालय की समिति ने परियोजना प्रस्ताव के मकसद को अस्पष्ट बताकर बिना निर्णय लौटा दिया था। करीब 109 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना से हरियाणा सरकार सोंब नदी पर बांध बनाकर 8 किलोमीटर लंबी पाइप के जरिए सरस्वती जलाशय और चिन्हित जलधारा में पानी पहुंचाएगी। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से लुप्तप्राय सरस्वती नदी पुनर्जीवित हो जाएगी।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की नदी घाटी विशेषज्ञ समिति ने परियोजना पर 25 मार्च, 2019 को पहली बार विचार करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा था कि इस परियोजना से न तो पनबिजली बनाई जा सकती है और न ही इसका कोई सिंचाई वाला इस्तेमाल हो सकता है। ऐसे में परियोजना का कोई फायदा नजर नहीं आता है। परियोजना स्पष्ट नहीं है। इसे दोबारा स्पष्ट मकसद के साथ 1 (सी) श्रेणी में विचार के लिए लाया जाए।
वहीं, हरियाणा सरकार ने जब दोबारा पर्यावरण मंजूरी के लिए इस परियोजना का प्रस्ताव केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की नदी-घाटी परियोजना विशेषज्ञ समिति के पास 27 मई को रखा तो इसके कई फायदे गिनाए। सरकार ने कहा कि परियोजना से हिमाचल प्रदेश और हरियाणा का न सिर्फ भू-जल स्तर सुधरेगा बल्कि, बाढ़ नियंत्रण, मत्यस्य पालन जैसे काम भी सधेंगे। हालांकि, इस बार पर्यावरण मंत्रालय की समिति ने इसे पर्यावरण मंजूरी के दायरे से ही बाहर कर दिया। समिति ने कहा कि परियोजना प्रस्ताव की जांच में पाया गया है कि यह संरचना के विकास से जुड़ी परियोजना है। वहीं, फायदा छोड़कर पर्यावरण मंत्रालय की विशेष समिति ने बैठक में परियोजना से होने वाली पर्यावरणीय क्षति को लेकर कोई बातचीत नहीं की है।
हरियाणा सरकार मानती है कि प्राचीन सरस्वती नदी जो अब लुप्त है वह उनके राज्य से कभी बहती थी। इस लुप्त नदी के जलाशय और सूखी जलधारा तक एक दूसरी नदी से डैम और पानी पाइप के जरिए पहुंचाकर इसे फिर से जीवित किया जा सकता है। इसलिए परियोजना को हेरिटेज प्रोजेक्ट कहा जा रहा है।
करीब 109 करोड़ रुपये लागत वाली इस परियोजना के लिए 33.4 मीटर ऊंचा और 160 मीटर लंबा बांध प्रस्तावित है। इसके अलावा 861 हेक्टेयर मीटर वाली 8.8 किलोमीटर लंबी पाइप भी सोंब नदी से निकालकर सूखी सरस्वती नदी के जलाशय तक पहुंचाई जानी है। इस परियोजना में 31.26 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्जन भी होगा। वहीं, सरकार का दावा है कि इस परियोजना में एक भी परिवार का विस्थापन नहीं होगा और न ही पाइपलाइन के लिए जमीन की जरूरत होगी। हरियाणा सरकार ने सरस्वती नदी पुनरुत्थान के लिए जलाशय की जगह पहले ही अधिग्रहित कर लिया है।
पर्यावरण मंत्रालय के इस कदम के बाद परियोजना पर यह सवाल भी उठ रहा है कि जब यह परियोजना पर्यावरण मंजूरी के दायरे से बाहर थी तो पहली बार नदी एवं घाटी परियोजना की विशेषज्ञ समिति ने इसके दस्तावेज क्यों मंगाए? साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि परियोजना को पर्यावरण मंजूरी के दायरे से बाहर किए जाने की एक सोची-समझी रणनीति है।