विकास की अवधारणा पर सवाल उठाना विस्थापितों का अधिकार: मेधा पाटकर

नर्मदा बचाओ आंदोलन के 39 वर्ष पूरा होने के अवसर पर तीन राज्यों के विस्थापितों ने रैली कर सरदार सरोवर बांध के जलस्तर को रोकने के लिए सत्याग्रह का संकल्प लिया
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा बचाओ आंदोलन के 39 साल पूरे होने के अवसर पर सरदार सरोवर बांध से विस्थापित लोगों ने एक रैली का आयोजन किया गया
फोटो: एनबीए
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा बचाओ आंदोलन के 39 साल पूरे होने के अवसर पर सरदार सरोवर बांध से विस्थापित लोगों ने एक रैली का आयोजन किया गया फोटो: एनबीए
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नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा है कि पिछले 39 वर्षों के नर्मदा संघर्ष और रचनात्मक कार्य के बाद भी विस्थापितों, वंचितों और शोषितों के अधिकारों की लड़ाई अब 40वें वर्ष में प्रवेश कर रही है और यह भविष्य में भी जारी रहेगी।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विकास की अवधारणा पर सवाल उठाना विस्थापितों का अधिकार है और उन पर विकास विरोधी होने का आरोप लगाना गलत है, क्योंकि उनका दृष्टिकोण सत्य पर आधारित है।

मेधा पाटकर मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में आयोजित एक रैली को संबोधित कर रहीं थीं। यह रैली में नर्मदा बचाओ आंदोलन के संघर्ष के 39 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित की गई थी। रैली में नर्मदा घाटी के तीन राज्यों के हजारों विस्थापित लोगों ने राष्ट्रव्यापी समर्थन के साथ सरदार सरोवर बांध के जलस्तर को रोकने के लिए सत्याग्रह करने का संकल्प लिया है।

साथ ही ऊपरी नर्मदा घाटी क्षेत्र में बांधों की समीक्षा करने और चुटका परमाणु ऊर्जा परियोजना को रद्द करने की घोषणा की गई।

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मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा बचाओ आंदोलन के 39 साल पूरे होने के अवसर पर सरदार सरोवर बांध से विस्थापित लोगों ने एक रैली का आयोजन किया गया
फोटो: एनबीए

रैली को संबोधित करते हुए मेधा पाटकर ने यह घोषणा भी दोहराई कि “पुनर्वास के बिना जलमग्नता अस्वीकार्य है” और चेतावनी दी कि सरदार सरोवर का जल स्तर इस सितंबर, 2024 में बढ़ने नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने जल सत्याग्रह तक की धमकी भी दोहराई। उन्होंने यह भी कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन विनाश, भ्रष्टाचार और उत्पीड़न को दर्शाता है।

उन्होंने दोहराया कि नर्मदा का पानी शुद्ध नहीं रह गया है, बल्कि एसटीपी उपचार के बिना छोड़े जा रहे शहरी कचरे, औद्योगिक अपशिष्ट और अवैध रेत खनन के कारण प्रदूषित हो चुका है।

उन्होंने सरदार सरोवर पर क्रूज के संचालन की घोर निंदा की और साथ ही कहा कि इससे नदी और अधिक प्रदूषण होने के साथ ही पीने का पानी बर्बाद हो रहा है और इसे यदि रोका नहीं गया तो लोग मौत के कगार पर पहुंच जाएंगे।

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मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा बचाओ आंदोलन के 39 साल पूरे होने के अवसर पर सरदार सरोवर बांध से विस्थापित लोगों ने एक रैली का आयोजन किया गया
फोटो: एनबीए

यह रैली एक सितंबर को मध्य प्रदेश के बड़वानी, धार, खरगोन और अलीराजपुर जिलों से सरदार सरोवर बांध के कारण विस्थापित हुए हजारों लोग, महाराष्ट्र और गुजरात के सैकड़ों विस्थापित लोग बड़वानी में एकत्र हुए और एक विशाल रैली में भाग लिया। रैली को ओडिशा के पर्यावरणविद् प्रफुल्ल सामंतरा, बंगाल के प्रदीप चटर्जी, राजस्थान के निखिल डे, जलवायु विशेषज्ञ सौम्या दत्ता और अन्य कार्यकर्ताओं ने भी संबोधित किया।

रैली को संबोधित करते हुए ओडिशा के पर्यावरणविद् प्रफुल्ल सामंतरा ने पिछले साल की तरह एक और अवैध जलमग्नता के खिलाफ सरकार को चेतावनी दी और और कहा कि सरकार इस विनाश को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि सरकार बांध के जल स्तर को बढ़ने देती है तो हम टकराव के लिए तैयार हैं। इस अवसर पर जलवायु विशेषज्ञ सौम्या दत्ता ने चेतावनी दी कि पर्यावरण के दोहन के कारण प्रकृति पर निर्भर समुदायों के अधिकार खत्म हो गए हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन और बाढ़, बांध टूटने और भूस्खलन जैसी आपदाएं तेजी से बढ़ रही है।

रैली को संबोधित करते हुए सूचना के अधिकार, मनरेगा, स्वास्थ्य सेवा और गिग वर्कर्स के अधिकारों पर कानून बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले राजस्थान के सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे और शंकर भाई ने इस बात पर जोर दिया कि 39 वर्षों से नर्मदा आंदोलन की उपलब्धियां न केवल संघर्षों से बल्कि सरकार के साथ संवाद से भी हासिल हुई हैं। उन्होंने सरकार की जवाबदेही पर एक राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कानून की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

सरदार सरोवर बांध से विस्थापित नूरजी वसावे और लतिका राजपूत के नेतृत्व में महाराष्ट्र के सैकड़ों आदिवासियों ने इस अवसर पर सरकार की उदासीनता पर सवाल उठाया। उन्होंने पेसा अधिनियम के कार्यान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें बताया गया कि कैसे जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के अधिकारों की अवहेलना विनाशकारी विकास की ओर ले जाती है। महाराष्ट्र के चेतन साल्वे ने घोषणा की कि वे किसानों के अधिकारों, फसलों के उचित मूल्य और क्षेत्र में जीवन शालाओं के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।

रैली को तीन राज्यों से आए हजारों विस्थापितों, पर्यावरणविद् कार्यकर्ताओं, नीति निर्माता, कानूनी विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी बात रखी। सरदार सरोवर बांध में डूबे समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले कैलाश यादव और कमला यादव ने भी रैली को संबोधित किया। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र से श्यामा मछुआरा, सुशीला नाथ, मुकेश भरगोरिया, राहुल यादव, नूरजी वसावे और शैलेश तड़वी ने भी रैली में अपनी बात रखी।  सरदार सरोवर बांध से विस्थापित होने वाले तीनों राज्यों के समुदायों के सामने आने वाले समय और कई बड़ी चुनौतियां आने वाली हैं। इसलिए रैली को संबोधित करने वाले अधिकांश वक्ताओं की मांग थी ऐसे हालात में हमारी एकजुटता बहुत जरूरी है और अब तक हुए हर नुकसान का मुआवजा पीड़ित समुदाओं को मिलना चाहिए।

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