बांधों के निर्माण ने सतलुज को बनाया एक छोटी नदी की धारा : जस्टिस संजय करोल

जस्टिस करोल ने यह जोर देते हुए कहा कि बढ़ते हुए तापमान और मानवीय गतिविधियों के कारण नदियों की कई धाराएं सूख रही हैं।
सतलुज नदी
सतलुज नदी
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उत्तर भारत में सदानीरा नदी के रूप में पहचान रखने वाली सतलुज नदी की दिनों-दिन खराब होती स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल ने कहा कि "सतलुज पर बनाए जा रहे बांधों के कारण भारत की एकमात्र ट्रांस-हिमालयी नदी एक छोटी सी नदी में तब्दील हो गई है, जिससे संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिकी श्रृंखला बदल रही है।"

जस्टिस करोल की यह टिप्पणी 12 जून, 2024 को जतिंदर चीमा की एक किताब "क्लाइमेट चेंज : द पॉलिसी, लॉ एंड प्रैक्टिस" के मौके पर आई। उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन बहुत ही बुरी तरह से देश के कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रहा है।

जस्टिस करोल ने यह जोर देते हुए कहा कि बढ़ते हुए तापमान और मानवीय गतिविधियों के कारण नदियों की कई धाराएं सूख रही हैं।

उन्होंने कहा कि विभिन्न सरकारों ने 30,000 करोड़ रुपए गंगा की सफाई पर खर्च किए हैं। हम मौजूदा हालात जानते हैं, हम सभी ने देखा है। इस मुद्दे पर बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। दुर्भाग्य से गंगा की प्रसिद्ध डॉल्फिन अब कहीं नहीं दिखाई दे रही हैं।

जस्टिस करोल ने कहा कि खेती को भी जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान हो रहा है। खासतौर से बीते कुछ वर्षों में जलवायु स्थिरता में गिरावट हुई है, जिसने इस क्षेत्र को अस्थिर किया है। करीब 58 फीसदी भारतीय आबादी की आजीविका कृषि और उससे जुडे क्षेत्र पर निर्भर करती है। जबकि अन्य क्षेत्रों में काफी वृद्धि हुई है लेकिन कृषि क्षेत्र ने अपनी प्रधानता बरकरार रखी है।

उन्होंने कहा, "हालांकि भारत ने 1970 के दशक में हरित क्रांति के साथ आत्मनिर्भरता की उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की और अब अपनी पूरी आबादी के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न का उत्पादन करता है, लेकिन भारत में खेती अनेक सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों में उलझी हुई है।"

न्यायमूर्ति करोल ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के कारण भारत की कृषि उपज में कमी आई है। खेती की स्थिति और कृषि उपज में गिरावट के लिए जिम्मेदार अन्य कारकों में भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग (हमने देखा है कि पंजाब में क्या हो रहा है) जैसे असंवहनीय तरीकों को अपनाना, अत्यधिक सिंचाई और अत्यधिक भूजल दोहन शामिल हैं।"

जस्टिस करोल ने कृषि पर जलवायु प्रभाव का उदाहरण देते हुए कहा कि लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक तापमान पहुंच गया है, जिसके चलते बिहार में प्रसिद्ध "पान"की खेती पर काफी असर पड़ा है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में कृषि क्षेत्र का स्वास्थ्य देश की नदियों से बहुत निकटता से जुड़ा हुआ है। हालांकि, मानसून के पैटर्न में बदलाव के कारण, नदियां और वनस्पतियों, जीवों और समुदायों का विशाल नेटवर्क प्रभावित हुआ है।

न्यायमूर्ति करोल ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन को कानून की एक स्वतंत्र शाखा के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, "जो पर्यावरण कानून से अलग हो।"

उन्होंने कहा, "यह समय की मांग है कि सभी को पर्यावरण कानूनों, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और आधुनिक प्रथाओं के बारे में जागरूक किया जाए, जिन्हें अपनाने की आवश्यकता है।"

इसी कार्यक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक गंभीर अस्तित्वगत खतरा है और समस्या का व्यापक समाधान खोजने के लिए नीति आयोग की तरह भारत में एक स्थायी आयोग की स्थापना का आह्वान किया।

सर्वोच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए "समय-समय पर मौजूदा कानूनों के दायरे से आगे जाकर काम किया है" और उम्मीद जताई कि भारतीय विधायिका वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए आगे आएगी।

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