नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने प्रयागराज और कौशाम्बी के जिलाधिकारियों को जिले में हो रहे अवैध रेत खनन की जांच के निर्देश दिए हैं। पूरा मामला उत्तर प्रदेश का है। साथ ही कोर्ट ने इस मामले में न्यायाधिकरण द्वारा पहले दिए निर्देशों को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि प्रयागराज और कौशाम्बी में यमुना नदी तल से किए जा रहे अवैध रेत खनन के खिलाफ अतुल सिंह चौहान ने 11 मार्च, 2023 को एनजीटी के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।
जानकारी मिली है कि पहुवा, प्रतापपुर, नेवादिया, अमिलिया, मसियारी, फुलवा, बिसोना, असरावल, मानपुर, भामपुर, मिश्रापुर, नगवर, गदिसपुर, भीखाना, बेबर पालपुर, विद्यापीठ, मझियारी, बसवार, भीलोर, नंदा का पुरवा, सैदपुर व अन्य स्थानों पर 1,000 से ज्यादा नावों और भारी मशीनों की मदद से खनन किया जा रहा था। इतना ही नहीं वहां से हर दिन 400 से 500 ओवरलोड ट्रक दिन-रात रेत ढो रहे हैं जबकि स्वीकृति केवल 125 ट्रकों की ही मिली है।
इस मामले में एनजीटी के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और सुधीर अग्रवाल की पीठ ने 6 अप्रैल 2023 को कहा है कि यह मामला पहले भी अदालत के समक्ष (ओ.ए. संख्या 670/2018, अतुल सिंह चौहान बनाम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं अन्य) आया था।
इस मामले पर ट्रिब्यूनल ने 18 मार्च, 2021 को आदेश दिया था, जिसके तहत ओवरसाइट कमेटी की सिफारिशों को लागु किया गया था। वहीं निगरानी समिति का कहना है कि खासकर प्रयागराज के जिलों में 2020-21 के दौरान अवैध खनन को लेकर कई शिकायतें मिली हैं।
इस बाबत जारी रिपोर्ट में कहा है कि, "पर्यावरण संबंधी नियमों को ताक पर रख, खनन योजना के बिना खनन किया जा रहा है, जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा है।" निरीक्षण समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य पर जोर दिया है कि राज्य सरकार को अवैध खनन पर जीरो टॉलरेंस होना चाहिए। साथ ही खनन निदेशालय और जिला प्रशासन को ऐसे सभी मामलों की तुरंत जांच करनी चाहिए। वहीं इस वर्तमान आवेदन में अतुल सिंह चौहान ने कहा है कि वहां न्यायालय के आदेशों के बावजूद उल्लंघन जारी है।
लद्दाख में जल प्रदूषण से निपटने के लिए एनजीटी ने जारी किए निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने लद्दाख में सभी कमर्शियल यूनिट्स को अपने खुद के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने दूषित जल को साफ करने के बाद उसका उपयोग बागवानी जैसे उद्देश्यों के लिए करने को कहा है। गौरतलब है कि कोर्ट ने लद्दाख में जल प्रदूषण को लेकर मीडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर स्वतः कार्रवाई शुरू की थी।
लेह में बचे 48,370 टन कचरे का जल्द से जल्द किया जाए निपटान: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने लद्दाख में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी योजना, क्षमता निर्माण और निगरानी के लिए केंद्रीय एकल खिड़की प्रणाली स्थापित करने का निर्देश दिया है। इस प्रणाली की अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी करेंगे। साथ ही इसमें संबंधित विभागों जैसे शहरी-ग्रामीण विकास, पर्यावरण और वन, कृषि, जल संसाधन, मत्स्य और उद्योग के प्रतिनिधित्व शामिल होंगे।
ट्रिब्यूनल ने आशा व्यक्त की है कि यह नया दृष्टिकोण और कड़ी निगरानी की मदद से, ठोस और तरल अपशिष्ट के उत्पादन और निपटान के बीच के अंतराल को जल्द से जल्द भरने में मदद करेगा।
अदालत के ध्यान में लाया गया है कि जहां पर्याप्त क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किए गए हैं, वहां भी क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया है। साथ ही जल गुणवत्ता मानकों को हमेशा पूरा नहीं किया जा रहा। अदालत चाहती है कि एक केंद्रीकृत तंत्र की मदद से इस मामले पर लगातार निगरानी की जाए। ऐसे में इस तंत्र को एक महीने के भीतर स्थापित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि लेह में जिस 20.26 एकड़ भूमि पर 10,544 टन कचरे का निपटान किया गया है उसमें से 7 एकड़ भूमि का उपयोग किया जा सकता है। 6 अप्रैल, 2023 को एनजीटी ने अपने इस आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा है कि कारगिल में वर्षों से जमा कचरे की डंप साइट के साथ-साथ लेह में 48,370 टन बचे कचरे को हटाने के लिए योजनाओं पर तेजी से काम किया जाना चाहिए।