23 जून, 2020 को एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के लिए आदेश जारी किया है कि वो जल स्रोतों की बहाली के लिए जरुरी दिशानिर्देश तैयार करे| इसके साथ ही उसने इस काम में स्थानीय गांव वालों को भी शामिल करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि कोर्ट ने यह आदेश जालौन जिले में स्थित कदौरा शहर के मुख्य तालाब जिसे 'सदर तालाब' कहते हैं, के बारे में सुनवाई के दौरान दिया है|
इससे पहले जालौन के जिला मजिस्ट्रेट और यूपीपीसीबी द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई थी कि कदौरा नगर पंचायत के सीवर को सदर तालाब में डाला जा रहा है| जिससे जल दूषित हो रहा है और उसकी गुणवत्ता में कमी आ रही है|
इस मामले पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने निर्देश दिया है कि इनको बचाने के लिए तुरंत कार्यवाही की जाए| अपने आदेश में कोर्ट ने जल स्रोतों के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि इनकी बहाली, पर्यावरण के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है| साथ ही पीने के पानी, वर्षा जल को बचाने और जमीन में मौजूद जल को रिचार्ज करने में भी इनकी अहम भूमिका है| साथ ही यह जल स्रोत पारिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने के लिए भी जरुरी हैं|
गंगा नदी संरक्षण और कार्यक्रम प्रबंधन सोसायटी, बिहार ने राज्य में चल रहे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के बारे में स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है| यह रिपोर्ट एम सी मेहता बनाम भारत सरकार के मामले में एनजीटी द्वारा 12 दिसंबर 2019 को दिए आदेश पर जारी की गई है| बिहार में गंगा, पुनपुन, रामरेखा, सिकरहना, परमार, सिरसिया, सोन, कोसी, बुरही, गंडक, बागमती, महानंदा और किउल आदि नदियां बहती हैं| जिनको प्रदूषण से बचाने के लिए इन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर काम चल रहा है|
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल 30 सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है| जिनपर करीब 5328.61 करोड़ रुपए की लागत आएगी| जोकि निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं| इनमें से 11 परियोजनाएं पटना के लिए हैं| जबकि बेगूसराय, मुंगेर, हाजीपुर, मोकामा, सुल्तानगंज, नौगछिया, बरह, भागलपुर, सोनपुर, छपरा, खगड़िया, बख्तियारपुर, मनेर, फतुहा, दानापुर, फुलवारीशरीफ, बक्सर, बरहिया और कहलगांव आदि शहरों में हैं।
इन परियोजनाओं के जरिये करीब 651.5 एमएलडी सीवेज का उपचार किया जाएगा| इस परियोजना के अंतर्गत एसटीपी का निर्माण और सुधार, सीवरेज नेटवर्क और उससे सम्बंधित इंटरसेप्शन और डायवर्जन कार्यों को भी पूरा किया जाएगा| रिपोर्ट के अनुसार इसके साथ ही दानापुर कैंट और राजापुर नाले के सीवेज के यथास्थिति ट्रीटमेंट के लिए 2 प्रोजेक्ट्स को मंजूर दी गई है| जिसके लिए 3.16 करोड़ रुपए मंजूर किये गए हैं|
सुप्रीम कोर्ट ने 22 जून को यशश्वी रसायन प्राइवेट लिमिटेड को आदेश दिया है कि वो मुआवजे के मामले में एनजीटी के पास जाए| गौरतलब है कि गुजरात में भरूच जिले के दहेज स्पेशल इकोनॉमिक जोन में चल रहे इस रासायनिक कारखाने में विस्फोट हो गया था जिसमें 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी| इसी के चलते नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस कंपनी को विस्फोट में मारे गए और प्रभावित हुए लोगों को हर्जाना देने का आदेश दिया था| यशिस्वी रसायन प्राइवेट लिमिटेड नामक यह कंपनी विस्थापितों को मुआवजे के भुगतान के संबंध में दिए गए न्यायाधिकरण के आदेश में संशोधन चाहती थी| इसी बाबत उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी|
इस उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील हरीश साल्वे ने बताया कि जिन लोगों की मृत्यु इस हादसे में हुई है| उनके लिए कोर्ट ने जो 15 लाख रुपए, अंतरिम मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया है| उससे उद्योग को कोई आपत्ति नहीं है। साथ ही कंपनी गंभीर रूप से घायल लोगों के लिए 5 लाख रुपए प्रति व्यक्ति और अस्पताल में भर्ती व्यक्तियों के इलाज के लिए एनजीटी के आदेशानुसार 2.5 लाख रुपए प्रति व्यक्ति मुआवजा देने को तैयार है|
इसके साथ ही एनजीटी ने विस्थापित हुए लोगों के लिए प्रति व्यक्ति 25,000 रुपए मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया था| जिससे कंपनी को आपत्ति है| गौरतलब है कि इस हादसे में करीब 4800 व्यक्ति विस्थापित हुए हैं| ऐसे में कंपनी को विस्थापित हुए लोगों के लिए करीब 12 करोड़ रूपए का मुआवजा भरना पड़ेगा| जिससे कंपनी बचना चाहती है| कंपनी के वकील ने दलील दी है कि कई लोगों को सिर्फ कुछ घंटे के लिए विस्थापित होना पड़ा था, ऐसे में यह जो मुआवजे की रकम है वो बहुत ज्यादा है|
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी से पूछा है कि यदि जरुरी हो तो आंकड़ों के आधार पर मुआवजे पर एक बार फिर से विचार कर सकते हैं| हालांकि इस मामले में हर्जाने की राशि को एनजीटी द्वारा तय किया जाना है| यह बात सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दी है| सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को 10 दिनों के अंदर हर्जाने की राशि का भुगतान करने का आदेश दिया था| इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जब तक एनजीटी द्वारा कोई नया फैसला नहीं ले लिया जाता तब तक हर्जाने की राशि में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और वो 25,000 ही मानी जाएगी|
22 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ जगन्नाथ रथ यात्रा को अनुमति दे दी है| गौरतलब है कि इससे पहले 18 जून को दिए अपने आदेश में कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस रथ यात्रा पर रोक लगा दी थी|
23 जून, 2020 से शुरू होने वाली इस वार्षिक रथ यात्रा में औसतन हर वर्ष 10 से 12 लाख लोग जुटते हैं| यह उत्सव 10 से 12 दिनों तक चलता है। पर वर्तमान स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने का आदेश दिया था| अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह से कोरोनावायरस के फैलने का खतरा है उसे देखते हुए इस वर्ष रथ यात्रा का आयोजन सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा के हितों के खिलाफ होगा। सुप्रीम कोर्ट को आशंका थी कि इस रथ यात्रा में भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटेगी| ऐसे में उन सभी पर निगरानी करना नामुमकिन हो जाएगा|
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बताया था कि हालांकि हमारे पास राजपत्र की आधिकारिक प्रति नहीं है, पर हमें जानकारी मिली है कि 18वीं और 19वीं शताब्दी में इसी तरह की धार्मिक यात्रा के चलते हैजा और प्लेग जैसे रोग फैल गए थे| जबकि ओडिशा राज्य द्वारा कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है कि इस रथ यात्रा को सीमित तरीके से बिना लोगों की भीड़ लगाए बिना भी आयोजित किया जा सकता है| यह प्रस्ताव पुरी जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के अध्यक्ष गजपति महाराज द्वारा प्रस्तावित किया गया था| सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि बिना भीड़ भाड़ के यदि रथ यात्रा को मंदिर से मंदिर तक सुरक्षित रूप से संचालित किया जा सकता है तो उसे करने की आज्ञा दी जा सकती है| इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि यदि निर्धारित शर्तों का पालन किया जाता है तो पूरी में रथ यात्रा निकाली जा सकती है|
इन शर्तों के अंतर्गत पुरी में प्रवेश करने के सभी रास्तों (हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड) को रथ यात्रा के दौरान बंद करना होगा| इसके साथ ही शहर में यात्रा के दौरान कर्फ्यू लगाना होगा| इसके अलावा रथ को 500 से ज्यादा लोग नहीं खीचेंगे| साथ ही इन सभी 500 व्यक्तियों में से सभी कोरोना की जांच के बाद ही यात्रा में शामिल होने दिया जाएगा|