
केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अष्टमुडी आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए दो जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है।
अदालत ने 29 जुलाई, 2025 को दिए अपने आदेश में कहा कि इस उद्देश्य के लिए विभिन्न विशेषज्ञों और हितधारकों को शामिल करते हुए एक विशेष प्राधिकरण बनाया जाए, और दूसरा उस क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए अष्टमुडी झील के लिए एक वैज्ञानिक और विस्तृत प्रबंधन योजना तैयार की जाए।
केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नितिन जमदार और न्यायमूर्ति बसंत बालाजी की बेंच ने राज्य सरकार और राज्य वेटलैंड प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि दो महीनों के भीतर ‘अष्टमुडी वेटलैंड प्रबंधन इकाई’ का गठन किया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि छह महीनों के अंदर अष्टमुडी वेटलैंड के लिए एकीकृत प्रबंधन योजना को नियमानुसार अंतिम रूप दिया जाए। जब तक यह योजना तैयार नहीं हो जाती तब तक राज्य वेटलैंड प्राधिकरण को एक अंतरिम प्रबंधन योजना तैयार करनी होगी, ताकि प्रबंधन इकाई को काम करने के लिए दिशा-निर्देश मिलते रहे और संरक्षण कार्य जारी रह सके।
गौरतलब है कि यह आदेश एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें अष्टमुडी झील की बिगड़ती हालत और उसकी बहाली की मांग की गई थी। इस याचिका में कहा गया है कि तेजी से हो रहे निर्माण, सीवेज और ठोस कचरे के अनियंत्रित बहाव ने अष्टमुडी को गंभीर खतरे में डाल दिया है।
मैंग्रोव और मछली प्रजनन क्षेत्रों का हो रहा विनाश
इसकी वजह से झील की पारिस्थितिकी और जल गुणवत्ता को गंभीर रूप से नुकसान हो रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि आवासीय इलाकों और व्यावसायिक स्थलों से सीवेज, ठोस और बायोमेडिकल कचरे का अंधाधुंध नाले में बहाया जाना सबसे बड़ी समस्या है। इसके साथ ही तटों पर अतिक्रमण से मैंग्रोव के जंगल नष्ट हो रहे हैं। इससे मत्स्य जीवन और स्थानीय मछुआरों की जीविका पर खतरा मंडराने लगा है।
कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ताओं के आरोप सरकारी रिकॉर्ड से मेल खाते हैं, जो समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं। केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 2020 से 2022 के बीच कराए गए स्वच्छता सर्वेक्षण में पाया गया कि इलाके में कचरा प्रबंधन की स्थिति बेहद चिंताजनक है और इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं।
झील का आकार और गहराई घटी, प्रदूषण बढ़ा
दूसरा दस्तावेज पर्यावरण समिति की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में अष्टमुडी की बिगड़ती स्थिति पर चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया कि अष्टमुडी में भारी प्रदूषण, अतिक्रमण और तलछट जमा होने की समस्या है। इसके चलते अष्टमुडी का क्षेत्रफल 61.4 वर्ग किलोमीटर से घटकर अब महज 34 वर्ग किलोमीटर रह गया है। चिंता की बात है कि कुछ तटीय इलाकों में इसकी गहराई आधे मीटर से भी कम रह गई है।
इस क्षेत्र में कृषि और नियमों को ताक पर रख हो रहे निर्माण और पर्यटन गतिविधियां दलदलों और मैंग्रोव का बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रही हैं।
अष्टमुडी पर शहरी विस्तार जैसे होटल, इमारतें और व्यावसायिक गतिविधियों का भी दबाव है। इसके साथ ही खेतों से बहकर आने वाले रसायन, कीटनाशकों का उपयोग, मछली पकड़ने के खराब तरीके और कचरा प्रबंधन की गलतियां भी झील को नुकसान पहुंचा रही हैं। वहीं कोल्लम और नींदाकारा बैकवॉटर्स में पर्यटन से होने वाला कचरा और प्लास्टिक जमा होने से पानी की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि भले ही सभी सरकारी विभाग इस समस्या की गंभीरता को स्वीकार करते हैं, लेकिन नगर निगम, विभिन्न सरकारी एजेंसियां, विभाग और पंचायतें अलग-अलग हिस्सों पर अलग-थलग काम कर रही हैं, और उनके बीच कोई समन्वय नहीं है।
ऐसे में यदि समन्वित प्रयास नहीं किए गए, तो अष्टमुडी झील, जो एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक धरोहर है, पूरी तरह नष्ट हो सकती है।
बता दें कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 23 अगस्त, 2022 को दिए एक आदेश में कहा था कि अष्टमुडी और वंबनाड-कोल वेटलैंड में प्रदूषण को रोकने के लिए अधिकारियों ने जो कार्रवाई की है वो पर्याप्त नहीं है। वहां बढ़ता प्रदूषण जल अधिनियम 1974 के साथ-साथ वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 का भी गंभीर रूप से उल्लंघन है।