कान, दिमाग व दिल की दिक्कतें बढ़ाता है शोर

दुनिया आज के दिन मनाती है अंतर्राष्ट्रीय शोर जागरूकता दिवस
लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहना इंसानों के साथ-साथ जानवरों के लिए भी घातक हो सकता है।
लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहना इंसानों के साथ-साथ जानवरों के लिए भी घातक हो सकता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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शोर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। एक निश्चित सीमा से अधिक ध्वनि कान के पर्दों और पूरे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है, ध्वनि को डेसिबल में मापा जाता है। ध्वनि और संगीत बजाते समय एक निश्चित शिष्टाचार बनाए रखना जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हम लोगों को प्रभावित न करें। ध्वनि प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, सुनने की क्षमता में कमी, नींद में खलल और उत्पादकता में कमी जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहना इंसानों के साथ-साथ जानवरों के लिए भी घातक हो सकता है। हर साल 30 अप्रैल को पड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय शोर जागरूकता दिवस यह सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाता है कि हम अपने स्वास्थ्य पर शोर के बुरे प्रभावों के बारे में अधिक जागरूक हो जाएं।

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शोर के सामान्य स्रोतों में यातायात, औद्योगिक गतिविधि, निर्माण, लाउडस्पीकर और यहां तक कि घरेलू गैजेट भी शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, बहुत अधिक शोर के लंबे समय तक संपर्क में रहने से बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी, नींद संबंधी विकार, तनाव में वृद्धि, हृदय संबंधी समस्याएं और सीखने की क्षमता में कमी हो सकती है।

शोर निपटने के लिए, स्कूलों, आवासीय समुदायों और कार्यस्थलों में जागरूकता अभियान जरूरी हैं। ध्वनि प्रदूषण के कारणों और परिणामों को सिखाने वाले शैक्षिक कार्यक्रम लोगों को समस्या में योगदान देने और उसे हल करने मंम उनकी भूमिका को पहचानने में मदद करते हैं।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ध्वनि प्रदूषण को 65 डेसिबल (डीबी) से अधिक शोर स्तर के रूप में परिभाषित किया है, जिसके हानिकारक प्रभाव 75 डीबी से ऊपर शुरू होते हैं और 120 डीबी से ऊपर दर्दनाक हो जाता है। डब्ल्यूएचओ ने शोर के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए शोर के संपर्क पर दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें सोने का कमरा, कक्षाओं और यातायात जैसे शोर के विभिन्न स्रोतों के आसपास के क्षेत्रों जैसे विशिष्ट वातावरण के लिए सिफारिशें शामिल हैं।

साल 1996 में सेंटर फॉर हियरिंग एंड कम्युनिकेशन (सीएचसी) ने ध्वनि प्रदूषण के प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय शोर जागरूकता दिवस की घोषणा की। यह दिन लोगों से एक साथ आने और ध्वनि प्रदूषण को कम करने के तरीके खोजने और एक स्वस्थ ग्रह में योगदान करने का भी आग्रह करता है।

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ध्वनि प्रदूषण के सबसे आम प्रभावों में से एक है सुनने की क्षमता का कम होना। चाहे वह फिटनेस क्लास हो, या मनोरंजन के साधन या संगीत कार्यक्रम, लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहना हमारे लिए घातक हो सकता है। शोर के प्रभावों के बारे में खुद को शिक्षित करना और शोर को कम करने के तरीकों के बारे में अधिक जागरूक होना बहुत ही जरूरी है। ज्यादातर लोग अपने शरीर पर शोर के प्रभाव को तब तक नहीं समझ पाते जब तक कि बहुत देर नहीं हो जाती।

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