2023 से अब तक लागू नहीं हुआ किसानों को 7.92 करोड़ रुपए भुगतान करने का आदेश

मामला पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले का है, जहां मेजिया थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषण के कारण किसानों की जमीनें क्षतिग्रस्त हो गई थी
प्रतीकात्मक तस्वीर: मोयना/सीएसई
प्रतीकात्मक तस्वीर: मोयना/सीएसई
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) द्वारा किसानों को 7.92 करोड़ रुपए का मुआवजा न दिए जाने के मुद्दे पर तीन जुलाई, 2024 को सुनवाई की। मामला पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले का है, जहां मेजिया थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषण के कारण किसानों की जमीनें क्षतिग्रस्त हो गई थी।

अदालत ने मामले में भारत सरकार, दामोदर घाटी निगम, मेजिया पावर प्लांट, पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लटियाबानी गंगाजल घाटी ग्राम पंचायत के खंड विकास अधिकारी और बांकुरा के जिला मजिस्ट्रेट को मामले में शामिल करने का आदेश दिया है। इन सभी को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा भी दाखिल करना होगा। मामले में अगली सुनवाई 13 अगस्त, 2024 को होगी।

गौरतलब है कि यह कार्रवाई 15 फरवरी, 2024 को लटियाबोनी और नित्यानंदपुर अंचल कृषक कल्याण समिति की ओर से एक दायर पत्र याचिका के आधार पर की गई है।

इस याचिका में कहा गया है कि एनजीटी ने 14 फरवरी, 2023 के अपने आदेश में उन किसानों को 7.92 करोड़ रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया था जिनकी जमीन थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषण के कारण क्षतिग्रस्त हो गई है। यह भुगतान इससे पहले दिए गए मुआवजे से अलग होना था। आवेदन में यह भी कहा गया है कि दामोदर घाटी निगम ने आज तक उन किसानों को मुआवजा नहीं दिया है जिनकी 2022-23, 2023-24 के दौरान चार फसलें प्रभवित हुई थी।

तालचेर कोलफील्ड्स से निकलने वाले ट्रकों से हो रहा है धूल उत्सर्जन: निरीक्षण रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (ओएसपीसीबी) से समिति द्वारा दायर निरीक्षण रिपोर्ट में की गई टिप्पणी पर हलफनामा दाखिल करने का कहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तालचेर कोलफील्ड्स से निकलने वाले ट्रकों से धूल उत्सर्जित हो रही है।

गौरतलब है कि यह कोलफील्ड ओडिशा के अंगुल जिले में है और इसका स्वामित्व महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के पास है। पूरा मामला महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के संचालन के दौरान होने वाले वायु प्रदूषण से जुड़ा है। बताया गया कि तालचेर कोलफील्ड्स से हर दिन करीब पांच से दस हजार कोयला से लदे ट्रक देश के विभिन्न हिस्सों में जाते हैं।

समिति ने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में कहा है कि 20 और 21 मार्च, 2024 को इस साइट का निरीक्षण किया गया था। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि एनएच-149 पर वाहनों के चलने से धूल उत्सर्जन हो रहा है। यह धूल आस-पास के गांवों के लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है। सड़क की नियमित सफाई और रखरखाव से इस समस्या को कम किया जा सकता है।

महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके सभी ट्रक तिरपाल से सुरक्षित तरीके से ढके रहते हैं ताकि रिसाव और ओवरलोडिंग को रोका जा सके। इसके अलावा, सड़क के किनारे बची हुई धूल को हर परियोजना में तैनात रोड स्वीपर मशीनों द्वारा साफ किया जाता है।

महानदी कोलफील्ड्स का यह भी कहना है कि वो धूल-मुक्त कोयला परिवहन सुनिश्चित करने के लिए मिस्ट फॉग कैनन, शॉवर सिस्टम, व्हील वॉशिंग यूनिट और रोड स्वीपर जैसे नियंत्रण उपायों का उपयोग करता है। हालांकि, एनजीटी की पूर्वी बेंच ने दो जुलाई, 2024 को बताया है कि निरीक्षण रिपोर्ट कुछ और ही कहती है।

कंजिया और कियाकानी झीलों में गंभीर प्रदूषण का मामला, जांच के लिए समिति गठित

चार जुलाई, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दो सदस्यीय समिति से नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क और नंदनकानन बॉटनिकल गार्डन के बीच मौजूद कंजिया और कियाकानी झीलों में बढ़ते प्रदूषण की जांच करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही समिति से भूजल में आती कमी की भी जांच करने को कहा गया है। यह समिति न केवल इस साइट का दौरा करेगी, साथ ही लगाए आरोपों पर एक निरीक्षण रिपोर्ट भी अदालत में दाखिल करेगी।

अदालत ने ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य आर्द्रभूमि प्रबंधन प्राधिकरण, भुवनेश्वर, खोरधा के प्रभागीय वन अधिकारी और नंदनकानन प्राणी उद्यान के निदेशक को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है।

गौरतलब है कि कंजिया झील 66 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है और यह एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है। इसे 2006 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 'राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि' के रूप में घोषित किया था। आवेदन में कहा गया है कि नंदनकानन वन्यजीव अभयारण्य के आसपास शहरीकरण, इमारतों के निर्माण और जमीन की खरीद बेच के कारण वन क्षेत्र धीरे-धीरे सिकुड़ रहे हैं और समाप्त हो रहे हैं।

आरोप है कि इमारतों से निकलने वाले दूषित अपशिष्ट को नालों के माध्यम से झीलों में डाला जा रहा है, जिससे उनका जल दूषित हो रहा है। यह भी बताया गया है कि नंदनकानन प्राणी उद्यान में जानवरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए इन झीलों से पानी पाइप के जरिए ले जाया जाता है।

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