सरदार सरोवर बांध के कारण एक-एक आदिवासी एक बार नहीं कई-कई बार विस्थापित होने को मजबूर हो रहा है। क्योंकि जहां भी उसे नई जगह पर बसाया जाता है, कुछ समय बाद वह क्षेत्र भी डूब में आ जाता है। यही नहीं, अब तो इस बांध से डूबने वाले अधिकृत गांवों के अलावा भी कई गांवों में इस बांध का पानी जा घुसा है। ऐसे में ये गांव दिन ही नहीं, हफ्तों व महीनों तक टापू बने रहते हैं। इन तमाम मुद्दों के हल के लिए अनशन पर बैठी मेधा पाटकर से धरना स्थल पर ही डाउन टू अर्थ ने विशेष बातचीत की।
प्रश्न: क्या अब सरदार सरोवर बांध में अधिकृततौर डूबने वाले गांवों के अतिरिक्त भी गांव डूब रहे हैं?
मेधा: वास्तविकता ये है कि जितने गांव सरकार ने डूब क्षेत्र के बताए हैं, जैसे कि 192 गांव और 1 शहर मध्य प्रदेश के, 33 गांव महाराष्ट्र के और गुजरात के 19 गांव। अब इसके अलावा भी मध्य प्रदेश के कई गांवों में बांध का पानी पहुंच गया है। इन गांवों में जो जमीन भूअर्जित नहीं थी, यानी जो कि डूब में नहीं आने वाली थी, वहां भी पानी पहुंच गया, लोगों ने घेरा डाला हुआ है, कई स्थानों पर गांव टापू बन कर रह गए हैं। ग्रामीणों को अपने-घर पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस प्रकार से बड़ी संख्या में गांव प्रभावित हुए हैं।
प्रश्न: मध्य प्रदेश में इस प्रकार के गांवों में कितने परिवार प्रभावित हो रहे हैं?
मेधा: जिन 16,000 परिवार को बैक वाटर कम करके, कमेटी बैठाकर और अवैज्ञानिक रिपोर्ट के आधार बनाकर डूब क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था, उन लोगों के घरों के अंदर तक पानी पहुंच गया है। तो ये ऐसे परिवार हैं, जिनके भूअर्जित करके कार्यपालन यंत्री के नाम पर चढ़े, लेकिन उनको डूब से बाहर कर दिया गया है। यह बहुत ही गलत हुआ है। अधिकारियों द्वारा हिसाब-किताब सही नहीं किया गया है।
प्रश्न: जिन परिवारों का वास्तव में या कागज पर ही सही पुनर्वास हो चुका है,उनके हालात वर्तमान में कैसे हैं?
मेधा: ऐसे तो देखें कुल मिलाकर आज भी 32,000 परिवार अपने ही गांव में ही बसे हुए हैं, चूंकि इनके लिए बनाए गए पुनर्वास स्थलों की हालत बद से बदतर है और आज तक उसमें किसी प्रकार सुधार नहीं किया गया है। ऐसे में उनके लिए वहां रहना असंभव था।
प्रश्न: क्या वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारियों का रवैया भी पूर्ववर्ती सरकार जैसे ही बना हुआ है?
मेधा: क्यों नहीं। और कई अधिकारी पिछली सरकार से अब वर्तमान सरकार में चलते आए हैं, ऐसे में उन लोगों ने जो झूठे शपथ पत्र गुजरात व केंद्र सरकार को दिए हैं, वे तो उनका समर्थन ही करते आएंगे।
प्रश्न: क्या आपको लगता है आज भी अनशन सरकारों से अपनी मांग पूरी करवाने का सबसे बड़ा हथियार है?
मेधा: उपवास, उपवास होता है और यह अपनी आत्मा को भी बल देता है। साथ ही, समाज को भी आंदोलित करता है, केवल सरकार पर दबाव ही नहीं डालता है। जब शासनकर्ताओं का ध्यान लाखों लोगों की बर्बादी की ओर नहीं जाता है, ऐसे में अपने को स्वयं ही चुनौती लेनी पड़ती है।
प्रश्न: क्या सरकारें आपके अनशन के सामने झुकी हैं?
मेधा: ऐसा नहीं है कि सरकार ने एक न सुनी हमारी। सरकारों को हमने कई मर्तबा झुकाया है। हमारे विरोध का ही परिणाम है कि सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को जमीन और घर दिए गए। यह बात अलग है कि यह जमीन और घर ऐसे न थे जिसमें विस्थापित रह सकें। ऐसा दुनिया भर में किसी भी बांध के विस्थापितों को पुनार्वस का लाभ नहीं मिला है,जितना सरदार सरोवर के विस्थापितों को अब तक मिला है। 15,000 हजार परिवारों को जमीन और 26,000 हजार परिवारों को मध्य प्रदेश में ही घर के लिए जमीन मिली है। महाराष्ट्र और गुजरात को मिलाकर 15,000 हजार परिवारों को जमीन मिली है। इसके अलावा मछुआरों की हमारी 37 सहकारी समितियां बन गई हैं। हालांकि अभी उन्हें जलाशय नहीं मिला है। बाहर के ठेकेदारों को लाया गया है ऐसे में तो उनके सामने लड़ना ही पड़ेगा।
प्रश्न: गुजरात सरकार की तरह क्या मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की राज्य सरकारों भी विस्थापितों के प्रति गैरजिम्मेदार व्यवहार अपना रही हैं?
मेधा: जहां तक मध्य प्रदेश सरकार की बात है तो वह तो पूरी तरह से संवेदनहीन ही नहीं, उसके साथ तो पिछले 15 सालों तक संवादहीनता की स्थिति रही रही। पिछली मध्य प्रदेश की सरकार ने 15 सालों तक संवादहीनता बनाए रखी। वहीं, दूसरी ओर महाराष्ट्र में भी राज्य सरकार जिला स्तर से आगे की बात नहीं करती है।
प्रश्न: क्या मध्य प्रदेश सरकार से इस मुद्दे पर कोई बातचीत हुई?
मेधा: आज की सरकारें आम लोगों को बस एक मतदाता मानती है। वर्तमान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुझे कल फोन पर बातचीत के दौरान कहा कि आप तो मुझे पहचानती होंगी मैं पहले केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्री था, लेकिन हमारी अपेक्षा हैं उनसे लेकिन वो तो पूरी नहीं हो रही हैं। यह अपने आप में एक बहुत ही बड़ा मुद्दा है और उन्हें किस स्तर पर यह मुद्दा उठाना चाहिए? अभी देश में न्याय की मंशा और मोर्चा कम बचे रह गए हैं। राज्य सरकार ने इस मुद्दे को अब तक उठाया है लेकिन जब तक वह सशक्तता से नहीं उठाएगी तब तक उसकी सुनावई होने से रही। इस मामले में गुजरात और केंद्र सरकार की हठधर्मिता तो दिखाई दे रही है। यहां तक गुजरात से मध्य प्रदेश में डूब गए जंगलों के लिए 1857 करोड़ रुपए अब तक नहीं मिले हैं, आदि ऐसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जिसे मध्य प्रदेश सरकार को उठाना चाहिए। सबसे बड़ा सवाल है पुनर्वास स्थल कैसे डूब क्षेत्र में आ रहे हैं, जबकि यह कानून के खिलाफ है, इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है।
प्रश्न: क्या सरकार के खिलाफ विरोध करने पर ही उनकी नींद खुलती है?
मेधा: सरदार सरोवर बांध में सब कुछ का आदेश हाथ में होने के बावजूद उसका पालन नहीं हो रहा है। अब सब कुछ सरकार तय करती है। जैसे कि, आज की केंद्र सरकार कहती है कि यदि जरूरी हुआ तो फिर कानून भी बदलेंगे। ऐसे में जनता के पास संघर्ष के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है। हम तो हिंसा पर न उतरने वालों में से हैं। अहिंसक संघर्ष को ही चोटी पर ले जाने का जब समय आता है, तब हम अड़े रहते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
प्रश्न: आपकी सबसे बड़ी मांग क्या है?
मेधा: हमारी सबसे बड़ी मांग यही है कि सरदार सरोवर बांध में पानी 138 मीटर तक नहीं भरा जाना चाहिए। आज जब बांध में पानी 133 मीटर तक पहुंच गया है तो यहां मध्य प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है। यहां हजारों ऐसे परिवार हैं, जिनका पुनर्वास बाकी है। पात्रता के हिसाब से उन्हें जो लाभ मिलने चाहिए थे, उन परिवारों को अब तक नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कानून नीति का पालन नहीं हुआ है। इन सबको पूरा करने के बाद ही सरकार को बांध में पूरा पानी भर सकते हैं। इस साल गुजरात को पानी की किसी भी प्रकार से दिक्कत नहीं है, क्योंकि वहां सभी तालाब, पोखर पानी से लबालब भरे हुए हैं। और पुनर्वास कार्य अकेले मध्य प्रदेश ही नहीं, महाराष्ट्र व गुजरात में भी आगे जाना चाहिए। और यह काम कानूनी प्रक्रियाओं का पूरा पालन करते हुए युद्धस्तर पर होना चाहिए।