घरेलू गौरैया के प्रजनन में खलल डाल रहा है ध्वनि प्रदूषण: अध्ययन

प्रजनन के मौसम में किशोर गौरैया की आबादी उन शहरों में कम हो जाती है जहां त्योहार मनाए जाते हैं, इस दौरान पटाखों और आतिशबाजी की वजह से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के कारण ऐसा पाया गया है।
Photo : Wikimedia Commons, House sparrow
Photo : Wikimedia Commons, House sparrow
Published on

आज की दुनिया में हमने अपने रहने के लिए बड़े-बड़े घर तो बना लिए हैं, पर इनमें इन नन्हीं-सी गौरैया के लिए कोई जगह नहीं है। यूरोप जैसे देशो में गौरैया चिंता का विषय बन चुकी है और ब्रिटेन में तो इसे आईयूसीएन की रेड लिस्ट में शामिल किया जा चुका है। भारत में भी पक्षी वैज्ञानिकों ने बताया है कि पिछले कुछ दशकों में गौरैया की संख्या में भारी गिरावट आई है।   

इसकी लगातार घटती संख्या को गंभीरता से नहीं लिया, तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया का अस्तित्व मिट जाएगा। आखिर गौरैया की संख्या में गिरावट क्यों आ रही है, इस पर किए गए इस नए अध्ययन ने एक नए तथ्य को उजागर किया है, यह प्रकृति में रुक-रुक कर होने वाले शोर की और आपका ध्यान खीचता हैं। शोर का शहरी जीवों पर किस तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं, अब तक इस बारे में बहुत कम अध्ययन हुए हैं।

एलिकांटे विश्वविद्यालय, वेलेंसिया विश्वविद्यालय के कैवनिलिस इंस्टीट्यूट ऑफ बायोडायवर्सिटी एंड इवोल्यूशनरी बायोलॉजी के सहयोग से इस अध्ययन को किया गया है। उत्सवों, त्योहारों में होने वाला ध्वनि प्रदूषण घरेलू गौरैया के प्रजनन को कैसे प्रभावित करता है, अध्ययन में इस पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययनकर्ता एडगर बर्नट, जोस एंटोनियो गिल, और जर्मन लोपेज़ ने पाया है कि प्रजनन के मौसम में किशोर गौरैया की आबादी उन शहरों में कम हो जाती है जहां त्योहार अधिक मनाएं जाते हैं। आबादी का कम होना उत्सव में पटाखों और आतिशबाजी की वजह से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के कारण होता है।     

त्योहारों के दौरान मनोरंजन और रुक-रुक कर होने वाले शोर का शहरी जीवों पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में बहुत कम अध्ययन किए गए हैं। अध्ययनकर्ताओं ने कहा इस मामले में, हमने घरेलू गौरैया का अध्ययन किया, क्योंकि यह एक शहरी बायोइंडिकेटर है। बायोइंडिकेटर - एक जीव जो जिस माहौल में रह रहा है (पारिस्थितिकी तंत्र) उसमें उसकी स्थिति का विश्लेषण पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के बारे में बताता है।

एडगर बर्नट ने कहा कि हम यह जानना चाहते थे कि, किसी भी प्रजाति में प्रजनन के मौसम के दौरान आने वाले त्योहारों का उनके प्रजनन पर किस हद तक प्रभाव पड़ा, जो एक अहम पहलू है जिसका अब तक विश्लेषण नहीं किया गया था। 

इस बारे में पता लगाने के लिए शहरों के पांच जोड़ों का विश्लेषण किया गया, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या अप्रैल और मई के बीच वे प्रजनन करते हैं या वे इसके लिए वसंत के बाद के मौसम का इंतजार करते हैं। बर्नट ने बताया कि हम उत्सव के समय के आधार पर इसकी तुलना करना चाहते थे।

नमूना लेने के लिए, शोधकर्ताओं ने किशोर गौरैया की गणना की, जो अध्ययन करने के वर्ष के दौरान पैदा हुए थे। जो उत्सव के अंत के पंद्रह और तीस दिन बाद मानाए जाने वाले मूर और ईसाई त्योहार के आसपास एक सौ मीटर के क्षेत्र में थे। इस प्रकार, वे किशोर और वयस्क पक्षियों का अनुपात प्राप्त करने में सफल हुए।  

2019 में किए गए इस विश्लेषण से पता चला है कि जिन इलाकों में त्योहार प्रजनन के मौसम के बाद थे, वहां किशोर गौरैया अधिक थीं।  इस प्रकार, शोध बताता है कि 2020 में युवा अनुपात दोनों प्रकार के इलाकों में थे, क्योंकि वसंत के मौसम में कोविड-19 के कारण उत्सव, पार्टियां रद्द कर दी गई थी। इसी तरह, अध्ययनकर्ताओं ने देखा कि प्रजातियों की सामान्य प्रजनन सफलता पर रोक का उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ा है, हालांकि उन इलाकों में सुधार हुआ है जहां वसंत में आने वाले त्योहारों को मनाने पर रोक लगा दी गई थी।

बर्नट का मानना ​​है कि गौरैया का प्रजनन केवल ध्वनिक कारकों पर निर्भर करता है, बल्कि अन्य जैसे भोजन जो लोग प्रदान करते हैं उस पर भी निर्भर करता है। इसलिए, यह अध्ययन जीवों के प्रजनन को प्रभावित करने वाले अन्य तत्वों के संबंध में जानकारी देता है।

इसके अलावा, आगे के अध्ययन के संभावित तरीकों में से एक यह जानना है कि उत्सव, पार्टियां के द्वारा वायु प्रदूषण होता है, इस तरह केवल ध्वनि प्रदूषण ही नहीं वायु प्रदूषण भी गौरैया को प्रभावित कर सकता है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल पोल्लुशन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।  

शोधकर्ता ने कहा कि हम यह नहीं कहते हैं कि पारंपरिक त्योहारों को रद्द कर दिया जाना चाहिए या उन्हें बदल दिया जाना चाहिए क्योंकि यह गौरैया के प्रजनन को प्रभावित करता है। हालांकि, हम मानते हैं कि उनकी मदद के लिए प्रतिपूरक उपाय दूसरे तरीके से किए जाने चाहिए।

पक्षियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले फैसलों में शहरों में हरित नीतियों का अभाव है। उदाहरण के लिए, कृत्रिम घास के बजाय प्राकृतिक घास रखना, पार्कों पर पत्थर के फर्श लगाने से बचना और घर की टाइलों को अपनाना ताकि वे घोंसला बना सकें। दूसरे शब्दों में, उन्हें सुविधाएं प्रदान करने के बावजूद तथ्य यह है कि आप उत्सवों के दौरान उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in