एनजीटी ने निर्देश दिया कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश के आवासीय क्षेत्रों से औद्योगिक गतिविधियों को स्थानांतरित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय (एससी) के 23 सितंबर, 2013 के आदेश का शीघ्रता से अनुपालन किया जाए। 31 दिसंबर, 2020 तक की स्थिति रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश के प्रधान सचिव द्वारा एक हलफनामे के रूप में सौंपा जाए।
एनजीटी ने उल्लेख किया कि उत्तर प्रदेश राज्य 7 साल पहले पारित एससी के आदेश का पालन करने में विफल रहा, साथ ही ट्रिब्यूनल के इसी से संबंधित, अन्य आदेशों को भी इसी तरह के अनुपालन की आवश्यकता जताई।
गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) ने 03 सितंबर, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बादशाहपुर ड्रेन के कंक्रीटीकरण के कारण प्रभावित भूजल पुनर्भरण (ग्राउंडवाटर रिचार्ज) को ठीक करने के लिए एक योजना तैयार की गई है।
निम्नलिखित योजना प्रस्तावित की गई:
एक व्यापक जल निकासी योजना प्रस्तावित की गई थी - जिसमें जल संचयन के लिए संरचनाओं का निर्माण करना, कुओं को फिर से भरना, तालाबों के पानी की उचित तरीके से व्यवस्था करना। लेग 4 (Leg IV ) का निर्माण (एनएच -48 तक सोहना रोड से बदशाहपुर नाले का निर्माण) शामिल था।
रिपोर्ट के अनुलग्नक में गुरुग्राम नगर निगम (एमसीजी) के मुख्य अभियंता द्वारा की गई कार्रवाई शामिल है। एमसीजी की रिपोर्ट में तालाब के कायाकल्प (रिजूवनैशन) की बात की गई थी। एमसीजी के अधिकार क्षेत्र के रिकॉर्ड के अनुसार लगभग 26 तालाबों (जोहड़) की पहचान की गई थी, जिनमें से 5 तालाबों को नगर निगम द्वारा पहले ही विकसित किया जा चुका है।
एनजीटी ने 03 दिसंबर, 2019 को उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल (उत्तर क्षेत्र), असम और जम्मू-कश्मीर में पनबिजली परियोजनाओं के लिए ई-फ्लो मीटर लगाने का निर्देश दिया था। सिक्किम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आदेश का अनुपालन करते हुए, राज्य में की गई कार्रवाई रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 7 जल विद्युत परियोजनाओं के लिए ई-फ्लो मीटर लगाए गए हैं। तीन पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण चल रहा है, इसके कारण ई-फ्लो मीटर नहीं लगाए गए हैं।
विजय कुमार द्वारा हिमाचल प्रदेश में हाइड्रो-स्टेशनों के बारे में एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें कहा गया था कि ऐसे मौसम में जब पानी कम होता है, उस समय जारी पानी के प्रवाह को मापा नहीं जाता है। प्रवाह की कमी के परिणामस्वरूप जल प्रदूषण अधिक होता है और पानी की कमी के कारण जलीय जीवन को नुकसान होता है। पानी की कमी वाले मौसम में भी औसत प्रवाह 15-20 फीसदी तक बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
एनजीटी ने 03 दिसंबर, 2019 के अपने आदेश में कहा कि नदी के पारिस्थितिकी के लिए न्यूनतम प्रवाह बनाए रखना आवश्यक है और ऐसी आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिए।
एनजीटी ने 3 सितंबर को दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को देशी प्रजातियों के 500 पेड़ लगाने का निर्देश दिया। इस प्रक्रिया की देखरेख प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीपीसीएफ), दिल्ली द्वारा की जाएगी।
डीजेबी के अधिकारियों के साथ मिलकर सज्जन सिंह यादव द्वारा फर्नीचर बनाने के लिए, 40 से 50 पेड़ों को काटने का आरोप लगाते हुए एनजीटी के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी।
एनजीटी द्वारा पीपीसीएफ दिल्ली से मामले की रिपोर्ट मांगी गई थी। चाणक्यपुरी में स्थित डीजेबी परिसर के भीतर पेड़ों की अवैध कटाई की सूचना, दिल्ली वन और वन्यजीव विभाग ने ले ली थी। वृक्ष अपराध शाखा (ट्री ऑफेंस सेल), साउथ डिवीजन के कर्मचारियों ने साइट का निरीक्षण किया और डीजेबी के स्वामित्व वाली संपत्ति में 3 पेड़ों की अवैध कटाई और 10 पेड़ों की अवैध छंटाई की सूचना दी।
इस मामले में दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जानी थी। इसके बाद 05 मई, 2020 को एक आदेश जारी किया गया, जिसमें अपराध के लिए सशर्त 3,80,000 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया। (जिसमें अवैध रूप से गिराए गए प्रत्येक पेड़ के लिए 60,000 रुपये और अवैध रूप से छंटाई किए गए प्रत्येक पेड़ के लिए 20,000 रुपये)। दिल्ली जल बोर्ड द्वारा 5 से 6 फीट की ऊंचाई वाले देशी पेड़ की प्रजातियों जैसे नीम, बरगट, पीपल, अमलतास आदि के 500 पेड़ों का रोपण जून 2020 के अंत तक करना था।
डीसीएफ ने रिपोर्ट में बताया कि मामले के दोनों कामों के शर्तों के अनुपालन में डीजेबी द्वारा 3,80,000 रुपये जमा किए गए लेकिन 500 पेड़ों के रोपण का कोई अनुपालन नहीं हुआ।