लुधियाना के बुड्ढा नाले से लिए गए पानी के नमूनों में विभिन्न प्रदूषकों का उच्च स्तर पाया गया है, जो सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) के मानकों से अधिक है। यह जानकारी पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट में दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पानी में कोलीफॉर्म, केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) और बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर बेहद ज्यादा है, जिस वजह से पानी सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है।
इसके अतिरिक्त, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सभी कॉमन एन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) अपने उपचारित अपशिष्ट को बुड्ढा नाले में छोड़ रहे हैं, जो सतलुज नदी में मिल जाता है। गौरतलब है कि डाउन टू अर्थ ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि बुड्ढा नाले का पानी, रिसाव के माध्यम से के भूजल को भी प्रदूषित कर रहा है।
डीटीई में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने सतलुज की जल गुणवत्ता (बुड्ढा नाला से मिलने से पहले) को क्लास सी-पेयजल स्रोत के रूप में वर्गीकृत किया है, इसे पारंपरिक उपचार के बाद कीटाणुशोधन किया जाता है। लेकिन दोनों जलधाराओं के मिलने के बाद, यह ग्रेड गिरकर ई श्रेणी तक पहुंच जाता है।
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी साझा करते हुए कहा है कि लुधियाना में, लगभग 300 रंगाई इकाइयां चल रही हैं, जिनमें से करीब 265 बुड्ढा नाले के जलग्रहण क्षेत्र में आती हैं। बुड्ढा नाला कूम कलां गांव से शुरू होता है और सतलज नदी के समानांतर दक्षिण में बहता है। यह नाला आगे जाकर लुधियाना के वलीपुर कलां गांव में सतलज नदी में मिल जाता है।
इन रंगाई उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के उपचार के लिए, विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) द्वारा लुधियाना में 105 एमएलडी की संयुक्त क्षमता वाले तीन कॉमन एन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) स्थापित किए गए हैं।
रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि इन 211 रंगाई इकाइयों के अलावा, करीब 54 रंगाई इकाइयां ऐसी हैं जो भौगोलिक बाधाओं और उद्योगों के आकार के कारण सीईटीपी से नहीं जुड़ पाई हैं। इनमें से 12 बड़े पैमाने की इकाइयां हैं, वहीं विभिन्न स्थानों पर स्थित 16 इकाइयां लघु पैमाने की हैं। इनमें से 26 इकाइयां लुधियाना के औद्योगिक क्षेत्र-ए में हैं।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करते हुए, इन सभी 54 रंगाई इकाइयों के पास अपने स्वयं के अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र हैं और उनसे निकलने वाले उपचारित अपशिष्ट जल को सार्वजनिक सीवरों में छोड़ा जा रहा है।
क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने चार जनवरी, 2024 को पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) को बुड्ढा नाले के किनारे विभिन्न बिंदुओं से पानी के नमूने एकत्र कर उनका विश्लेषण करने का निर्देश दिया था।
इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट उपचार मानकों का पालन किया जा रहा है या नहीं। ट्रिब्यूनल ने पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस बारे में एक रिपोर्ट भी सौंपने को कहा था।
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इसके अतिरिक्त, एनजीटी ने पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और लुधियाना नगर निगम दोनों को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था। इस रिपोर्ट में नियमों का पालन न करने वाली इकाइयों के खिलाफ की गई कार्रवाई, बंद करने की वर्तमान स्थिति से जुड़ी जानकारी देने को कहा गया था।
साथ ही रिपोर्ट में इस बात का भी जानकारी देने को कहा गया था कि जो रंगाई उद्योग सीईटीपी से नहीं जुड़े हैं क्या वो नियमों का पालन कर रहें है और अनुपालन की स्थिति क्या है। उनसे यह भी जानकारी देने को कहा गया था कि क्या यह रंगाई उद्योग भूजल का दोहन और उपयोग कर रहे हैं, यह कितना अपशिष्ट जल पैदा करते हैं।
एनजीटी ने इस बाबत भी जानकारी जानकारी मांगी थी कि रंगाई उद्योगों से कितना दूषित पानी सीईटीपी में जा रहा है, साथ ही यह इकाइयां कितना अपशिष्ट पैदा कर सकती हैं और उसमें से कितना सीईटीपी में जा रहा है।
इससे पहले जर्नल एनवायरमेंट साइंस में 2013 में छपे एक शोध में कहा गया था कि लुधियाना में नाले के आसपास के छह किमी के क्षेत्र में एकत्र किए गए कई नमूने पीने के लिए उपयुक्त नहीं थे।
2010 में, केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी नाले को गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र घोषित किया था। चूंकि अधिकांश घौंसपुर निवासी सरकारी जलापूर्ति या अपने घर में बोरवेल से आपूर्ति किए गए पानी का उपयोग करते हैं, इसलिए यह संभव है कि वे दूषित पानी का सेवन कर रहे हों।