यमुना फ्लडप्लेन में लाइटहाउस के निर्माण से जुड़े मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को लेना चाहिए निर्णय: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
यमुना फ्लडप्लेन में लाइटहाउस के निर्माण से जुड़े मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को लेना चाहिए निर्णय: एनजीटी
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का कहना है कि डीडीए द्वारा यमुना फ्लडप्लेन में लाइटहाउस बनाने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि यह निर्णय राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को लेना चाहिए। मामला दिल्ली में ग्रीनवे से सटे यमुना फ्लडप्लेन में लाइटहाउस बनाए जाने से जुड़ा है।

इस मामले में एनजीटी ने 19 मई, 2023 को कहा है कि अगर इसकी अनुमति सभी प्रासंगिक मापदंडों पर विचार करके दी जाती है, तो यमुना बाढ़ के मैदानी क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी उपायों को पुख्ता किया जा सकेगा। गौरतलब है कि एनजीटी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने एनएमसीजी को प्रस्ताव प्राप्त होने के एक महीने के अन्दर निर्णय लेने को कहा है।

डीडीए के मुताबिक इस लाइटहाउस को बाढ़ के मैदान में अतिरिक्त निगरानी और सुरक्षा के लिए लगाया जा रहा है। आवेदक का कहना है कि फ्लडप्लेन जोन में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक है, जब तक कि ऐसी गतिविधि फ्लडप्लेन के संरक्षण या उसकी प्रकृति असाधारण न हो।

एनजीटी ने कहा है कि सैद्धांतिक रूप से प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती, यदि वो उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) द्वारा अनुमोदित है और जब उसकी स्थापना बाढ़ के मैदानी क्षेत्र की सुरक्षा से जुड़ी है।

कोर्ट द्वारा दिए आदेश के अनुसार यह गतिविधि 13 जनवरी, 2015 को एनजीटी और गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण द्वारा 2016 में दिए आदेश के तहत अनुमेय गतिविधि के दायरे में है।

ऐसे में कोर्ट के अनुसार इसके लिए बाढ़ के मैदानी क्षेत्र में इसके स्थान को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना की बारीकियों की पूरी तरह से जांच की आवश्यकता होगी। इसमें इसके संरचनात्मक डिजाइन, पावर बैकअप, बुनियादी सुविधाओं के समर्थन और एकीकृत पर्यावरण प्रबंधन आवश्यकताओं के साथ निर्माण की अवधि आदि पर गौर करना जरूरी है।

एनजीटी ने रुड़की में नियमों को ताक पर रख चल रहे ईंट भट्ठों की दिए जांच के निर्देश

एनजीटी ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रुड़की में दो ईंट भट्ठों की जांच के निर्देश दिए हैं। कोर्ट द्वारा 19 मई 2023 को दिया यह आदेश हरिद्वार, उत्तराखंड में दो ईंट भट्ठों (जय माता ईंट क्षेत्र और गगन ईंट क्षेत्र) के संचालन से जुड़ा है। कोर्ट ने इस मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से नियमों को ध्यान में रखते हुए बहाली की कार्रवाई करने के लिए कहा है।

इसके साथ ही कोर्ट ने वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट की एक स्वतंत्र समिति के गठन का निर्देश भी दिया है। इस समिति को अगले दो महीनों में अपनी रिपोर्ट देनी है। इस रिपोर्ट में यदि इन दो ईंट भट्ठों के आसपास चल रहे किसी अन्य ईंट भट्ठे की जानकारी मिलती है तो उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए।

इस मामले में आवेदक के अनुसार इन दोनों ईंट भट्ठों का संचालन केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 22 फरवरी, 2022 को जारी अधिसूचना में दिए मानदंडों के खिलाफ किया जा रहा है। पता चला है कि यह दोनों ईंट भट्टे नियमों द्वारा निषिद्ध दूरी के भीतर हैं। उदाहरण के लिए, जय माता ईंट भट्ठा एक अन्य मौजूदा ईंट भट्ठे से 228.219 मीटर की दूरी पर स्थित है।

इसी तरह गगन ईंट भट्ठे की सुरेशी देवी पब्लिक स्कूल से दूरी 707.441 मीटर और यह निर्मला देवी इंटर कॉलेज से 780.165 मीटर की दूरी पर है। कोर्ट को जानकारी दी गई है, कि इन ईंट भट्ठों को सहमति पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के बाद क्रमशः 13 जनवरी, 2023 और 30 जनवरी, 2023 को दी गई थी।

ठोस और तरल अपशिष्ट के प्रबंधन के मामले में एनजीटी ने केंद्र से तीन महीनों में मांगी रिपोर्ट

एनजीटी ने केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों को तीन महीनों के अंदर ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में अपनी कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। जब बात ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे की आती है, तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी 1996 से 2014 के बीच पिछले नौ वर्षों से निगरानी कर रहा है।

कोर्ट का कहना है कि स्वच्छ भारत जैसे वैधानिक नियम और नीतियां हैं लेकिन जमीनी स्तर पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं हो रही है। कोर्ट का कहना है कि न्यायालयों और न्यायाधिकरणों द्वारा कानून और निर्देश बनाना, सुशासन का विकल्प नहीं है। जब तक प्रशासन इस विषय को प्राथमिकता नहीं देता है, तब तक इन मुद्दों का समाधान नहीं हो सकता।

इसी तरह, पीने के पानी के स्रोतों में सीवेज को डालना आपराधिक कानून के साथ-साथ जल अधिनियम, 1974 के तहत भी अपराध है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में नदियों (गंगा और यमुना सहित), झीलों, तटीय क्षेत्रों और अन्य जल स्रोतों में पानी की गुणवत्ता इस तरह के प्रदूषण से प्रभावित है।

ऐसे में जहां भी व्यवहार्य हो स्वदेशी तकनीक या ऐसी अन्य तकनीकों का उपयोग करके युद्धस्तर पर इसका समाधान करने की जरूरत है, लेकिन साथ ही पीने के पानी में सीवेज की एक भी बूंद में डालने की अनुमति दी जा सकती। 18 मई 2023 को एनजीटी ने यह भी कहा है जवाबदेही के बिना समय-सीमा में बदलाव किया गया है।

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