नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (एनसीएस) में अवैध खनन को नियंत्रित करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों से रेत खनन संबंधी दिशानिर्देशों को भी लागू करने को कहा है।
कोर्ट ने इसकी निगरानी के साथ अगले तीन महीनों में किए गए कामों पर रिपोर्ट भी मांगी है। यह निर्देश न्यायमूर्ति शिव कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की पीठ ने दिया है।
इस मामले में कोर्ट ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, एसपीसीबी के साथ भिंड, मुरैना, ग्वालियर, आगरा, इटावा, झांसी, धौलपुर और भरतपुर के पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट से अवैध खनन को नियंत्रित करने, उसपर निगरानी रखने और तीन महीनों के भीतर इस मामले में क्या कार्रवाई की गई उसपर रिपोर्ट सबमिट करने को कहा है।
अदालत के मुताबिक राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (एनसीएस) को अवैध रेत खनन से बचाने के लिए यह कदम आवश्यक हैं। कोर्ट का यह भी कहना है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) के सचिव को 31 जनवरी, 2023 को जारी अधिसूचना की स्वीकृति को स्पष्ट करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ स्थिति की निगरानी करने को कहा है, जिसके तहत अभ्यारण्य में 207 हेक्टेयर भूमि को गैर-अधिसूचित किया गया था।
कोर्ट ने वन्यजीवों की पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी खनन या अन्य हानिकारक गतिविधियों को रोकने के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठकें करने की बात भी कही है।
ट्रिब्यूनल ने पाया कि राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के भीतर रेत खनन तेजी से बढ़ा है। कई स्थान, जो पहले इससे अछूते थे, वहां भी अब रेत के लिए लगातार खनन किया जा रहा है। इसकी वजह से कई दुर्लभ जीवों के महत्वपूर्ण आवास नष्ट हो गए हैं। अवैध खनन क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को प्रभावित कर रहा है और इन लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
एनजीटी ने 25 जुलाई, 2023 को दिए आदेश में कहा है कि रिठौरा रेत तट को पूरी तरह से समतल कर दिया गया है। 2019 तक, रिठौरा रेत तट पर कम से कम घड़ियालों के 35 घोंसले हुआ करते थे। हालांकि, अवैध खनन के चलते घोंसला बनाने की जगह अब नष्ट हो चुकी है।
गौरतलब है कि एनजीटी की यह कार्रवाई धौलपुर के पास केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में बने राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (एनसीएस) के करीब हो रहे अवैध खनन के खिलाफ थी, जो जीवों की दुर्लभ प्रजातियों विशेष रूप से घड़ियाल, रूफ्ड कछुओं और नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिनों का आवास है।
क्यों दी गई गंगा में मिलने वाले नाले में अपशिष्ट बहाने की अनुमति, एनजीटी ने यूपीपीसीबी से पूछा सवाल
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें यह जानकारी देनी है कि एक इंडस्ट्री मैसर्स ओबेटी प्राइवेट लिमिटेड को गंगा नदी में मिलने वाले झिरिया नाले में अपशिष्टों को छोड़ने की अनुमति क्यों दी गई है।
साथ ही अदालत ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) से नाले में अपशिष्ट छोड़ने वाली अन्य मृत इकाइयों के बारे में भी अपडेट देने को कहा है। , कोर्ट ने सीवेज प्रबंधन पर विवरण और गोपीगंज नगर पालिका परिषद (एनपीपी) से इसके बारे में समय सीमा का विवरण मांगा है।
पता चला है कि गोपीगंज नगर पालिका परिषद (एनपीपी), झिरिया नाला में औद्योगिक और घरेलू सीवेज छोड़ रही है जो आखिर में गंगा में मिल रहा है। एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) से झरिया नाला में बहने वाले सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के संबंध में स्थिति की समीक्षा करने और नाले को रोकने का निर्देश दिया है ताकि अपशिष्टों को गंगा में न छोड़ा जाए।
बारिश के पानी के दोबारा उपयोग के लिए डीएमआरसी को उचित तरीके की है जरूरत: एनजीटी
24 जुलाई, 2023 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) और संबंधित अधिकारियों से बारिश के पानी को पाइपलाइनों की मदद से सड़कों पर बहाने के बजाय उपयोग करने के लिए उचित तरीका विकसित करने का आदेश दिया है। जो समस्याओं का कारण बन रहा है।
इसके साथ ही कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, दिल्ली नगर निगम, और डीएमआरसी की एक संयुक्त समिति बनाने का भी निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने बारिश के पानी के दोबारा उपयोग के लिए एक मेथड या मॉडल बनाने के लिए तकनीकी अधिकारियों की मदद लेने और उसपर एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इसका उद्देश्य बारिश के पानी का उपयोग वृक्षारोपण और भूजल पुनर्भरण के लिए करना है। कोर्ट के अनुसार इस योजना को डीएमआरसी के सभी खंभों पर लागू किया जाना चाहिए।