पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: ये छह मामले रहे अहम

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें
पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: ये छह मामले रहे अहम
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गाजियाबाद में कचरा प्रबंधन के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है| जिसे देखते हुए एनजीटी ने अधिकारियों के उदासीन रवैये और ढिलाई पर रोष व्यक्त किया है| मामला उत्तर प्रदेश के इंदिरापुरम, वसुंधरा और वैशाली क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन से जुड़ा है| 

मामला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 की अवहेलना से जुड़ा है| जानकारी मिली है कि इन क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाला कचरा शक्ति खंड में डंप किया जा रहा था, जिससे हवा की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा था| आरोप लगाया गया है कि 20 अक्टूबर, 2017 को इस डंप पर कचरा जलने से काफी बड़ी आग देखी गई थी| साथ ही यह भी बताया गया है कि यहां कचरे की छंटाई नहीं की जा रही थी और न ही नॉन-डिग्रेडेबल कचरे की रीसाइक्लिंग हो रही थी| 

अधिकारियों द्वारा ट्रिब्यूनल को सौंपी गई रिपोर्ट से पता चला है कि यहां कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन नहीं हो रहा था| जिसके कारण पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है| 28 अगस्त को गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक रिपोर्ट सबमिट की गई थी, जिसमें भी कोई सार्थक प्रगति नहीं दिख रही है। एनजीटी ने 2 सितंबर को दिए अपने आदेश में कहा है कि 27 अगस्त को गाजियाबाद नगर निगम ने जो रिपोर्ट सबमिट की है वो भी बस खानापूर्ति ही है| 

ऐसे में एनजीटी ने निर्देश दिया है कि इस मामले में सख्त कदम उठाए जाएं और जितना जल्दी हो उसपर एक रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करें| इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस वी एस राठौर की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति से अनुरोध किया है कि वह इस मामले को देखें और इसपर अपनी स्वतंत्र रिपोर्ट दें। इस मामले की अगली सुनवाई 19 जनवरी, 2021 को की जाएगी।

एनजीटी ने कमेटी को दिए वेटलैंड्स से जुड़े आंकड़ें एकत्र करने के निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने नेशनल वेटलैंड्स कमेटी के लिए निर्देश जारी किया है। जिसमें देश के सभी महत्वपूर्ण वेटलैंड्स के संबंध में आंकड़ें एकत्र करने के लिए कहा गया है। इन वेटलैंड्स में पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का किस तरह से पालन किया जा रहा है, यह आंकड़ें उससे जुड़े हैं। साथ ही उनमें सुधार को सुनिश्चित करने से भी सम्बंधित हैं । 

भारत में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,  प्रदूषण नियंत्रण समितियों और वेटलैंड प्राधिकरणों को अपने-अपने राज्यों और प्रदेशों में मौजूद वेटलैंड के मैनेजमेंट से जुड़े आंकड़ों और उसकी स्थिति सम्बन्धी जानकारी को तीन महीने के भीतर पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को देना है। इसके आधार पर 21 जनवरी, 2021 तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करेगा। 

कोर्ट द्वारा यह आदेश जम्मू कश्मीर में गैर वैज्ञानिक तरीके से कचरे की डंपिंग की जा रही थी। साथ ही वहां होकेसर, वुलर झील और क्रेतेचू-चंद्रहारा वेटलैंड पर अवैध तरीके से अतिक्रमण किया गया था। इसी मामले में कोर्ट ने यह आदेश जारी किया था। 

इस मामले में 18 अगस्त को जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन्यजीव संरक्षण विभाग और बडगाम, श्रीनगर और बांदीपोरा के उपायुक्तों की संयुक्त समिति द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। इस रिपोर्ट में होकेसर वेटलैंड कंजर्वेशन रिजर्व, वुलर झील और क्रेतेचू के संरक्षण से जुड़े उपायों और उनकी प्रगति के बारे में उल्लेख किया गया है।

 इस रिपोर्ट पर आवेदक - राजा मुजफ्फर भट ने भी कुछ सुझाव देते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है। इस मामले में एनजीटी ने संयुक्त समिति को आगे की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि यदि आवेदक द्वारा दिए सुझाव अपनाये जा सकते है तो उनपर भी विचार किया जाए।  

समाज के गरीब और कमजोर तबके को ध्यान में रखकर बनाए कोरोना से निपटने की स्वास्थ्य योजना: सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कोरोनावायरस को लेकर एक निर्देश जारी किया है| जिसमें कोर्ट ने उनको स्वास्थ्य मंत्रियों और सचिवों की एक बैठक आयोजित करने के लिए कहा है| इस बैठक में सभी मंत्रियों को मिलकर स्वास्थ्य से जुड़े एक योजना पर काम करना है जिसमें समाज के कमजोर और गरीब तबके का विशेष ध्यान रखना है| 

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश उस समय दिया जब वह देश भर के निजी और कॉर्पोरेट अस्पतालों में कोरोनावायरस से संक्रमित रोगियों के उपचार और उसपर आने वाले खर्च से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था| कोर्ट ने सभी को निर्देश दिया है कि वो पहली बैठक के दो सप्ताह के भीतर गरीब तबके को ध्यान में रखते हुए एक मास्टर प्लान प्रस्तुत करें| 

कोर्ट ने कहा है कि यह प्लान क़ानूनी और कार्यकारी दोनों रूप से सक्षम होना चाहिए| साथ ही इसमें राज्यों में पहले से मौजूद स्वास्थ्य से जुड़े एक्ट और नेशनल हेल्थ बिल 2009 के प्रावधानों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए| जिसके बाद दूसरी मीटिंग प्राप्त सूचनाओं को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से बुलाई जा सकती है। इसके बाद इन सूचनाओं के आधार पर केंद्र सरकार एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी| 

इसके साथ ही न्यायमूर्ति एसए बोबडे, एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यन की बेंच ने राज्यों को सलाह दी है कि वो नेशनल हेल्थ बिल 2009 के आधार पर अपने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पहले से स्वास्थ्य को लेकर मौजूद एक्ट को दुरुस्त करें| 

वृंदावन में यमुना बाढ़ क्षेत्र में किया अवैध निर्माण 

1 सितंबर, 2020 को एनजीटी के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। मामला वृंदावन से जुड़ा है। जहां यमुना के तल पर अवैध निर्माण के साथ-साथ पक्की सड़क भी बनाई जा रही थी। 

सड़क का निर्माण फ्लड प्लेन इलाके में बसे अवैध निर्माण की सुविधा के लिए किया गया था। साथ ही इस सड़क निर्माण के लिए चीर, गोविंद और भमरार घाट पर मलबे की डंपिंग की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, इससे घाटों को न भर सकने वाली क्षति हुई है। साथ ही नदी के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट आई है। 

रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि फ्लड प्लेन को घाटों से अलग करने के लिए एक सड़क का निर्माण किया गया है, जोकि फ्लड प्लेन पर बनाई गई है। इसके साथ ही फ्लड प्लेन और नदी की एक धारा पर पूरी तरह से अतिक्रमण किया गया है। साथ ही उसपर बड़े पैमाने पर इमारतों का निर्माण किया गया है। 

आकाश वशिष्ठ ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि यमुना फ्लड प्लेन पर बनी कंक्रीट की उस अवैध सड़क और गौशाला को वहां से हटा देना चाहिए। गौरतलब है कि यह सड़क मथुरा-वृंदावन में शृंगारवत और केशी घाट के बीच बनाई गई है। इसके साथ ही उन्होंने यह मांग की है कि यमुना फ्लड प्लेन पर बने सभी स्थायी और अस्थायी निर्माण को भी वहां से हटा देना चाहिए।  

मेरठ नगर निगम ने ठोस कचरे के मामले में एनजीटी के सामने प्रस्तुत की अपनी रिपोर्ट

मेरठ नगर निगम ने एनजीटी के समक्ष एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में गैर-वैज्ञानिक तरीके से किए जा रहे ठोस कचरे की डंपिंग के खिलाफ जो कार्रवाई की है, उसकी जानकारी दी है। मामला काली नदी के किनारे गांवड़ी गांव से जुड़ा है। 

रिपोर्ट के अनुसार इस साइट पर जो भी कचरा पड़ा था वो ताजा था। जिसको बैक्टीरिया की मदद से मिश्रित कचरे को खाद में बदल दिया गया है। जबकि जो हरा कचरा था उसे भी खाद में बदल दिया गया है, जिस वजह से वहां दुर्गंध आना पूरी तरह बंद हो गया है। वहीं नदी किनारे 120 मीटर की दूरी में फैले कचरे को जेसीबी और अन्य मशीनों की मदद से इकठ्ठा किया गया है। जिसके बाद उस जगह की सफाई की गई है और वहां 3,500 पेड़ लगाए गए हैं। 

वहां मौजूद कचरे को साफ़ करने के लिए एक एयर ब्लास्टिक सेग्रीगेटर मशीन लगाई गई है। इस मशीन की क्षमता 15 टन प्रति घंटा है और यह मशीन दिसंबर, 2019 के बाद से लगातार काम कर रही है। यह मशीन एक तरफ से कंपोस्ट बनाती है, दूसरी साइड में इनर्ट पार्ट और तीसरी तरफ से रिफ्यूज-डिराइव्ड फ्यूल तैयार करती है। 

मेरठ नगर निगम ने जीरो सेनेटरी लैंडफिल तकनीक का उपयोग किया है। जो खाद तैयार होती है, उसका उपयोग नगर निगम ही करता है। इसके साथ ही कचरे में से लोहे, कांच, ईंट और पत्थर को अलग करने के बाद अन्य कचरे का उपयोग नगर निगम द्वारा किया जा रहा है। जबकि आरडीएफ का उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही मेरठ नगर निगम ने एक मेगावाट बिजली संयंत्र के लिए मेसर्स बिजेंद्र इलेक्ट्रिकल एंड रिसर्च को मंजूरी दी है। 

भूजल और मिट्टी को प्रदूषित कर रही गुजरात की इस कंपनी को एनजीटी ने दिए कड़े निर्देश 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मेसर्स आशापुरा ग्रुप ऑफ कंपनीज, ग्राम लीर, तालुका भुज, जिला कच्छ, गुजरात को निर्देश दिया कि जिप्सम के भंडारण की वजह से भूजल और मिट्टी दूषित हो रही है, इकाई तीन महीने की अवधि के अंदर इसके निवारण का काम पूरा करें। 

इस काम की देखरेख केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) की संयुक्त समिति करेगी। समिति समय-समय पर जांच करेगी और उपचारात्मक उपायों की निगरानी करेगी। 

जीपीसीबी ने 28 जुलाई, 2020 की अपनी रिपोर्ट में एनजीटी को 21 जुलाई को किए गए निरीक्षण के आधार पर अनुपालन की स्थिति के बारे में जानकारी दी। 39 स्थानों में से, 26 स्थानों से अपशिष्ट जिप्सम को हटा दिया गया है और शेष 13 स्थानों पर अभी भी अपशिष्ट जिप्सम पड़ा हुआ है। इसके अलावा, 13 स्थानों में से, 2 स्थानों पर इकाई ने गुजरात औद्योगिक और तकनीकी परामर्श संगठन लिमिटेड (जीआईटीसीओ) की सिफारिश के अनुसार वृक्षारोपण शुरू किया है। 

इकाई ने 1 जनवरी, 2019 से 21 जुलाई, 2020 के दौरान कचरा निपटाने के तहत और सह-प्रसंस्करण के लिए सीमेंट उद्योगों को 101742 मीट्रिक टन (मीट्रिक टन) जिप्सम का कचरा दिया है। छोड़ी गई खानों को भरने के लिए 42271 मीट्रिक टन अपशिष्ट जिप्सम का उपयोग किया गया। 

रिपोर्ट में भूजल प्रदूषण और बहाली की स्थिति का भी उल्लेख किया गया है। अमोनियाकॉल नाइट्रोजन से दूषित भूजल के संबंध में, इकाई ने तटस्थकरण (न्यूट्रलाइजेशन) प्रक्रिया के लिए ताजे चूने का उपयोग किया गया। 

पर्यावरण क्षतिपूर्ति के संबंध में, जिला स्तरीय मुआवजा समिति (गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार गठित) ने 31.65 लाख रुपये के मुआवजे का आकलन किया है। मामले को आगे की कार्रवाई के लिए 15 जुलाई, 2020 को भुज, कच्छ के प्रधान जिला न्यायाधीश को भेज दिया गया है। 

हालांकि जीपीसीबी ने 18 जून, 2019 को पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में 97,50,000 / रुपये वसूले और आशापुरा ग्रुप ऑफ कंपनीज ने 2 मई, 2019 को 15 लाख रुपये की बैंक गारंटी भी दी गई थी।

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