दावा: पर्यावरण नियमों के अनुरूप हैं उत्तराखंड में एनएमसीजी द्वारा वित्त पोषित सभी एसटीपी

एनएमसीजी ने राज्य में 54 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए वित्त प्रदान किया गया है। इनकी कुल क्षमता 21.98 करोड़ लीटर प्रतिदिन है
दावा: पर्यावरण नियमों के अनुरूप हैं उत्तराखंड में एनएमसीजी द्वारा वित्त पोषित सभी एसटीपी
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उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा वित्त पोषित सभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर्यावरण संबंधी मानकों के अनुरूप हैं। एनएमसीजी ने राज्य में 54 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए वित्त प्रदान किया गया है। इनकी कुल क्षमता 21.98 करोड़ लीटर प्रतिदिन है। जानकारी दी गई है कि यह सभी संयंत्र मानदंडों के अनुरूप हैं।

इस बारे में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने 18 अप्रैल, 2024 को प्रस्तुत रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी है कि इनमें से 34 संयंत्र तैयार हो चुके हैं। इनकी कुल क्षमता 14.04 करोड़ लीटर प्रतिदिन की है। वहीं शेष संयंत्र पूरा होने के विभिन्न चरणों में हैं।

रिपोर्ट के अनुसार सीवेज उपचार संयंत्रों के लिए नए प्रस्तावों की समीक्षा करते समय या मौजूदा को अपग्रेड करते समय, एनएमसीजी प्रत्येक प्रस्ताव पर सावधानीपूर्वक विचार करता है। इस दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा अनिवार्य पर्यावरणीय मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित हो सके इसपर भी ध्यान रखा जाता है।

यह गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एनएमसीजी को विशेष रूप से पहाड़ी शहरों में नदियों और धाराओं में उपचारित सीवेज के होते निर्वहन या दी गई अनुमति की जांच करने का निर्देश दिया था। इसका मकसद जल अधिनियम, 1974 को ध्यान में रखते हुए इन नदियों की शुद्धता और स्वास्थ्य को बनाए रखना था। यह निर्देश नौ फरवरी 2024 को जारी किया गया था।

अदालत ने एनएमसीजी से कहा है कि उन्हें अनुमोदित सीवेज उपचार संयंत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। एनएमसीजी द्वारा वित्त प्रदान करते समय सीवेज उपचार सुविधाओं और उनके निर्वहन मानकों के पालन पर सावधानी पूर्वक विचार किया जाना चाहिए। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने इस बारे में भी स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या खासकर पहाड़ी शहरों में सेप्टिक टैंक और सोख पिट का उपयोग करना ठीक है।

पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन कर रही है दक्षिण गारो हिल्स में पत्थर खदान

मेसर्स अल्फा डी मराक की पत्थर खदान दक्षिण गारो हिल्स के चोकपोट के बुडुग्रे क्षेत्र में एक खड़ी पहाड़ी पर स्थित है, जो घनी वनस्पतियों से घिरी हुई है। दक्षिण गारो हिल्स के उपायुक्त ने अपने हलफनामे में पुष्टि की है कि यह खदान मुख्य सड़क से करीब 150 मीटर और निकटतम बस्ती से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है।

दो फरवरी, 2024 को एनजीटी द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने इस खदान क्षेत्र निरीक्षण किया था।

यह भी जानकारी मिली है कि दारेंग, इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण नदी है, जोकि इस खदान से महज 100 मीटर की दूरी पर मौजूद है। इस नदी की आवाज खदान स्थल से स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है। स्थानीय निवासी पीने, सिंचाई, कपड़े धोने और नहाने के लिए इस नदी पर निर्भर हैं। खदान के आसपास, विशेषकर ढलान पर, काटे हुए पेड़ अभी भी जमीन पर पड़े हैं, और धीरे-धीरे सड़ रहे हैं।

इन खनन गतिविधियों के चलते चट्टान और मिट्टी का अत्यधिक बोझ जमा हो गया है, जिससे दारेंग नदी का प्रवाह खतरे में पड़ गया है। इससे विशेषकर बरसात के दौरान गाद जमा होने और जल प्रदूषण का खतरा रहता है। इसके अतिरिक्त, खनन के लिए जिस सड़क पर वाहनों का आवागमन हो रहा है उसकी स्थिरता को लेकर संदेह है। इसके सड़क के निर्माण के लिए उपयोग की गई मिट्टी ठीक से जमा नहीं हुई है, ऐसे में इसके ढहने का खतरा बना हुआ है।

ऐसे में समिति ने सिफारिश की है कि संबंधित विभागों द्वारा खनन गतिविधि के कारण पेड़ों, वनस्पतियों और जीवों को होने वाले नुकसान के साथ-साथ मिट्टी के क्षरण का भी आकलन किया जाना चाहिए। समिति का सुझाव है कि भूस्खलन और अपवाह को रोकने के लिए, विशेष रूप से बरसात के मौसम में सुरक्षा उपाय जैसे रिटेनिंग दीवारें, जल निकासी व्यवस्था और निपटान टैंक बनाना महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में खनन के बाद क्षेत्र के पुनः उपयोग और बहाली की योजना प्रस्तुत करने की भी सिफारिश की गई है।

हौज खास में तीन रेस्तरां और पबों को बंद करने का दिया गया निर्देश: डीपीसीसी

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने छह अप्रैल, 2024 को हौज खास के तीन रेस्तरां/बार/पब या कैफे को बंद करने का आदेश दिया है। इन्हें जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 का उल्लंघन करते हुए पाया गया था।

इस बारे में डीपीसीसी ने 16 अप्रैल, 2024 को अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि निरीक्षण के दौरान ये इकाइयां उचित प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियों के बिना काम कर रही थीं। साथ ही इनके पास संचालन की सहमति (सीटीओ) भी नहीं थी।

सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ने ध्वनि अधिनियम, 2000 का उल्लंघन करने के लिए दस इकाइयों में से प्रत्येक पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। हालांकि, इनमें से केवल सात इकाइयों ने पर्यावरणीय मुआवजे का भुगतान किया है। इसके अतिरिक्त, अदालत को जानकारी दी गई है कि तीन इकाइयों की रसीदों में भुगतान का लेनदेन मेल नहीं खा रहा था।

गौरतलब है कि लाउडस्पीकर और अन्य ध्वनि उपकरणों का उपयोग करके खुली छतों पर होने वाले लाइव संगीत कार्यक्रमों के बारे में एनजीटी में शिकायत दर्ज की गई थी। 

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