कंपनी की लापरवाही से हुआ था विशाखापट्टनम गैस लीक हादसा: एनजीटी कमिटी रिपोर्ट

एनजीटी द्वारा गठित संयुक्त जांच कमिटी ने विशाखापट्टनम गैस लीक हादसे के लिए कंपनी को जिम्मेवार माना है
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एनजीटी द्वारा गठित संयुक्त जांच कमिटी ने 28 मई, 2020 को गैस रिसाव के मामले पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है| इस रिपोर्ट में एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट में हुए हादसे के लिए कंपनी को जिम्मेवार माना है| रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर इंडिया और उसके प्रमुख कोरियाई उद्योग एलजी केम के अनुभवहीनता को इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह माना है| यह कंपनी काम के बंद होने के बावजूद, कई हफ्तों तक स्टाइरीन से भरे टैंक की निगरानी और रखरखाव कर रही थी| जिसे उसने ठीक से नहीं किया| साथ ही जिस टैंक में यह गैस भरी थी वो भी काफी पुराने डिज़ाइन का टैंक था| जिसके कारण दुर्घटना ने इतना गंभीर रूप ले लिया था| 

गौरतलब है कि 7 मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट से स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ था जिसके चलते 12 लोगों कि दुखद मौत हो गयी थी| जबकि इससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे। इस मामले की जांच के लिए समिति ने आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के साथ मिलकर गैस रिसाव के घटनास्थल का दौरा किया था और इंडस्ट्री के अधिकारियों के साथ बातचीत की थी। इसके बाद एनजीटी समिति ने 12 मई, 2020 को  एनजीओ, प्रभावित ग्रामीणों और उद्योगपतियों के साथ एक सार्वजनिक परामर्श बैठक आयोजित की थी। इस मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी शेषनारायण रेड्डी ने समिति के अन्य सदस्यों (विशाखापट्टनम में आंध्र यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर वी रामा चंद्र मूर्ति, आंध्र यूनिवर्सिटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पुलीपाटी किंग, नीरी के प्रमुख, सीपीसीबी के सदस्य सचिव, सीएसआईआर- इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के निदेशक) और एपीपीसीबी के अधिकारियों के साथ घटनास्थल का दौरा किया था और 17 मई को एक अंतरिम रिपोर्ट तैयार करके एनजीटी को सौंप दी थी| उसके बाद इस विषय पर समिति ने डिटेल रिपोर्ट 28 मई को कोर्ट के सामने प्रस्तुत कर दी है| इससे पहले एनजीटी की प्रधान पीठ ने जन व पर्यावरण की क्षति को देखते हुए एलजी पॉलिमर्स को जिलाधिकारी के पास 50 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि जमा कराने का भी आदेश दिया था।

कब और कैसे हुआ था हादसा

24 मार्च, 2020 को लॉकडाउन के चलते इस यूनिट में कामकाज बंद कर दिया गया था| जिसके 7 मई, 2020 को फिर से शुरू करने की तयारी की जा रही थी। पर 7 मई, 2020 की सुबह लगभग 3.00 बजे, प्लांट के टैंक में स्टोर की गई करीब 1830 टन स्टाइरीन गैस का रिसाव शुरू हो गया था। यह गैस वाष्प के रूप में टैंक से निकलकर ऊपर पश्चिम की ओर जिस तरफ हवा बह रही थी उसी दिशा में फैक्ट्री की सीमा से निकलकर आसपास के पांच क्षेत्रों में फैल गई थी| इसने आसपास के इलाकों जैसे वेंकटपुरम, वेंकटाद्रि नगर, नंदामुरी नगर, पीडिमाम्बा कॉलोनी और बीसी एवं एससी कॉलोनी को अपनी चपेट में ले लिया था। समिति को आस-पास के क्षतिग्रस्त पेड़ों की जांच से पता चला है कि यह गैस जमीन से लगभग 20 फीट की ऊंचाई तक फैल गई थी|

किस कारण हुआ गैस का रिसाव 

कोविड-19 के चलते हुए लॉकडाउन के कारण 24 मार्च 2020 को इस यूनिट को बंद कर दिया गया था| उस समय यूनिट के चार टेंकों में क्रमशः 1830 टन, 2725.9 टन, 242.6 टन, 242.5 टन स्टाइरीन उपलब्ध थी| लॉकडाउन की अवधि में 15 व्यक्ति प्रति शिफ्ट के आधार पर 45 कर्मियों को इस यूनिट में दैनिक रखरखाव गतिविधियों के लिए अनुमति दी गई थी।  प्लांट में एक्सपेंडेबल प्लास्टिक के उत्पादन में स्टाइरीन मोनोमर का इस्तेमाल हो रहा था। 17 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान वाली जगह पर इस रसायन का भंडारण किया जाना चाहिए। कोविड महामारी के चलते प्लांट आंशिक तौर पर बंद था, हालांकि पूर्व निर्धारित शिड्यूल के अनुसार रखरखाव चल रहा था। जिस तापमान में रसायन को रखना चाहिए था, उस तापमान में नहीं रखे जाने के कारण समस्या शुरू हुई।

7 मई 2020 की सुबह, टैंक एम6 जिसमें 1830 टन स्टाइरीन मौजूद थी उसमें रिसाव शुरू हो गया था| रिपोर्ट से पता चल है कि जिस टैंक में से गैस रिसाव हुआ था वो काफी पुराना था| इसके साथ ही इस टैंक की ऊपरी और मध्य सतह पर तापमान सेंसर भी नहीं थे, जिससे तापमान मापा जा सके| केवल टैंक के तल पर जहां से ठंडा रखने का प्रबंध किया गया था वहीँ तापमान को मापने का इंतजाम किया गया था| 

क्या दुर्घटना के लिए कंपनी थी जिम्मेवार

लॉकडाउन के कारण इस टैंक को इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था| किसी प्रकार का अवरोध ने होने पर स्टाइलर पोलीमेरिसेस सामान्य तापमान पर भी पॉलीस्टीरिन में बदल जाता है| यह एक्सोथर्मिक प्रतिक्रिया बहुत धीमी गति से होती है। हालांकि प्रतिक्रिया की दर धीमी होने पर भी यह संचालन की बहुत बड़ी खामी है| क्योंकि इससे टैंक का तापमान बढ़ सकता है और वो रूकावट का कारण बन सकता है| रिपोर्ट के अनुसार तापमान के बढ़ने के साथ ही यह गैस वाष्प में बदल गई और स्टोरेज टैंक पर दबाव बढ़ता गया| जिसके कारण सुरक्षा वाल्व फेल हो गया और उसने स्टाइरीन युक्त वाष्प को वातावरण में फैलने दिया। तापमान और दबाव की जांच न करना इस प्लांट की एक बड़ी खामी थी जिसके चलते अगर सेफ्टी वाल्व पूरी तरह फेल हो जाता और गैस में रूकावट आ जाती तो  उससे पूरा टैंक फट सकता था| इस स्थिति में कही ज्यादा तबाही होती|

टैंक जिससे रिसाव हुआ उसमें वाष्प के स्थानिक तापमान को मापने का कोई प्रावधान नहीं था| जिसकी वजह से तापमान जो वृद्धि हुई उसपर उद्योग का ध्यान नहीं गया| यह उद्योग की एक बड़ी लापरवाही थी। विश्लेषण से पता चला है कि इस रिसाव की मूल समस्या 20 अप्रैल को शुरू हुई थी| जब टैंक एम6 में यह गैस लॉकडाउन के शुरू होने से पहले भी 25 मार्च से ही पूरी तरह से भरा हुआ था और इसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था| यह ज्ञात है कि स्टाइरीन मोनोमर का स्वभाव ऐसा होता है, जो अपने आप ही सामान्य मौसम में भी तीव्र प्रतिक्रिया करने लगता है| 

ऐसे में इस दुर्घटना को रोका जा सकता था यदि इस एम6 टैंक को ठंडा करने वाला सर्विसिंग चिलर्स चल रहा होता| जिसे शाम 5 बजे से पहले बंद कर दिया गया था| क्योंकि रूटीन साइट प्रैक्टिस के अनुसार रात के तापमान में ठंडा करने की जरुरत बहुत कम या न के बराबर पड़ती है| लेकिन इसके साथ ही इस यूनिट में वाष्प को रोकने के लिए स्वचालित स्प्रिंकलर की व्यवस्था भी नहीं थी| 

इस दुर्घटना का एक अन्य कारण टीबीसी था, जोकि पोलीमराइजेशन रिएक्शन को रोकता है| पर यदि टैंक में तरल स्टाइरीन का तापमान 52 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला जाता है तो यह भी काम नहीं करता है| ऐसे में इसे रोकने के लिए एक छोटा सा स्टापर केमिकल जोड़ा जाना चाहिए, लेकिन एलजी पॉलिमर ने इस संभावना पर विचार नहीं किया था। 

इसके अलावा 1 अप्रैल से एम6 टैंक पर टीबीसी नहीं लगाया गया था| साइट पर इसका कोई स्टॉक भी नहीं था| साथ ही कंटेंट की जांच से पता चला कि टीबीसी का स्तर स्पष्ट रूप से सीमा में था। रिपोर्ट के अनुसार टीबीसी स्तर सुरक्षा के दृष्टिकोण से सही नहीं था| साथ ही रिपोर्ट के अनुसार यदि टैंक में सामग्री को नियंत्रित और ठंडा रखने पर ध्यान दिया जाता तो पोलीमराइजेशन को स्थिर होने के लिए काफी समय मिल जाता| जिससे यह दुर्घटना नहीं होती|

सीएसई ने भी अपनी रिपोर्ट में कंपनी को माना था जिम्मेवार 

सीएसई ने भी अपनी रिपोर्ट में इस दुर्घटना के लिए कंपनी की लापरवाही को जिम्मेवार माना था| जिसके अनुसार प्लांट खोलने की हड़बड़ी में मेंटेनेंस के नियमों की अनदेखी की गयी थी| अब एनजीटी कमिटी रिपोर्ट से भी यह बात साफ हो गयी है कि जिस तरह से प्लांट में इस हानिकारक गैस को रखा गया था वो सही नहीं था साथ ही उसके रखरखाव पर भी उचित ध्यान नहीं दिया गया था|  

ऐसे में एनजीटी रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर इंडिया और उसके प्रमुख कोरियाई उद्योग एलजी केम के अनुभवहीनता को इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह माना है| यह कंपनी काम के बंद होने के बावजूद, कई हफ्तों तक स्टाइरीन से भरे टैंक की निगरानी और रखरखाव कर रही थी| जिसे उसने ठीक से नहीं किया| 

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