संसद में सीएसई रिपोर्ट का दिया गया हवाला, मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं दिल्ली के पावर प्लांट

25 राज्यों के 230 जिलों के कुछ हिस्सों में आर्सेनिक की जानकारी मिली है और 27 राज्यों के 469 जिलों के कुछ हिस्सों में फ्लोराइड संदूषण पाया गया है।
संसद में सीएसई रिपोर्ट का दिया गया हवाला, मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं दिल्ली के पावर प्लांट
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संसद में 18 दिसंबर 2023 को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट का हवाला देकर सवाल पूछा गया कि क्या दिल्ली के आसपास कई कोयला आधारित बिजली संयंत्र उत्सर्जन मानदंडों का पालन नहीं कर रहे हैं। इस पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में जवाब देते हुए बताया कि एनसीआर के थर्मल पावर प्लांटों ने लागू उत्सर्जन सीमाओं यानी एसओ2 उत्सर्जन के अलावा अन्य मापदंडों का अनुपालन किया है।

उन्होंने बताया कि ए श्रेणी के पावर प्लांटों, जिनमें एनसीआर के 10 किमी के दायरे में स्थित संयंत्र भी शामिल हैं, में एसओ2 के अलावा नए उत्सर्जन मानदंडों का पालन करने की समय सीमा 31 दिसंबर, 2022 थी। श्रेणी ए के तहत चार थर्मल पावर प्लांट हैं जो 10 किमी के दायरे में स्थित हैं।

उन्होंने बताया कि श्रेणी सी के तहत सात थर्मल पावर प्लांट दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं, जिनके लिए एसओ2 के अलावा अन्य उत्सर्जन मानदंडों का पालन करने की समय सीमा क्रमशः 31 दिसंबर 2024 और 31 दिसंबर 2026 है। उन्होंने बताया कि अलग-अलग तकनीकी व आर्थिक बाधाओं के साथ-साथ कोविड-19 महामारी की वजह से उत्सर्जन मानकों के कार्यान्वयन में देरी हुई1 जिसके चलते समय सीमा का विस्तार भी किया गया है।

बढ़ता समुद्र स्तर

सदन में सवालों का सिलसिला जारी रहा, इसी क्रम में आज एक सवाल का जवाब देते हुए, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में कहा, समुद्र के स्तर में वृद्धि एक धीमी घटना है और स्थानीय कारणों तथा विश्व स्तर पर अलग-अलग होती है। अगस्त 2021 में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, 1901 से 2018 के बीच वैश्विक औसत समुद्र स्तर 0.20 (0.15-0.25) मीटर बढ़ गया। समुद्र स्तर बढ़ने की औसत दर 1.3 (0.6) थी।  

1901-1971 के बीच 2.1 मिमी प्रति वर्ष, 1971 से 2006 के बीच बढ़कर 1.9 (0.8-2.9) मिमी प्रति वर्ष और 2016 से 2018 के बीच बढ़कर 3.7 (3.2 से 4.2) मिमी प्रति वर्ष हो गया। इस वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप और भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) के अध्ययन के साथ-साथ वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर, वर्तमान में, भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर औसतन लगभग प्रति वर्ष 1.7 मिमी बढ़ने का अनुमान है। यह देखा गया कि भारतीय तट पर समुद्र का स्तर अलग-अलग दरों पर बदल रहा है।

हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्रों के खतरों का मानचित्रण

पहाड़ी इलाकों में बढ़ते खतरों को देखते हुए, सदन में सवाल उठाया गया, जिसके जवाब में आज, राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी), देहरादून (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान) द्वारा दी गई जानकारी के हवाले से बताया, भारी से बहुत भारी भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के 25 से 30 फीसदी क्षेत्र को कवर करते हैं।

इसके अलावा हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 32 फीसदी हिस्सा भारत के भूकंपीय मानचित्र में बहुत भारी नुकसान व खतरे वाले क्षेत्र (जोन-पांच) में आता है और शेष भारी नुकसान और खतरे वाले क्षेत्र में आता है। बाढ़ के संबंध में, यह अलग-अलग बताया गया है। मुख्य रूप से शिवालिक, निचले और मध्य हिमालयी क्षेत्र में भारी मॉनसूनी बारिश के कारण बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है। जबकि किन्नौर, लाहौल और स्पीति, चंबा और कुल्लू जिलों की ऊंची पहाड़ियां विशेष रूप से हिमस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं, जैसा कि हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार द्वारा रिपोर्ट में बताया गया है।

भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड का स्तर

सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में, जल शक्ति राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने राज्यसभा में बताया, केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) अपने भूजल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम और विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर, क्षेत्रीय स्तर पर देश के भूजल गुणवत्ता के आंकड़े तैयार करता है। ये अध्ययन विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लोगों के उपभोग के लिए स्वीकार्य सीमा (बीआईएस के अनुसार) से अधिक भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की उपस्थिति की जानकारी देते हैं। 25 राज्यों के 230 जिलों के कुछ हिस्सों में आर्सेनिक की जानकारी मिली है और 27 राज्यों के 469 जिलों के कुछ हिस्सों में फ्लोराइड संदूषण पाया गया है। सीजीडब्ल्यूबी की रिपोर्ट के मुताबिक, भूजल संदूषण ज्यादातर प्रकृति में भूगर्भिक है और पिछले कुछ वर्षों में इनमें ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया है।

पानी की कमी वाले गांवों का मानचित्रण

वहीं सदन में उठे एक अन्य सवाल के जवाब में, राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने राज्यसभा में आज जानकारी देते हुए कहा, 2023 में किए गए नवीनतम मूल्यांकन के अनुसार, पूरे देश के लिए भूजल निकालने का चरण (एसओई), यानी सभी उपयोगों के लिए कुल भूजल निष्कर्षण का वार्षिक निकाले जाने योग्य भूजल से अनुपात 59.26 फीसदी है।

देश में कुल 6553 मूल्यांकन इकाइयों (एयू) में से, जो आम तौर पर ब्लॉक, तालुक और तहसील हैं, 736 इकाइयों (6553 में से 11.23 फीसदी) को 'अति-शोषित (ओई)' के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहां एसओई 100 फीसदी से अधिक है। इसके अलावा 199 इकाइयों (3.04 फीसदी ) को 'गंभीर' और 698 इकाइयों (10.65 फीसदी) को 'अर्द्ध - गंभीर' के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। कुल मिलाकर, 4793 इकाइयां (73.14 फीसदी) 'सुरक्षित' श्रेणी में थीं और 127 इकाइयां (1.94 फीसदी) 'खारा पन' की श्रेणी में थे।

एनजीटी ने जारी किया नोटिस

सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में जानकारी देते हुए कहा, 2023 के मूल आवेदन (ओ ए) 693 के स्वतः संज्ञान के मामले में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), प्रधान पीठ ने छह नवंबर, 2023 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को नोटिस जारी किया।

24 अक्टूबर, 2023 को डेक्कन हेराल्ड में छपी एक खबर जिसका शीर्षक "प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कमजोर कड़ी हैं" के आधार पर एसपीसीबी इसके खिलाफ आंकड़े प्रदान करेगा। तदनुसार, सीपीसीबी ने 22.11.2023 को संबंधित एसपीसीबी अथवा पीसीसी द्वारा उपलब्ध कराए गई जानकारी के आधार पर एनजीटी को रिपोर्ट सौंपी है। इस संबंध में, एनजीटी ने 23 नवंबर, 2023 को संबंधित एसपीसीबी अथवा पीसीसी के प्रधान सचिव, पर्यावरण और वन विभाग के माध्यम से अपनी रिपोर्ट दर्ज करने के लिए आगे आदेश जारी किया है।

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